'सुहानी... अरे ओ सुहानी...' जब मां ने आवाज लगाई तो सुहानी ने उनींदी आंखों को खोलकर देखा कि आखिर वहां हो क्या रहा है। आज मां ने सुबह 8 बजे ही उठा दिया, ऐसा क्या बवाल हो गया था? सुहानी की जिंदगी में सुबह नहीं होती थी। रात भर ऑफिस में काम करने के बाद जब वो घर वापस आती थी, तब मां उसे कम से कम दोपहर 2 बजे तक सोने देती थीं। आखिर सुबह 5.30 बजे घर आने वाली लड़की क्या ही सुबह देखेगी। सुहानी की नौकरी मां को बिल्कुल नहीं सुहाती थी। उन्हें लगता था कि इसे कोई ऐसी जॉब कर लेनी चाहिए जिसमें ये नाइट शिफ्ट का चक्कर ही खत्म हो जाए। यकीनन सुहानी भी यही चाहती थी, लेकिन जब तक नौकरी नहीं मिलती, आखिर वो करे भी क्या।
सुहानी अपनी उधेड़बुन में बाहर गई तो उसने देखा कि मां की पड़ोस में रहने वाली वर्मा आंटी से लड़ाई हो गई है। मां को इतने गुस्से में शायद ही उसने पहले देखा होगा। लड़ाई सुलझाने के लिए जब वो आगे गई, तो वर्मा आंटी के तीखे स्वर उसके कानों में पड़े, 'अरे लड़की है, रात भर बाहर रहती है, क्या काम करवा रही हो ऐसा कि तुम्हें बाहर निकल कर उसके लिए लड़ना पड़ रहा है,' उन्होंने कहा। 'मेरी बेटी जो भी करती है इज्जतदार तरीके से करती है, तुम्हारे जैसी गंवार को क्या पता,' मां ने जवाब दिया।
सुहानी का कॉल सेंटर में काम करना पुरानी दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले की छोटी सी गली के लिए बहुत बड़ी बात थी। मां गुस्से में कांप रही थीं तो सुहानी उन्हें अंदर ले आई। 'तुझे नहीं लगता कि तुझे दूसरी नौकरी ढूंढ लेनी चाहिए? तुझसे कोई शादी के लिए भी तैयार नहीं है, क्या ही करेगा कोई तेरे साथ?' मां ने वर्मा आंटी का गुस्सा भी उसी पर निकाल दिया। ऐसा नहीं था कि सुहानी के घर पर कोई और था नहीं, लेकिन पिता अपनी शराब में ही डूबे रहते थे और भाई को दोस्तों से फुर्सत नहीं मिलती थी। सबने ये मान लिया था कि सुहानी ही है जो उनके खर्च उठाएगी। छोटा भाई कमाने लायक हो गया था, लेकिन मदद नहीं करता था।
ये दुनिया भले ही बेटियों को बोझ समझे, लेकिन ऐसे कई घर हैं जिन्हें बेटियां ही रौशन कर रही हैं और उनमें से एक थी सुहानी। वो नौकरी जो उसकी मां को इतना परेशान कर रही थी, उसमें वो खुद भी खुश नहीं थी। उसे ही पता था कि उसके साथ रोजाना क्या होता था। वो दिखने में सामान्य थी, लेकिन उसके चेहरे पर अलग सा तेज था। 24 की उम्र में इतना कुछ संभालने के कारण वो अपनी उम्र से थोड़ी बड़ी दिखने लगी थी।
ऑफिस में रोजाना उसके दो सीनियर्स उसके साथ भद्दे मजाक करते थे, उसे किसी ना किसी बहाने अपने पास घंटों खड़ा रखते थे। पर सुहानी कुछ नहीं कह पाती थी। नौकरी ना जाए इसके डर से सुहानी सब कुछ सहती जा रही थी। उसे लगता ही नहीं था कि वो कभी इस दलदल से निकल पाएगी।
'सुनती क्यों नहीं? तुझे ये नौकरी छोड़ देनी चाहिए...' मां की बातों ने सुहानी के खयालों का सिलसिला रोका। 'और छोड़कर करूं क्या? तुम्हें और मुझे दूसरों के घर बर्तन मांजने पड़ेंगे, पिता जी की शराब का खर्च और संजीव की मोटरसाइकिल का खर्च कैसे निकलेगा? मिल रही होती तो क्यों ना करती दूसरी नौकरी, पर जब तक है, यही है।' सुहानी ने कहा और अंदर सोने चली गई, हालांकि नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी।
वो जानती थी कि मां उसकी चिंता ही कर रही हैं, लेकिन कभी-कभार की ये उधेड़बुन उसे परेशान कर जाती थी। जब तक उठने का समय आया, तब तक सुहानी काफी रो चुकी थी और उसके चेहरे से थकान साफ नजर आ रही थी। उसे लेने जब कैब आई, तो वो आज जाना ही नहीं चाहती थी, लेकिन सीनियर्स ने धमकी दी थी कि अगर उसने इस वक्त छुट्टी ली, तो उसकी पगार काट लेंगे।
अपने लिए खाना पैक करके ठीक शाम 7 बजे वो कैब में बैठ गई। उसे लग रहा था कि बस किसी तरह से आज का दिन बीत जाए। पर किसी को ये नहीं पता था कि किस्मत उसके लिए कुछ और लेकर बैठी थी।
ऑफिस पहुंचते ही सुहानी ने अपना सिस्टम ऑन किया और अपने दोनों सीनियर्स से नजर चुराकर बैठ गई, लेकिन आज ऑफिस में अन्य दो लड़कियों ने छुट्टी ले ली थी। उसके डिपार्टमेंट में सिर्फ वही बची थी। 'तुम्हें आज थोड़ा एक्स्ट्रा काम करना पड़ेगा सुहानी, अब इतने लोग नहीं हैं, उसका खामियाजा किसी को तो चुकाना पड़ेगा,' उन दोनों में से एक विकास ने कहा। विकास की बात सुनकर सुहानी ने चुप चाप हां में सिर हिला दिया। इतने में दूसरा सीनियर मनोज उसके एकदम पास आकर बैठ गया। 'देखो अगर कोई दिक्कत हो तो हमें बता दो, हम कहां किसी को कुछ कहने वाले हैं। हम तो तुम्हारी मदद करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं...'
इतना कहकर मनोज ने एक ऐसी हरकत की कि सुहानी की आंखों से आंसू आ गए। वो आगे झुका और सुहानी के चेहरे पर...
आखिर क्या किया मनोज ने? क्या सुहानी कभी अपनी इस जिंदगी से बाहर निकल पाएगी? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग... ऑफिस का हैरेस्मेंट- पार्ट 2।
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