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    पहली बार मसूरी घूमने गई मीना और बेटियों के साथ पहाड़ों पर क्या हुआ, देर रात अचानक उनकी बस में...

    Priya Singh

    मीना के पति को गुजरे हुए लगभग दो साल होने वाले थे। पति के जाने के बाद से मीना अकेले ही अपनी बेटियों का ख्याल रख रही थी। पति की मौत के बाद मीना के ससुराल वालों ने भी उससे नाता तोड़ लिया था, क्योंकि अगर वे मीना के साथ रहते, तो बच्चियों की पढ़ाई और उनकी शादी सहित हर जिम्मेदारी ससुराल वालों पर आ जाती। इसी वजह से मीना को पति की मौत का जिम्मेदार ठहराते हुए उसे घर से निकाल दिया गया। मीना की बेटियां अब समझदार हो गई थीं। उसकी एक बेटी आर्या और दूसरी काव्या, दोनों 8वीं और 10वीं कक्षा में थीं। वहीं मीना भी अकेले नौकरी करके दोनों बेटियों की पढ़ाई का खर्च उठा रही थी। मां को इतनी मेहनत करते देख, बेटियां भी पढ़ाई में जी-जान से मेहनत करती थीं। दोनों ही अपनी कक्षा की टॉपर लड़कियां थीं और हमेशा कक्षा में प्रथम आती थीं।

    पढ़ाई में अच्छी होने के साथ साथ वह अपनी मां का दर्द भी समझती थीं। इसलिए वह कभी अपनी मां से कहीं घूमने जाने की जिद नहीं करती थी। लेकिन इस बार मीना ने अपनी दोनों बेटियों को गर्मियों की छुट्टियों में उन्हें कहीं घुमाने का फैसला किया था। उसने अपनी बेटियों से कहा कि इस बार वह उन्हें मसूरी घुमाने लेकर जायेगी। मसूरी घूमने की बात सुनकर तो मानों दोनों बेटियों की खुशी का ठिकाना ही नहीं था।

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    वह अपने पिता के गुजर जाने के बाद पहली बार शहर से कहीं दूर घूमने जाने वाली थी, इसलिए इस बात से वह बहुत खुश थी। दोनों ने अपनी पैकिंग भी शुरू कर दी थी। अगले दिन ही उन्हें मसूरी के लिए निकलना था। मीना ने मसूरी घूमने के लिए एक ट्रेवलर बुक किया था। वह पैकेज के जरिए मसूरी घूमने जा रही थी। सुबह सुबह ही मसूरी जाने के लिए दोनों बेटियां उठ कर तैयार हो गई थी और मीना अभी तक सो रही थी। मीना की बड़ी बेटी आर्या ने कहा, मां उठो हमें निकलना है, हमारी बस छूट जाएगी , मां ने कहा अरे 10 बजे का टाइम है, अभी तो सिर्फ 8 ही बज रहे हैं, अभी बहुत टाइम है। आर्या ने कहा - नहीं आप जल्दी उठकर तैयार हो जाओ, किसी भी हालत में बस मिस नहीं होनी चाहिए। मां भी हंसते हुए उठ गई और मन ही मन सोचने लगी, मेरी दोनों बेटियां घूमने के नाम से कितनी ज्यादा खुश हैं। कितने दिन हो गए थे इनके चेहरे पर ऐसी खुशी देखे हुए। मां भी बेटियों को खुश देखकर फौरन नहा धोकर तैयार हो गई। तीनों मां बेटी समय पर ट्रेवलर में बैठ गई थी। सफर बहुत अच्छा चल रहा था। दिल्ली से मसूरी के लिए निकली ट्रेवलर में ज्यादा लोग नहीं थे।

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    आधे रास्ते में लेकिन ट्रेवलर का टायर अचानक पंचर हो गया। अभी मसूरी काफी दूर था। मीना को चिंता हो रही थी कि कहीं मसूरी पहुंचते पहुंचते रात ना हो जाए। ऐसे उसके पैकेज का एक दिन खराब चला जाएगा। लेकिन ऐसे में क्या कर सकते थे। पंचर टायर को ठीक करने में ड्राइवर ने 1 घंटा लगा दिया था। आखिर फिर से मसूरी का सफर शुरू हो गया था। मसूरी में लेकिन इतना ज्यादा ट्रैफिक था कि पहुंचते पहुंचते शाम के 6 बज गए थे। ड्राइवर को सब लोग गाली दे रहे थे कि उसकी वजह से मसूरी पहुंचने में उन्हें देरी हुई है। उसे पंचर टायर को ठीक करना ही नहीं आता था। लोगों का ताना सुनते हुए ड्राइवर का ध्यान भटक रहा था। ऊपर से सड़क पर लाइट नहीं होने की वजह से उसे रास्ता भी सही से नहीं दिखाई दे रहा था। तभी सामने से अचानक तेज रफ्तार बाइक उसकी तरफ आ गई। बाइक को बचाने के चक्कर में हड़बड़हाड़ में ड्राइवर ने गाड़ी को खाई की तरफ मोड़ दिया। अचानक ड्राइवर ने ब्रेक तो मार दिया था, लेकिन ट्रेवलर के आगे के 2 टायर खाई की तरफ लटक गए थे। ऐसे में गाड़ी को पीछे लेना या किसी का भी हिलना मुश्किल था।

    फौरन आसपास मौजूद लोगों ने पुलिस को सूचना दी और रक्षा दल को बुलाया गया। जब तक रक्षा दल नहीं आए, तब तक गाड़ी में जो जहां बैठा था, वह वहीं अपनी सीट पर चिपका रहा था। डर के कारण हर कोई भगवान का नाम जप रहा था। वहीं मीना भी अपनी दोनों बेटियों को अपनी बाहों में पकड़ कर डरी सहमी बैठी हुई थी। तभी मौके पर रक्षा दल के लोग पहुंच गए। धीरे धीरे पीछे वाले गेट से लोगों को निकाला जा रहा था। धीरे धीरे सभी लोग गाड़ी से निकले थे, लेकिन मीना उसके 2 बच्चे और ड्राइवर अभी भी गाड़ी में थे। वह आगे की तरफ बैठे थे और उनका गाड़ी में हिलना खतरे से खाली नहीं था। रक्षा दल को समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे बचाया जाए, क्योंकि कोई भी 1 गाड़ी में हिलता तो ट्रेवलर का बैलेंस हिल जाता। लेकिन किसी न किसी को तो पहल करनी ही थी, मीना ने सबसे पहले अपनी छोटी बेटी को आगे बढ़ने को कहा, क्योंकि वह छोटी थी और उसका वजन भी कम था।

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    लेकिन जैसे ही काव्या गेट की तरफ बढ़ी, ट्रेवलर तेज तेज हिलने लगी, गाड़ी में बैठे तीनों लोग डर के कारण चिल्लाने लगे और आखिर वही हुआ जिसका डर था। ट्रेवलर खाई में गिरने लगी, मीना ने फौरन काव्या को अपनी तरफ खींचा और दोनों बेटियों का हाथ पकड़ लिया। गाड़ी खाई में गिरने ही वाली थी, लेकिन नीचे की तरफ गिरते ही एक छोटी से पहाड़ी पर अटक गई। अब उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था। मीना और उसकी दोनों बेटियों को गाड़ी के अचानक नीचे गिरने की वजह से काफी चोटें आ गई थी। वहीं ड्राइवर भी जख्मी नजर आ रहा था। इसलिए मीना ने सबसे पहले अपनी दोनों बेटियों को बस से बाहर निकाला। इसके बाद वह ड्राइवर की मदद करने गई। उसने ड्राइवर को जगाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह होश में नहीं आया। अब मीना के पास कोई चारा नहीं था। इसलिए उसने उसे वहीं अकेले गाड़ी में छोड़ दिया।

    इसके बाद उसने गाड़ी में से जरूरी खाने पीने का सामान, टॉर्च जैसी चीजें इकट्ठा की। क्योंकि, उसे पता था कि उनकी मदद करने के लिए कोई जल्दी नहीं आने वाला था। रात के 9 बज गए थे और पहाड़ी पर कुछ नजर नहीं आ रहा था। मीना को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। उसकी दोनों बेटियों रोए जा रही थी और खुद को दोषी ठहरा रही थी कि उनकी वजह से मां उन्हें घुमाने लेकर आई थी और ऐसी मुसीबत में वह फंस गए थे। लेकिन मीना ने अपने बच्चों को समझाया और कहा इसमें किसी की गलती नहीं है। इसलिए दोनों को घबराने की जरुरत नहीं है। हम बच गए हैं किसी को कुछ नहीं हुआ है तो आसानी से पहुंच जायेंगे हम। मां ने अपनी बेटियों को सांत्वना तो दे दी थी। लेकिन उसे खुद भी नहीं पता था कि वह आगे क्या करेगी। रात में उसने अपनी बेटियों के साथ कहीं चलने का प्लान नहीं किया। उसने अपनी बेटियों से कहा कि रात में यहां से कहीं जाना सेफ नहीं हैं। वह पूरी रात वहीं खाना खाने के बाद अपनी बेटियों के साथ बैठी रही।

    रात के लगभग 2 बज गए थे और जंगल में उन्हें अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई देने लगी थी। कभी किसी के कदमों की आहट, तो कभी किसी रहस्यमयी रोशनी की झलक। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी जगह पर किसी के रोने या हंसने की आवाज कैसे आ सकती हैं। जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि ये केवल एक सामान्य जंगल नहीं था – यहां कुछ रहस्य छुपे थे। मीना को रात में वहां रुकना ठीक नहीं लग रहा था और फोन में नेटवर्क भी नहीं था। उसने अपनी बेटियों को जगाया और धीरे धीरे चलने को कहा।

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    तीनों चलते-चलते एक लावारिस से लगते लकड़ी के घर तक पहुंचती हैं, जहां घर में कोई रोशनी नहीं थी। उसे लगा कि शायद पहले कोई यहां रहता होगा, लेकिन अब वह उसे छोड़ कर चला गया है। उसे वहां अपनी बेटियों के साथ रात गुजारना ठीक लग रहा था। क्योंकि पता नहीं कब तक कोई वहां उनकी मदद करने आए। रात बहुत ज्यादा हो गई थी और आस पास से जानवरों की भी आवाज आ रही थी।

    मीना ने दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा खुल नहीं रहा था। उसे लगा कि काफी दिनों से बंद होने की वजह से लगता है दरवाजा जाम हो गया है। उसने पत्थर उठा कर दरवाज़े के ऊपर मारने का प्रयास किया। जैसे ही वह दरवाजे पर पत्थर मारने जा रही थी, तभी अंदर से एक बूढ़ी महिला ने दरवाजा खोल दिया। महिला को देखते ही तीनों के मुंह से चीख निकल गई। तभी बुढ़िया ने कहा, आ गई मीना, तूने बहुत देर लगा दी आने में। अपना नाम बुढ़िया के मुंह से सुनते ही मीना घबरा गई और फौरन अपनी बेटियों। का हाथ पकड़ कर घर से दूर हो गई। मीना को घबराता देख बूढ़ी महिला ने कहा, डर मत, मुझे तेरे बारे में सब पता है। आज तेरे साथ यहां क्या हुआ, मैं सब जानती हूं। बूढ़ी दादी की बात सुनकर मीना की दोनों बेटियां अपने मां से कहती हैं। मां यहां से चलो, मुझे यहां नहीं रहना। बूढ़ी दादी ने कहा अरे आर्या और काव्या तुम्हें भी घबराने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं करने वाली हूं।

    ये जंगल एक 'पुराने वचन' की रक्षा कर रहा है– एक ऐसा वचन, जिसे अगर कोई तोड़े, तो वह जंगल उसे वापस जाने नहीं देता। तुम लोग भी उसी वचन से बंधे हो, इस वचन को तुम्हारे पिता ने 2 साल पहले तोड़ दिया था। इसलिए ही आज वह इस दुनिया में नहीं है।।उसने मेरी बात नहीं सुनी थी अगर तुम लोग भी मुझपर भरोसा नहीं। करोगे, तो तुम्हें भी मैं नहीं बचा पाऊंगी। अब मीना को न सिर्फ़ अपनी बेटियों को सुरक्षित बाहर निकालना है, बल्कि उस वचन को भी समझना है, जिससे वह अनजाने में जुड़ चुकी है। इसलिए मीना को अब उस दादी के साथ रहने के सिवा और कोई चारा समझ नहीं आ रहा था। दादी ने अपना नाम कामिनी बताया और कहा। मीना ने उनसे पूछा दादी आप किस वचन की बात कर रही हैं, मेरे पति ने मुझसे कभी किसी वचन का जिक्र नहीं किया। दादी ने गहरी सांस लेते हुए कहा-

    ये जंगल, बेटा, सिर्फ़ पेड़-पौधों का झुंड नहीं है। ये एक जीवित आत्मा है – जो वचन निभाने वालों को शरण देता है और वचन तोड़ने वालों को रास्ता नहीं दिखाता। यहां कोई अपनी मर्जी नहीं आ सकता। मैं सदियों से यहां फंसी हुई हूं। ना मुझे मौत आती और न ही मैं यहां से कहीं जा सकती हूं। मीना की आंखों में कई सवाल थे। जिसे समझते हुए दादी ने एक पुरानी लकड़ी की संदूक से एक फटी-पुरानी किताब निकाली- उसपर वचन की परीक्षा लिखा हुआ था। दादी ने कहा- सदियों पहले, एक मां ने अपने बच्चों को बचाने के लिए इस जंगल से मदद मांगी थी। बदले में उसने वादा किया था कि उसकी आने वाली सात पीढ़ियां जंगल की रक्षा करेंगी और जंगल के जीवों की सेवा करेंगी और जंगल के नियमों को नहीं तोड़ेंगी।

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    तुम यह जानकार हैरान होगी कि वह मदद मांगने वाली महिला और कोई नहीं बल्कि तुम्हारी ही पर दादी थी। मीना यह सुनकर चौंक गई। दादी ने कहा- तुम्हारा इस जंगल में गिरना कोई हादसा नहीं था – ये तुम्हारे उस वचन का पलटा था, जो अधूरा रह गया है। तुम्हारे पति को यह बात पता थी वह इसमें तुम्हें नहीं फंसाना चाहता था और उसने अपनी जान दे दी। मीना ने दादी से कहा, क्या इस वचन को खत्म किया जा सकता है। मैं नहीं चाहती के कल को मेरी बेटियों को भी ये सब सहना पड़े।।प्लीज मुझे कुछ ऐसा उपाय बताएं ताकि इस समस्या को यहीं खत्म किया जा सके।

    दादी ने कहा अगर तू इसे यहीं खत्म करना चाहती है और अपनी बेटियों के साथ जिंदा वापस जाना चाहती है तो तुझे अपनी बेटियों के लिए एक बड़ा कदम उठाना होगा। तुझे अकेले अपनी बेटियों के बिना जंगल के उस पार जाना होगा। वहां तुझे एक हिरण मिलेगा जो तुझे बताएगा कि आगे तुझे क्या करना है। मीना ने कहा मैं सब करने को तैयार हूं लेकिन मैं अपनी बेटियों को आपके पास अकेला नहीं छोड़ सकती। दादी ने कहा रस्ता आसान नहीं है। तेरी बेटियां इतना नहीं चल पाएंगी। मीना ने कहा कोई बात नहीं मैं धीरे धीरे चाहे कल तक वहां पहुंच पाऊं या परसो तक, मैं अपनी बेटियों को अकेला नहीं छोड़ने वालीं।

    मीना की दोनों बेटियां भी अपनी मां के साथ जाना चाहती थे। मीना भी अपनी दोनों। बेटियों के साथ बिना कुछ सोचे समझे निकल गई। वह और उसकी दोनों बेटियां जंगल में चले जा रही थी। रास्ते में लगातार जानवर नजर आ रहे थे।।लेकिन सभी उन तीनों को देखकर रास्ता बदल ले रहे थे। आराम करते और रुकते चलते आखिर मीना और उसकी बेटियां 2 दिनों से चल रही थी। रात के 2 बज रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर और कितना चलना है, तभी सामने एक हिरण नजर आया।

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    यह एक मादा हिरण था जो चमकदार और सफेद रंग का था। मीना और उसकी बेटियां उसे देखकर घबराई नहीं और सीधा चलती रही , उन्हें लगा के उनके आगे बढ़ने पर हिरण रास्ता बदल लेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जैसे जैसे मीना अपनी दोनों बेटियों के साथ आगे बढ़ी, हिरण अपनी जगह से हिला नहीं।।मीना घबरा गई और और अपनी दोनों बेटियों के साथ रुक गई। तभी हिरण से आवाज आई, आओ मीना डरो मत, मैं तुम्हारा ही तो इंतजार कर रही थी। मुझे पता था तुम जरूर आओगी और तुम इस वचन को पूरा करके इसे यहीं खत्म कर दोगी। मीना ने कहा, हां बोलो मुझे क्या करना है?

    हिरण ने कहा दूर तुम्हे रोशनी नजर आ रही होगी, वह आग की लपटे हैं।।तुम्हे उसमें नंगे पांव चलना होगा। अगर तुम वहां से आगे बढ़ जाती हो, तो तुम और तुम्हारी बेटियां सीधा जंगल से बाहर निकल जाओगी। यह सुनते ही मीना की बेटियों ने कहा, मां नहीं आप ऐसा कुछ नहीं करोगी, मुझे इसमें इनकी कोई साजिश लग रही है, पता नहीं इन लोगों ने पापा की जान कैसे ली और अब ये आपको भी हमसे दूर कर देंगी। हिरण ने कहा अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो तुम और तुम्हारी बेटियां उस बुढ़िया की तरह यहीं फंस कर रह जाओगी। हिरण की बात सुनकर मीना घबरा गई। क्योंकि वह अपनी बेटियों को जंगल में फंसाना नहीं चाहती थी । उसने सोचा मुझे अगर कुछ होगा भी तो मेरी दोनों बेटियां समझदार है जी लेंगी, कमसेकम जंगल में तो उन्हें अपनी जिंदगी नहीं बितानी होगी। यह सोचकर मीना आगे की तरफ बढ़ने लगी।

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    मीना की दोनों बेटियां अपनी मां को रोकने के लिए लगातार रोए जा रही थी, लेकिन मीना इसको एक भी नहीं सुन रही थी। आखिर मीना उस जगह पहुंच गई। मीना ने देखा कि ये केवल हल्की फुल्की आग की लपटें नहीं थी, बल्कि यह जलता हुआ जंगल था, जिसमें अगर कोई भी जायेगा तो बच नहीं पाएगा। वहीं दूर से हिरण भी उसे देख रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे हिरण को पता है कि मीना आग में नहीं जायेगी। लेकिन मीना इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाली थी। उसने अपनी बेटियों को रोते हुए अकेला छोड़ दिया और जलते हुए जंगल में घुस गई।

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    लेकिन ये क्या, मीना ने जैसे ही जंगल में कदम रखा, उसके ऊपर अचानक बादल मंडराने लगे और बारिश होने लगी। धीरे धीरे पूरे जंगल की आग बारिश के पानी से बुझ गई। तभी मीना के दोनों बच्चे भागते हुए उसके पास चले गए। मीना ने हिरण को तरफ मुड़ कर देखा, तो हिरण की जगह एक खूबसूरत सफेद रंग में महिला खड़ी थी। मीना उसे जानती थी, मीना ने उसे पुरानी तस्वीरों में देखा था। सफेद चमचमाती साड़ी में खड़ी महिला ने कहा, मीना बेटा तूने इस वचन को खत्म कर दिया। अब इस वचन में कभी कोई नहीं फंसेगा। तेरी वजह से मैं और मेरी बेटी भी इस जंगल से आज आजाद हो रहे हैं। तभी वहां वह बूढ़ी महिला भी आ गई। वह मीना की परदादी की बेटी थी। वह भी अपने छोटे से स्वरूप में आ गई और देखते ही देखते वह आसमान की तरफ चले गए।

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    इस तरह मीना और उसकी दोनों बेटियों ने वचन से मुक्ति पाई और उन्हें जंगल से वापस बाहर निकलने का रास्ता मिल गया।

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