हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इस समय में हर कोई अपने पितरों को शांति प्रदान करने के लिए तर्पण करता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं पितृपक्ष की पूजा और श्राद्ध में कई नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। इन्हीं नियमों में से एक है कि पितरों की पूजा करते समय हाथ में कलावा नहीं बांधा जाता है। इस चीज को पंडित जन्मेश द्विवेदी जी ने हमें विस्तार से बताया। आइए जानते हैं इसके पीछे धार्मिक मान्यता और कारण।
पितरों की पूजा में क्यों नहीं बांधा जाता कलावा?
कलावा सिर्फ लाल या पीले रंग का धागा ही नहीं होता है। यह शुभता का धागा होता है। ऐसी मान्यता है कि इसे बांधने से आपको देवी-देवता की पूजा का फल मिलता है। साथ ही, इससे आपकी रक्षा होती है। इसलिए कई सारे लोग इसे रक्षा का धागा भी कहते हैं। वहीं पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध किया जाता है, जिससे हम अपने पितरों को शांति और तृप्ति का कार्य करते हैं। ऐसे में कलावे को बांधने का परहेज किया जाता है। साथ ही, इसे बांधना शुभ भी नहीं माना जाता है।
पितरों की पूजा में लाल या पीले रंग के कलावे के इस्तेमाल का परहेज
अक्सर ऐसा कहा जाता है कि लाल औप पीले रंग का इस्तेमाल पूजा पाठ में सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। इसलिए पितरों की पूजा में इसे बांधने से पंडित जी भी मना करते हैं। पितरों की पूजा सादगी के साथ सरल तरीके से बिना किसी दिखावे सजावट के साथ करनी चाहिए। तभी इससे आपके पितरों को शांति प्राप्त होती है।
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पितरों की शांति के लिए की जाती है पूजा
कलावा हमारी रक्षा का धागा होता है। लेकिन इस समय हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति की पूजा करते हैं। ऐसे में हाथ में बंधा कलावा नहीं बांधते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस समय आप उन्हें खुद बुलाकर शांति प्राप्त करा रहे हैं और खुद को धागे से बांधे हुए हैं, जो उचित नहीं है। इसलिए कभी भी इसे हाथ में नहीं बांधना चाहिए।
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए?
- घर को साफ-सुथरा रखें और गंदगी न फैलने दें।
- पितरों को तर्पण और पिंडदान श्रद्धा भाव से अर्पित करें।
- ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराया और दान देना बेहद शुभ माना जाता है।
- सात्विक भोजन करें और मांसाहार से परहेज करें।
पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए पूजा-विधि को शास्त्रों के अनुसार ही करना चाहिए। कलावा न बांधना उसी परंपरा का हिस्सा है। यह समय केवल श्रद्धा, संयम और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए होता है।
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