हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस समय पितृ पृथ्वी पर आते हैं और उनके वंशज उनकी शांति के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। उन उपायों में पितरों के निमित्त जल तर्पण आदि शामिल होते हैं। इस दौरान जो लोग श्रद्धा और नियमों के साथ पितरों को जल अर्पित करते हैं, उनके जीवन में पितरों का आशीर्वाद सदैव बना रहता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। वहीं इस दौरान नियमों का पालन न करना पूरी परिवार के लिए नकारात्मक हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि पितरों को जल अर्पित करने का एक समय होता है और कुछ विशेष नियम होते हैं जिनका पालन करना जरूरी होता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इन नियमों के बारे में विस्तार से।
पितृपक्ष में पितरों को जल देने का सही समय
शास्त्रों की मानें तो पितृपक्ष में पितरों के निमित्त जल अर्पित करने का सर्वोत्तम समय अभिजीत मुहूर्त माना जाता है। यह मुहूर्त नियमित रूप से दोपहर के समय आता है। जब सूर्य आकाश में सर्वोच्च स्थान पर होता है तब जो समय होता है उसे अभिजीत मुहूर्त कहा जाता है। अभिजीत मुहूर्त सामान्यत: दिन के लगभग 12:00 बजे से 12:48 बजे तक रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस समय किया गया तर्पण सीधा पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
यदि आप किसी वजह से अभिजीत मुहूर्त में तर्पण करने में असमर्थ हैं तो सूर्योदय के बाद किसी भी समय तर्पण किया जा सकता है। अगर सबसे अच्छे समय की बात करें तो अभिजीत मुहूर्त की सर्वोत्तम है। आपको कभी भी पितरों के लिए ब्रह्म मुहूर्त में तर्पण नहीं करना चाहिए। यह समय ईश्वर का माना जाता है।
पितृपक्ष में पितरों को जल अर्पित करने के सही नियम
सिर्फ समय ही नहीं, बल्कि आपको तर्पण के कुछ विशेष नियमों का पालन भी करने की सलाह दी जाती है। आइए जानते हैं तर्पण से जुड़े मुख्य नियम क्या हैं-
स्नान और शुद्धता का पालन
पितरों को जल देने से पहले आपका स्नान करना जरूरी होता है। आप प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनना सबसे शुभ माना जाता है। यह मन को भी शांत करने में मदद करते हैं। तर्पण करते समय आपका जनेऊ धारण करना अनिवार्य माना जाता है।
दक्षिण दिशा की ओर मुख करें
शास्त्रों के अनुसार पितरों का वास दक्षिण दिशा में माना जाता है। इसलिए तर्पण करते समय आप हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ही जल अर्पित करें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। तर्पण करते समय तांबे या पीतल के लोटे का प्रयोग करें। जल में काला तिल, कुश और पुष्प मिलाएं। यह पवित्रता का प्रतीक माने जाते हैं और इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
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पितृपक्ष में पूर्वजों को जल अर्पित करने का महत्व
ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को जल देने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों को उनका आशीर्वाद मिलता है। इससे घर-परिवार में सौहार्द और खुशहाली बनी रहती है। अगर आप पूर्वजों को जल अर्पित करती हैं तो आर्थिक तंगी और जीवन की रुकावट धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं और समृद्धि बनी रहती है।
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