आषाढ़ महीने में आने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरु पूर्णिमा पर हम अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब हम जीवन में मुश्किलों से घिर जाते हैं या असफलता मिलती है तब हमें अपने गुरु की दी हुई शिक्षा को याद करना चाहिए। ऐसा करने से हमें सफलता का रास्ता मिलता है और हर परेशानी का हल दिखने लगता है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन अगर आप अपने गुरु का सही तरीके से पूजन करते हैं, तो आपको उनकी खास कृपा मिलती है। आइए जानते हैं कि गुरु पूर्णिमा की पूजा कैसे करें और पूजा के लिए किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है।
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सुबह की तैयारी: गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले उठें। अपने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र स्नान करें। अगर संभव हो तो नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिला लें। स्नान के बाद साफ और धुले हुए वस्त्र पहनें। कोशिश करें कि वस्त्र पीले या सफेद रंग के हों क्योंकि ये रंग शुभ माने जाते हैं। पूजा शुरू करने से पहले मन में गुरु पूजा का संकल्प लें। आप कह सकते हैं, 'मैं अपना नाम आज गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर अपने गुरुदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए यह पूजा कर रहा/रही हूं।'।
पूजा स्थल की तैयारी: अपने घर के पूजा स्थान को अच्छी तरह से साफ करें। एक साफ चौकी या पाटा लें और उस पर लाल या पीला रंग का साफ कपड़ा बिछाएं। इस चौकी पर अपने गुरु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। यदि आपके कोई जीवित गुरु नहीं हैं, तो आप महर्षि वेदव्यास, भगवान दत्तात्रेय, भगवान विष्णु या अपने किसी आराध्य देव की तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं क्योंकि ये सभी ज्ञान और गुरुत्व के प्रतीक हैं।
गुरु की पूजा शुरू करें: सबसे पहले हाथ जोड़कर अपने गुरु का ध्यान करें और उन्हें पूजा के लिए आमंत्रित करें। आप कह सकते हैं, 'हे गुरुदेव! मैं आपका आवाहन करता/करती हूं, कृपया पधारें और मेरी पूजा स्वीकार करें।' गुरु की तस्वीर या मूर्ति के सामने आसन के लिए थोड़े चावल रखें। अगर आपके जीवित गुरु उपस्थित हों तो उनके चरण धोएं। अगर तस्वीर या मूर्ति है तो जल छिड़क कर पाद प्रक्षालन का भाव करें। गुरु को जल अर्पित करें।
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इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर साफ कपड़े से पोंछ लें। गुरु को वस्त्र अर्पित करें। यदि जीवित गुरु हैं तो उन्हें नया वस्त्र दें। गुरु को हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाएं। गुरु को सुगंधित फूल अर्पित करें। दीपक जलाकर और अगरबत्ती या धूप जलाकर गुरु को दिखाएं। गुरु को फल और मिठाई का भोग लगाएं। पान का पत्ता, सुपारी, लौंग और इलायची अर्पित करें। गुरु को अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा अर्पित करें। यदि जीवित गुरु हैं, तो उनके चरण स्पर्श कर दक्षिणा दें।
अपने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करें। यदि कोई विशेष मंत्र नहीं है तो 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः' या 'ॐ गुरुभ्यो नमः' मंत्र का 108 बार जाप कर सकते हैं। गुरु वंदना और गुरु स्तोत्र का पाठ करें। अंत में गुरु और भगवान की आरती करें। पूजा के बाद सभी उपस्थित लोगों में प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें। अगर आपके जीवित गुरु हैं, तो उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। अगर नहीं, तो मन ही मन अपने गुरु को याद करें और उनसे आशीर्वाद की कामना करें। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी क्षमता अनुसार अन्न, वस्त्र या धन का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
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