गरीब और जरूरतमंदों को खाना खिलाना बहुत ही पुण्य का काम होता है। इसके लिए लोग जगह-जगह भंडारा या लंगर का आयोजन करते हैं। जो लोग अपना पेट भरने में सक्षम नहीं हैं उन लोगों के लिए यह व्यवस्था समाज के लोगों द्वारा की गई है। भंडारा और लंगर दोनों एक दूसरे से काफी अलग हैं। हालांकि दोनों के उद्देश्य एक ही हैं। आइए, जानते हैं दोनों के बीच क्या अंतर है।
भंडारे और लंगर में अंतर
भंडारे का आयोजन किसी विशेष कार्य या उत्सव के दौरान किया जाता है। तो वहीं लंगर का आयोजन गुरुद्वारे में रोजाना किया जाता है।
कब होता है भंडारा
हिंदू धर्म में भंडारे का आयोजन किसी धार्मिक कार्य के संपन्न होने के बाद किया जाता है। इसके अलावा, किसी विशेष उत्सव या त्योहार पर भंडारा किया जाता है।
लंगर का आयोजन
सिख समुदाय के लोगों द्वारा रोजाना सुबह-शाम लंगर का आयोजन किया जाता है। इसे खाने के लिए कोई विशेष दिन नहीं होता है। यह भोजन काफी स्वादिष्ट होता है।
भंडारे और लंगर कहां किया जाता है?
भंडारे को आमतौर पर मंदिर या उसके आसपास वाली जगह पर आयोजित किया जाता है। वहीं, लंगर हमेशा से ही गुरुद्वारे में किया जाता है।
किन लोगों के लिए होता है भंडारा या लंगर
भंडारा और लंगर दोनों ही गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है। यह एक सेवा का कार्य माना जाता है।
भगवान होते हैं प्रसन्न
भंडारा या लंगर दोनों में समानता यह है कि दोनों ही अन्न के दान से संबंध रखते हैं। इस वजह से कोई भी व्यक्ति बिना भोजन के नहीं सोता है और भगवान भी प्रसन्न होते हैं।
दोनों का भाव है समान
कमजोर और जरूरतमंद लोग अक्सर अपना पेट पालने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे में इन लोगों के लिए श्रद्धा भाव से लंगर या भंडारे का आयोजन किया जाता है।
भंडारे और लंगर दोनों का उद्देश्य गरीब और भूखे लोगों को खाना खिलाना है। स्टोरी अच्छी लगी है, तो शेयर करें। ऐसी अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें herzindagi.com पर।