मैरिटल रेप पर होने वाली बहस एक ऐसी बहस है जो सालों से चली आ रही है, लेकिन उसे लेकर कोई कड़ा कानून हमारे देश में नहीं है। मैरिटल रेप को लेकर गाहे-बगाहे कोर्ट के ऐसे फैसले आते रहते हैं जो ऐतिहासिक माने जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ है कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से। कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक केस को रिजेक्ट करने से मना कर दिया। उस केस में एक पत्नी ने अपने पति के खिलाफ रेप का आरोप लगाया था और उस केस को 'एक्सेप्शन इन लॉ' के तहत खारिज करने की अपील की गई थी।
उस केस को खारिज करने की जगह इस केस पर सुनवाई करने को कहा। इससे पहले कि कोर्ट के फैसले के बारे में बात की जाए हम आपको भारतीय कानून के बारे में बताते हैं जो मैरिटल रेप पर है।
क्या कहता है कानून?
भारतीय पीनल कोड सेक्शन 375 के मुताबिक अगर पत्नी 15 साल से ज्यादा आयु की है तो पति के द्वारा किया गया सेक्शुअल इंटरकोर्स कानूनन अपराध नहीं कहा जाता है। हालांकि, ऐसे मामलों में सेक्शन 498A (महिलाओं के खिलाफ अपराध) और सेक्शन 377 (अप्राकृतिक अपराध, कार्नल इंटरकोर्स (जो प्रकृति के खिलाफ हो) आदि में भी फैसला दिया जा सकता है। पर उसे रेप अभी तक नहीं कहा जाता है। भारतीय कानून संहिता में सेक्शन 376 के तहत रेप के मामलों में सजा सुनाई जाती है। ये सारी धाराएं महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए ही बनाई गई है।
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क्या कहा कर्नाटक हाई कोर्ट ने?
कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले में एक अहम स्टेटमेंट दिया है। कर्नाटक कोर्ट के अनुसार, 'एक पुरुष, पुरुष ही होता है, एक अपराध, अपराध ही होता है और रेप, रेप ही होता है। ये भले ही पति द्वारा पत्नी पर ही क्यों न किया जाए। ये रूढ़िवादी सोच है कि पति पत्नी का मालिक होता है, उसके शरीर, उसके दिमाग और आत्मा का मालिक हो सकता है।' ये स्टेटमेंट जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच द्वारा दिया गया।
जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, 'शादी का मतलब ये नहीं हो सकता, न होना चाहिए कि किसी विशेष पुरुष को क्रूर जानवर बनने का अधिकार मिल जाए। यदि यह किसी पुरुष के लिए अपराध है तो ये सभी के लिए अपराध होना चाहिए भले ही वो पुरुष कोई भी क्यों न हो।'
'पत्नी पर यौन उत्पीड़न क्रूर कृत्य है और उसकी सहमति के बिना ये करना बलात्कार नहीं कहा जाता, लेकिन ये पत्नी की मानसिक स्थिति पर बहुत असर डालता है और इसके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव पड़ते हैं। पतियों की ऐसी हरकत पत्नियों की आत्मा को झकझोर देती हैं। इसलिए, सांसदों के लिए अब मौन की आवाज सुनना अनिवार्य है'
मौजूदा मामले में ट्रायल कोर्ट ने सेक्शन 376 के तहत पुरुष पर मामला चलाने की बात की थी और इसे लेकर फिर हाई कोर्ट में अपील की गई थी। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि धारा 375 ये बताती है कि पति द्वारा किया रेप , रेप नहीं माना जा सकता है। इसी के तहत हाई कोर्ट में अपील की गई थी।
पहली बार नहीं उठी इस बात पर चर्चा-
2018 में भी इसी तरह का एक केस सामने आया था जिसमें गुजरात हाई कोर्ट में केस खारिज करने की अपील की गई थी। हालांकि, उस समय ये केस खारिज हो गया था, लेकिन उस समय भी मैरिटल रेप को क्रिमिनलाइज करने की बात की गई थी।
ऐसे ही मामले केरल हाई कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट और देश के अलग-अलग हिस्सों में देखे जा चुके हैं।
क्या भारत में मैरिटल रेप को लेकर है कोई कानून?
भारत में कोई भी ठोस कानून अभी तक इस मामले में नहीं बनाया गया है। ये महिलाओं के साथ होते यौन अपराधों को और भी ज्यादा बढ़ावा देता है। एक ऐसा देश जहां यौन हिंसा एक बहुत बड़ी समस्या है तो फिर ऐसे कानून में संशोधन की जरूरत होती है। मैरिटल रेप को लेकर कुछ प्रावधान हैं, लेकिन ये सिर्फ तब ही रेप माना जाता है जब पत्नी नाबालिग हो।
'Protection of Women against Domestic Violence Act, 2005' में संशोधन सिर्फ इसी कारण से किया गया था कि महिलाओं को कानूनन मदद दी जा सके और किसी भी तरह की हिंसा से उन्हें बचाया जा सके उसमें भी मैरिटल रेप को घरेलू हिंसा का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
भारतीय कानून संहिता यानी इंडियन पीनल कोड 1860 के सेक्शन 375 में ये बात लिखी गई थी कि रेप हर तरह का नॉन कंसेंशुअल सेक्स हो सकता है। पर अगर एक पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करता है जो 15 साल या उससे ऊपर है तो वो रेप नहीं कहलाएगा।
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2005 में किए संशोधन के बाद इसे 2013 में फिर से बदला गया और इसमें कंसेंट और स्वेच्छा जैसे शब्दों के इस्तेमाल के साथ पत्नी की उम्र को 18 साल कर दिया गया था। हालांकि, इसमें भी सेक्शन 2 में बदलाव नहीं किए गए थे जिसमें मैरिटल रेप को कानूनन अपराध नहीं माना गया था।
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2017 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने ही 18 साल तक किसी भी लड़की से बिना अनुमति सेक्स को रेप करार दिया गया था और तब ही नाबालिग पत्नी से सेक्स को भी रेप माना गया। यहां भी अगर पत्नी की उम्र 18 साल से ज्यादा है तो उसे रेप नहीं माना जाता है।
ये सारे आंकड़े बताते हैं कि देश में कितनी तरह की समस्याएं महिलाओं के साथ होती हैं और इसके बारे में बार-बार बहस भी होती आई है, लेकिन फिर भी कानून बनने से ये अभी भी पीछे है। आपका इस मामले में क्या ख्याल है? अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।