अक्सर अपने सुना होगा कि जब भी घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो त्यौहार नहीं मनाने चाहिए और इस धारणा को लोग शास्त्रों से भी जोड़ते हैं, लेकिन क्या वाकई ऐसा है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि शास्त्रों में इस बात को जैसे उल्लेखित किया गया है उसके बिकुल विपरीत इस तथ्य को समाज में दर्शाया गया है। ऐसे में आइये जानते हैं कि क्या वाकई घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर त्यौहार मनाने बंद कर देने चाहिए।
जब परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो परिवार के सदस्यों को एक निश्चित अवधि के लिए अशौच अवस्था में माना जाता है। इस अवधि में परिवार के सदस्यों को धार्मिक और शुभ कार्यों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
आमतौर पर यह अशौच काल 10 से 13 दिनों का होता है जो मृतक के साथ संबंध और जाति के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है। इस दौरान परिवार शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरता है।
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इस अशौच काल का मुख्य उद्देश्य मृतक की आत्मा की शांति और सद्गति के लिए प्रार्थना करना, श्राद्ध कर्म करना और परिवार को शोक मनाने व मानसिक रूप से सामान्य होने का समय देना है। इस दौरान बाहरी दुनिया से कुछ हद तक दूरी बनाकर रखी जाती है। चूंकि त्योहार खुशी और उत्सव का प्रतीक होते हैं इसलिए अशौच काल में इन्हें मनाना वर्जित माना जाता है। शोक की स्थिति में उत्सव मनाना दिवंगत आत्मा का अनादर होता है।
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हालांकि, शास्त्रों में साफ तौर पर यह लिखित है कि 13 दिनों की अवधि के बाद घर के लोगों को हर त्यौहार मनाना चाहिए। यानी कि एक बार मृतक की तेरहवीं हो जाने के बाद घर में मसूयी और उदासी का माहौल रखते हुए त्यौहार न मनाना मृतक की आत्मा को कष्ट पहुंचाता है। कई लोगों के यहां घर में किसी की मृत्यु हो जाने के बाद 1 से लेकर 3 साल तक के अंतराल में कोई भी पर्व नहीं मनाया जाता है, जो कि पूर्णतः गलत है।
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इसके अलावा, कई लोग ऐसा भी करते हैं कि अगर किसी की घर में मित्यु हो गई है तो मृत्यु की संपूर्ण विधि के पश्चात जो पहला त्यौहार पड़ता है उसे लोग मनाने से कतराते हैं कि जबकि जरूर मनाना चाहिए वो त्यौहार और मनाते हुए प्रार्थना करनी चाहिए कि मृतक की आत्मा को शांति एवं मुक्ति दोनों मिले। शास्त्रों में पर्व या त्यौहार मृत्यु के बाद न मनाने की बात लिखी जरूर है लेकिन एक निश्चित अवधि के तहत, न कि हमेशा के लिए।
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