नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने का विधान है। इस साल चैत्र नवरात्रि की अष्टमी 5 अप्रैल, दिन शनिवार को पड़ रही है तो वहीं, नवमी तिथि 6 अप्रैल, दिन रविवार की है। ऐसे में कन्या पूजन 5 और 6 अप्रैल को होगा। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि कन्या पूजन देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का प्रतीक है, जिसमें छोटी कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है।
कन्या पूजन में 2 से 10 वर्ष की कन्याओंऔर एक लंगूर यानी कि बालक को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार भेंट किए जाते हैं। यह पूजा नारी शक्ति, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कन्या पूजन से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर कैसे करें कन्या पूजन।
नवरात्रि अष्टमी और नवमी कन्या पूजन सामग्री (Navami Kanya Puja Samagri)
कन्या पूजन के दौरान कई शुभ सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जो इस अनुष्ठान की पवित्रता और शुभता को बढ़ाते हैं। इनमें सबसे पहले कुमकुम या सिंदूर का महत्व है, जो पूजा के दौरान कन्याओं के तिलक के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे शुभता और मंगलकामना का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार, अक्षत का उपयोग देवी पूजन में किया जाता है और इसे कन्याओं के माथे पर लगाया जाता है, जो पवित्रता का प्रतीक है।
फूल भी पूजन का अभिन्न हिस्सा होते हैं, जिन्हें देवी और कन्याओं को अर्पित किया जाता है। इनसे वातावरण सुगंधित और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हो जाता है। इसके अलावा, पूजा के दौरान कलश स्थापित किया जाता है, जो पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस कलश को जल से भरकर अनुष्ठान के दौरान कन्याओं के पैर धोने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
कन्या पूजन में लाल कपड़ा या चुनरी विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। इसे पवित्रता और देवी दुर्गा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं को सम्मानपूर्वक यह चुनरी ओढ़ाई जाती है। इसके साथ ही, मिठाई, खीर या हलवा का भी विशेष महत्व होता है। हलवा, पूड़ी और चने का प्रसाद तैयार कर कन्याओं को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है और फिर इसे भक्तों में बांटा जाता है।
नारियल को उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को भेंट किया जाता है, जिससे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, कन्याओं को सजाने के लिए बिंदी, चूड़ी और पायल का उपयोग किया जाता है। यह सामग्री उन्हें सुंदरता और सम्मान देने के लिए दी जाती है, जिससे वे देवी स्वरूप और अधिक सजीव प्रतीत होती हैं। इन सभी सामग्रियों के प्रयोग से कन्या पूजन संपूर्ण और फलदायी बनता है।
नवरात्रि अष्टमी और नवमी कन्या पूजन विधि (Navami Kanya Pujan Vidhi)
कन्या पूजन करने से पहले उस स्थान को अच्छी तरह से साफ करना आवश्यक होता है, जहां अनुष्ठान संपन्न किया जाएगा। शुद्धता और पवित्रता बनाए रखने के लिए आप चाहें तो उस स्थान को रंगोली से भी सजा सकती हैं, जिससे माहौल और अधिक शुभ और सुंदर लगे। कन्याओं को बैठाने के लिए फर्श पर एक साफ चटाई या पवित्र कपड़ा बिछाना चाहिए, ताकि उन्हें आरामदायक स्थान मिल सके।
पूजन के दौरान उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियों को व्यवस्थित रूप से एकत्र करना भी आवश्यक है, ताकि अनुष्ठान के समय किसी प्रकार की असुविधा न हो। पारंपरिक रूप से, कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं को आमंत्रित किया जाता है, जो देवी के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसके साथ ही, एक लंगूर (यानी एक छोटे बालक) को भी आमंत्रित किया जाता है, जिसे भगवान भैरव का स्वरूप माना जाता है।
यदि नौ कन्याएं उपलब्ध न हों, तो पांच या सात कन्याओं को भी आमंत्रित किया जा सकता है, जिससे पूजन विधिपूर्वक संपन्न हो सके। घर पर आमंत्रित की गई कन्याओं की पूजा की शुरुआत उनके चरण धोने से की जाती है। यह देवी के चरणों को शुद्ध करने और घर में उनका स्वागत करने का प्रतीक माना जाता है। ऐसा करने से यह भावना प्रकट होती है कि स्वयं देवी दुर्गा के नौ स्वरूप घर पधारे हैं।
इसके बाद, प्रत्येक कन्या के माथे पर कुमकुम, रोली या सिंदूर का तिलक लगाया जाता है। यह तिलक सम्मान का प्रतीक होता है और देवी के आशीर्वाद का आह्वान करने के लिए लगाया जाता है। तिलक के बाद, उनके सिर पर अक्षत (चावल) छिड़के जाते हैं, जो पवित्रता और प्रचुरता का प्रतीक माने जाते हैं। इसके पश्चात, प्रत्येक कन्या को लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है, जो शक्ति और दिव्यता का प्रतीक होती है।
कन्या को चूड़ियां पहनाई जाती हैं और बिंदी लगाई जाती है, जिससे वे देवी स्वरूप में और अधिक सुशोभित लगती हैं। ये सभी वस्तुएं नारी शक्ति, सौंदर्य और आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती हैं और कन्या पूजन को संपूर्ण बनाती हैं। कन्या पूजन का मुख्य भाग कन्याओं को श्रद्धापूर्वक भोजन कराना होता है। इस अनुष्ठान में कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पारंपरिक रूप से पूड़ी, चना और हलवा का भोग अर्पित किया जाता है।
जब कन्याओं को भोजन परोसा जाता है, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें पूरे सम्मान और प्रेम के साथ भोजन कराया जाए, क्योंकि यह देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है। प्रसाद में विशेष रूप से हलवा, खीर और चने परोसे जाते हैं, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। जब सभी कन्याएं भोजन कर लें, तो उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
यह चरण वंदना न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कन्याओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का भी एक सुंदर तरीका है। अंत में, कन्याओं को उपहार और दक्षिणा भेंट की जाती है। दक्षिणा देना कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक होता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है और देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त हुई है। इस तरह, कन्या पूजन से भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक संतोष प्राप्त होता है।
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image credit: herzindagi
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