Mohini Ekadashi Vrat Katha 2025: मोहिनी एकादशी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, सुख-सौंदर्य का मिलेगा आशीर्वाद

जिस प्रकार से राहु के छल-कपट से भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में देवताओं की रक्षा की थी, ठीक उसी प्रकार से भगवान विष्णु उन भक्तों पर राहु की छाया भी नहीं पड़ने देते हैं जो मोहिनी एकादशी की व्रत कथा सुनते या पढ़ते हैं।  
mohini ekadashi 2025 ki vrat katha

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई, दिन गुरुवार को भक्तों द्वारा रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की विधि-विधान से पूजा की जाती है। शास्त्रों में वर्णित है कि जिस प्रकार से राहु के छल-कपट से भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में देवताओं की रक्षा की थी, ठीक उसी प्रकार से भगवान विष्णु उन भक्तों पर राहु की छाया भी नहीं पड़ने देते हैं जो मोहिनी एकादशी की व्रत कथा सुनते या पढ़ते हैं। ऐसे में आइये जानते अहिं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से मोहिनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।

मोहिनी एकादशी 2025 व्रत कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha 2025)

पौराणिक कथा के अनुसार, सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक सुंदर नगरी थी। इस नगरी में चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज्य करते थे। उसी नगर में धनपाल नामक एक अत्यंत धर्मात्मा और विष्णु भक्त वैश्य भी रहता था। वह हमेशा दान-पुण्य के कार्यों में लगा रहता था और गरीबों की सहायता करता था। धनपाल के पांच पुत्र थे - सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से जो सबसे छोटा पुत्र था, धृष्टबुद्धि, वह स्वभाव से बहुत ही बुरा और पापी था। वह जुआ खेलता था, शराब पीता था और वैश्याओं के साथ घूमता था। उसने अपने पिता का सारा धन बुरे कामों में बर्बाद कर दिया था।

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धनपाल अपने बेटे की इन आदतों से बहुत परेशान हो गया था। एक दिन वह इतना तंग आ गया कि उसने धृष्टबुद्धि को घर से बाहर निकाल दिया। घर से निकलने के बाद धृष्टबुद्धि और भी बिगड़ गया। वह चोरी और लूटपाट करने लगा और लोगों को सताने लगा। एक बार वह चोरी करते हुए पकड़ा भी गया, लेकिन उसके नेक पिता की वजह से उसे छोड़ दिया गया। इसके बाद वह जंगल में भटकने लगा और भूख-प्यास से परेशान होकर जानवरों को मारकर खाने लगा।

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एक दिन घूमते-फिरते वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम में पहुंच गया। उस समय वैशाख का महीना चल रहा था और महर्षि गंगा में नहाकर वापस आ रहे थे। धृष्टबुद्धि दुख और उदासी से भरा हुआ महर्षि के पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने पापों से छुटकारा पाने का तरीका पूछा। उसने कहा, 'हे महात्मा, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत बुरे काम किए हैं। कृपा करके मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं।'

महर्षि कौण्डिन्य ने उस पर दया दिखाई और कहा, 'हे पुत्र, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी का व्रत होता है। इस व्रत को करने से बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं। तुम श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करो।' धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बात मानकर विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप धुल गए और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। वह एक दिव्य शरीर धारण करके गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक चला गया।

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इस कथा का सार यह है कि मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है और श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत कथा को पढ़ने या सुनने मात्र से हजार गौदान का फल मिलता है।

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FAQ

  • मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को कौन से फूल चढ़ाएं?

    मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल चढ़ाने चाहिए, विशेष रूप से गेंदे का फूल।