Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो कि इस बार 08 मार्च को है। मान्यता है कि इसी दिन शंकर भगवान और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस खास दिन पर शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को आदि कारक माना गया है। कहते हैं शिव से ही ब्रह्मा, विष्णु और समस्त सृष्टि का उद्भव हुआ है। हालांकि, भोलेनाथ के स्वरूप की बात करें तो वह अन्य देवी-देवताओं से बिल्कुल अलग हैं। गले में फूल मालाओं की जगह रुद्राक्ष की माला, शरीर पर भस्म और वस्त्र में बाघ की छाल पहनते हैं। भगवान शिव के वस्त्र, अस्त्र और शस्त्र सभी अद्भुत होने के साथ विचित्र भी हैं। यही नहीं, इन सब के पीछे कुछ न कुछ अर्थ भी छिपा है। तो चलिए भोले भंडारी के 10 प्रतीकों और उनके महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।
भगवान शिव के गले में फूल या रत्नों की माला नहीं है। बल्कि, उन्होंने वासुकी नाग को अपने गले में धारण किया है। शंकर भगवान के गले में नाग तीन बार लिपटा हुआ है। इस प्रकार, यह भूत, वर्तमान और भविष्य का सूचक माना जाता है।
माना जाता है कि शिवजी की तीसरी आंख उनके क्रोध के समय खुलती है और यह खुलते ही प्रलय आ जाता है। वहीं, सामान्य परिस्थितियों में शिवजी की तीसरी आंख विवेक के रूप में जागृत रहती है। इस प्रकार, शिवजी तीसरे नेत्र को ज्ञान और सर्व-भूत का प्रतीक माना जाता है।
शिव के हाथों में अस्त्र के रूप में हमेशा त्रिशूल रहता है। शंकर भगवान के त्रिशूल में सात्विक, राजसी और तामसी तीनों गुण समाहित हैं। इस तरह, त्रिशूल को इच्छा, ज्ञान और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
शिव के हाथों में डमरू का होना सृष्टि के आरंभ और ब्रह्म नाद का सूचक माना जाता है। हालांकि, डमरू को संसार का पहला वाद्य यंत्र भी कहा जाता है।
भगवान शिव के सिर पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है। शिवजी ने अर्धचंद्र को आभूषण के तौर पर अपनी जटा में धारण किया है। यही कारण है कि शंकर भगवान को सोम और चंद्रशेखर भी कहा जाता है। दरअसल, भोलेनाथ के सिर पर विराजमान अर्ध चंद्रमा मन की स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है, जिसे शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है।
पौराणिक कथा के मुताबिक, शिवजी की जटाओं से ही मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर आगमन हुआ था। इस प्रकार, शिव द्वारा जटा में गंगा को धारण करना अध्यात्म और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
बाघ को शक्ति, ऊर्जा और सत्ता का प्रतीक माना जाता है। शिवजी वस्त्र के रूप में बाघ की खाल धारण किए हुए हैं, जो कि निडरता और दृढ़ता को दर्शाता है।
शिवजी के वाहन नंदी यानी बैल हैं, जिनके चारों पैर चार पुरुषार्थों जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को इंगित करते हैं।(शिवलिंग पर कितने शमी पत्र चढ़ाने चाहिए)
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शिव भगवान अपने शरीर पर भस्म लगाए हुए रहते हैं। इसका मतलब है कि संसार नश्वर है और हर वस्तु को एक दिन खाक हो जाना है। भस्म को शिव के विध्वंस का प्रतीक माना जाता है।
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