हिन्दू धर्म में तेरहवीं को महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन आत्मा पूरी तरह से अपने परिवार और घर को छोड़ देती है। इस दिन तेरहवीं का भोज करवाया जाता है, लेकिन सभी लोगों को ये खाना नहीं खाना चाहिए। आइए पंडित शिवम पाठक जी से जानें किसी की तेरहवीं का भोजन क्यों नहीं खाना चाहिए?
तेरहवीं का महत्व
गरूड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद 13 दिन तक मृतक की आत्मा का घर में ही वास होता है। मान्यता है कि इस दिन जरूरतमंदों को भोजन करवाने से आत्मा को शांति मिलती है।
महाभारत की कथा
महाभारत में इसके बारे में जानकारी मिलती है। दुर्योधन ने भोज आयोजित किया था और उसमें कृष्ण जी को भोजन करने के लिए आग्रह करते हैं, लेकिन कृष्ण जी वहां आने से मना कर देते हैं। कृष्ण कहते हैं, खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।
दुख का भोजन
तेरहवीं का भोजन दुख का होता है। इस दौरान खाना खिलाने वाला दुख में होता है। इस वजह से तेरहवीं या किसी का मृत्यु भोज खाने से बचना चाहिए।
क्षत्रियों को नहीं खाना चाहिए भोज
शास्त्रों के अनुसार कभी भी क्षत्रियों को ब्राह्मण के घर में भोज नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि क्षत्रियों का काम दान देना है न कि लेना।
ऊर्जा का नाश होता है
किसी की तेरहवीं का भोजन इसलिए भी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह दुख का भोजन होता है। इसे खाने से ऊर्जा का नाश होता है।
जरूरतमंदों का भोजन
तेरहवीं या मृत्यु भोज केवल जरूरतमंद लोगों को खिलाना चाहिए। संपन्न परिवार के लोगों को इसे खाने से बचना चाहिए। इससे उन्हें परेशानियां हो सकती हैं।
हक छिनने के समान
यदि आप आर्थिक तौर पर संपन्न होने के बाद भी तेरहवीं का भोज खाते हैं, तो यह गरीब का हक छिनने के समान है। इससे तरक्की और बरकत रूक जाती है।
किसी की तेरहवीं का भोजन इन वजहों से नहीं करना चाहिए। स्टोरी अच्छी लगी हो तो लाइक और शेयर करें। इससे जुड़ी अन्य जानकारी के लिए यहां क्लिक करें herzindagi.com