बिहार के एक गांव में एक महिला के साथ ऐसा सलूक कर रहे थे, जिसको सोचकर हर किसी की रूह कांप जाएगी। 40 साल की सरिता अकेले एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थीं। उसका ना पति था, ना ही बच्चा। 5 साल पहले पति की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई और बेटा बीमारी से मर गया। अकेली, गमों से घिरी, लेकिन आस्था में डूबी हुई यह महिला। अपनी जिंदगी का हर दिन बस जैसे तैसे काट रही थी। भले ही सरिता के घर में कोई नहीं था, लेकिन एक भोलेनाथ ही थे जिसके भरोसे वह जिंदा थी। सरिता कई बार आत्महत्या करने की कोशिश कर चुकी थी, लेकिन हर बार कोई न कोई उसे बचा लेता था। उसे लगता था कि भोलेनाथ चाहते ही नहीं है कि वह इस दुनिया को छोड़ कर जाए। इसलिए वह अकेले लेकिन हर रोज भोलेनाथ की पूजा करती और अपना गुजारा करती। सरिता खाना भी यहां-वहां से भीख मांग कर ही खाती थी।
गांव वालो को लगता था कि पति और बेटे की मौत के बाद वह सदमे आ गई है और पागल हो चुकी है। वह हर किसी को यही कहती, महादेव मेरे हैं, मेरा बेटा देंगे। मेरा पति भी लेकर आएंगे। तुम लोग सब देखते जाओ, एक दिन मेरा बेटा और मेरा पति जरूर आएगा। गांव वाले उसपर हंसते और उसका मजाक बनाते। एक दिन सरिता खाना मांगते हुए आस पास गांव में घूम रही थी। तभी उसे एक बच्चा नजर आया। बच्चा उसके बेटे राहुल की तरह दिख रहा था। सरिता भागते हुए राहुल-राहुल चिल्लाने लगी। बिखरे बाल-फटी पुरानी साड़ी, गंदे हाथ पैर देखकर बच्चा घबरा गया। वह सरिता को देखकर डर गया और मम्मी- मम्मी चिल्ला कर भागने लगा। बच्चे का ध्यान सरिता की तरफ था और अचानक....टक्कर, बच्चे को एक बस ने टक्कर मार दी। ड्राइवर डर के मारे निकलकर भाग गया। सरिता राहुल-राहुल कहकर लहूलुहान बच्चे को गोद में लेकर फिर से ठीक उसी तरह रो रही थी , जब उसके बेटे की मौत हुई थी। उसके रोने की आवाज सुनकर आस पास गांव से लोग अपने घरों से बाहर आए। बच्चे की मां ने जब सरिता की गोद में अपने बेटे को देखा तो उसके तो जैसे होश ही उड़ गए। गांव वाले गुस्से में सरिता से बच्चे को छीनने लगे। सरिता कहती रही, ये मेरा राहुल है।
उधर दूसरी तरफ उसकी मां तड़प कर सरिता को कोस रही थी। ये चुड़ैल है। पहले अपने पति और बेटे को खा गई और अब मेरे बेटे को भी इसने मार दिया।सरिता से यह इल्जाम सहा नहीं जा रहा था। गांव वाले सरिता पर गुस्से में पत्थर बरसाने लगे। सरिता लहूलुहान हो चुकी थी, लेकिन बार बार कह रही थी।नहीं नहीं , मैंने कुछ नहीं किया। मुझे मत मारो। बच्चा भागते हुए गाड़ी के आगे आ गया। गांव वालो से बचते हुए सरिता अपनी झोपड़ी में जाकर छिप गई।सरिता अकेले घर में बैठकर महादेव की तस्वीर के आगे फुट फूट कर रोने लगी।महादेव ये क्या हो रहा है। मैंने नहीं मारा। आपने देखा मैंने बच्चे को नहीं मारा। पूरा गांव मुझे कोस रहा है। पहले लोग मुझे पागल कहते थे और अब चुड़ैल और डायन कहकर बुला रहे हैं। दो दिन तक गांव का माहौल काफी अशांत था। लेकिन तीसरे दिन गांव वालों का गुस्सा शांत हो गया।
तीसरे दिन जैसे तैसे सरिता ने हिम्मत जुटाई और फिर अपनी झोपड़ी से बाहर आई। सावन के सोमवार का पहला दिन था। वह भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए गांव से बाहर जा रही थी। गांव के मंदिर में उसे लोग पूजा नहीं करने देते थे।लेकिन गांव के बाहर एक जंगल था , जहां एक शिवलिंग था। वहां कोई पूजा नहीं करने जाता था। इसलिए सरिता वहां शिवलिंग पर जल चढ़ाने जा रही थी।लोगों से नजरे चुराते हुए जैसे तैसे वह आधा गांव तो निकल चुकी थी। लेकिन उसे फिर रास्ते में एक आदमी दिखा।उसे लगा यह उसका पति है, वहीं कद, वही कपड़े, वही रंग। पीछे से देखने में यह बिल्कुल सरिता के पति की तरह था।
सरिता के हाथ से जल छूट गया और वह उस आदमी के पीछे दौड़ी। वह आदमी बाइक पर सवार था। सरिता उसके पीछे जैसे तैसे अपनी साड़ी संभलते हुए भाग रही थी। गांव वाले उसे देख रहे थे। वह बार बार कह रही थी। सुनिए जी सुनिए। रुकिए।।आदमी को लगा कि कोई औरत उसके पीछे आ रही है। उसने बाइक के शीशे में देखा। उसने बिना बाइक के रोके पीछे मूड कर देखा तभी सामने से ट्रक आ गया और उस आदमी की वहीं मौत हो गई।यह हादसा गांव वालों ने इस बार अपनी आंखों से होते देखा था। इसके बाद से लोग सरिता को अपशगुन और चुड़ैल समझने लगे। लोगों को लगने लगा कि सरिता जिसके पीछे भी जाती है उसकी मौत हो जाती है। इसको तुरंत गांव से बाहर निकाल दो।
सरिता पर फिर से लोगों ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और चिल्लाने लगे। ये चुड़ैल है, इसको गांव से बाहर निकालो। अगर ये आज बाहर नहीं गई तो आने वाले टाइम में ये सबकी जान ले लेगी।तभी गांव के सरपंच ने सबको रोका। यह फैसला आप लोग नहीं ले सकते। इस तरह आप किसी महिला पर मिलकर पत्थर नहीं बरसा सकते। मैंने भी अपनी आंखों से यह हादसा देखा है। मिलकर इसपर फैसला किया जाएगा। इसको छोड़ दो सरपंच की बात गांव वाले मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन फिर भी उसके पास कोई चारा नहीं था। सरिता रोते हुए लड़खड़ाते पैरों के साथ जैसे तैसे जंगल के बाहर शिवलिंग पर रोते हुए पहुंची। रोते हुए वह बस भोलेनाथ के आगे यही कह रही थी। महादेव अब मुझे नहीं जीना। आप जितनी मेरी परीक्षा लेना चाहते हुए ले चुके हो। अब मैं और नहीं जी पाऊंगी। अभी वह मरने की बात ही कर रही थी कि तभी उसके पीछे गांव के कुछ आदमी आ गए।सरिता को रोता देख बोले, भोलेनाथ नहीं हम तुझे आज ऊपर भेजेंगे।तू चुड़ैल है और अब हम तुझे गांव के किसी भी और व्यक्ति की जान लेने नहीं देंगें।
सरिता अब हार मान चुकी थी। वह भी जीना नहीं चाहती थी। रोते रोते उसने भी हाथ जोड़ते हुए कहा, हां भैया आज मुझे आप लोग मार ही दो।ये जिंदगी अब मैं और नहीं जी पाऊंगी।गुस्से में लाल खड़े गांव के लोग सरिता को जिंदा जलाने के फिराक में थे। लकड़ी की शैया पहले ही गांव वालों ने तैयार कर ली थी। आग लगाई और उसे जलते आग में जिंदा धक्का देने जा रहे थे। वह जैसे ही उसे उसे जलती हुई लकड़ी में धक्का मारने वाले थे। तभी अचानक तेज बारिश होने लगी।आसमान में एक अजीब सी रोशनी चमक रही थी, सबका ध्यान ऊपर की तरफ चला गया था..तभी आवाज आई..सरिता,... मां..सबका ध्यान पीछे की तरफ गया। ये कोई और नहीं बल्कि सरिता का पति और उसका बेटा था।
सरिता का पति गुस्से में गांव के आदमियों के पास आया और बोला। तुम लोग मेरी बीवी के साथ क्या कर रहे हो। उसका हाथ छोड़ो। सरिता अपने पति और बेटे को देखकर जैसे पागलों की तरह रोने लगी। भोलेनाथ ने आखिर उसकी सुनली थी। भोलेनाथ ने गांव वालों को यह साबित कर दिया कि वह पागल नहीं है। उसने किसी की जान नहीं ली। गांव वाले सरिता के पति और बेटे को देखकर हैरान थे। लेकिन उन्होंने सरिता का हाथ छोड़ दिया।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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