नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिन में भक्त पूजा-पाठ करते हैं और माता रानी को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही कुछ नवरात्रि की नवमी की रात मध्य प्रदेश के छिटोहा गांव के पुराने मंदिर में किया जा रहा था। जी हां, नवरात्रि की नवमी की रात थी, चांद आसमान में चमक रहा था और गांव के पुराने मंदिर के प्रांगण में हवन कुंड की अग्नि जल रही थी। अग्नि में पुजारी जी शुद्ध घी, कपूर और हवन सामग्री डाल रहे थे, जिसकी सुगंध चारों तरफ फैली हुई थी। पुजारी, श्रद्धालु और गांव के बड़े-बूढ़े मंत्रोच्चारण कर रहे थे। मंदिर में एक अद्भुत ही माहौल था लेकिन, मंत्रोच्चारण की गूंज और उस रात में कुछ तो अलग था। हवन कुंड के ठीक सामने एक बुढ़िया बैठी थी।
बुढ़िया ने गहरे लाल रंग का शॉल पहना था और उसने अपना सिर ढका था, लेकिन शॉल के किनारों से उसके घुंघराले, सफेद बाल साफ झलक रहे थे। बुढ़िया का चेहरा झुर्रियों से भरा था और उसकी आंखों में अजीब-सी चमक थी। आंखों की चमक के साथ उसके होठों पर रहस्यमयी चुप्पी थी जैसे वह किसी गहरी सोच में डूबी हो। जैसे-जैसे मंत्र पढ़ा जाता वैसे-वैसे वह हल्की-सी मुस्कान देती और उसकी आंखों की चमक लाल रंग में बदलती जाती, मानो जैसे वह किसी पल का इंतजार कर रही हो।
मंदिर में हो रहे हवन में मौजूद लोग उस बुढ़िया को नहीं पहचानते थे। ऐसे में उनके बीच थोड़ी-बहुत खुसर-पुसर भी चल रही थी बुढ़िया कौन है? कहां से आई है? लेकिन, किसी को इन सवालों का जवाब नहीं पता था। लेकिन, वहां हर किसी की नजर बुढ़िया पर टिकी थी क्योंकि हर पल के साथ वह रहस्यमयी और विचित्र होती जा रही थी।
नवमी की रात जैसे ही अपने तीसरे पहर में पहुंची और हवन में अंतिम आहुति दी गई, बुढ़िया ने खूब गहरी सांस ली जिसकी आवाज हर किसी के कान में पड़ी। फिर बुढ़िया ने अपने सिर से शॉल हटाया और धीरे-धीरे वह पलटी। उसके पलटते ही पुराने मंदिर के प्रांगण में सन्नाटा छा गया। ठंडी-ठंडी हवा चलने लगीं और मंदिर में जल रहे दीपकों की ज्योतियां टिमटिमाने लगीं।
तभी एक धीमी लेकिन, गूंजती आवाज सुनाई दी, "बेटा अब समय आ गया है।" वह आवाज किसी और की नहीं, बल्कि उस बुढ़िया की थी। तभी पुजारी ने बुढ़िया को अचंभे के साथ देखा और कांपती आवाज में कहा, "आप कौन हैं माता?
पुजारी की कांपती आवाज सुनकर बुढ़िया मुस्कुराई और बोली, "बहुत वर्षों से मैं इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। मुझे मुक्ति चाहिए।"
"मुक्ति, मुक्ति...क्या मुक्ति?" पुराने मंदिर में सेकेंडों में यह आवाज सुनाई देने लगी और गांव के बड़े-बुजुर्गों की आंखें फैल गईं। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि बुढ़िया क्या कह रही है। तभी गांव के सरपंच ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर पूछा, "मुक्ति? पर आप कौन हैं?
बुढ़िया ने गहरी सांस ली और चारों तरफ से हवाएं तेज हो गईं। फिर बुढ़िया बोली, "बहुत साल पहले जब इस गांव में महज 20 घर हुआ करते थे, तब यहां एक लड़की रहती थी, जिसका नाम था गौरी।"
गौरी नाम सुनते ही गांव के बड़े-बूढ़ों के चेहरे पर शंका और आश्चर्य के भाव उभर आए। तभी गांव के जमा लोगों के बीच से किसी ने फुसफुसाकर कहा, "गौरी? लेकिन, यह तो 100 साल से पहले की बात है।" बुढ़िया के कान में यह बात पड़ गई और उसने कहा, "हां 100 साल पहले की बात है और मैं ही वह गौरी हूं। यह सुनते ही सबके रोंगटे खड़े हो गए।"
गांव के पुजारी ने दबी आवाज में कहा, "यह नामुमकिन है।" इसके बाद बुढ़िया या यू कहें गौरी ने आगे कहना शुरू किया, "सौ साल पहले, मैं इसी हवन कुंड के पास खड़ी थी, जब गांव में एक भयानक घटना घटी।"
तभी सरपंच के बेटे करण ने पूछा, "कौन-सी घटना?" बुढ़िया ने रहस्यमयी और दबी आवाज में कहा, "राक्षस का आगमन।" यह बात सुनते ही गांव के लोगों में सन्नाटा पसर गया, क्योंकि यह कहानी तो बच्चों को डराने के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जा रही थी, लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह सच भी है या नहीं।
बुढ़िया ने जैसे ही राक्षस का जिक्र किया, तभी आंधी चलनी शुरू हो गई और मंदिर के घंटे जोर-जोर से बजने लगे। तेज आंधी और मंदिर के घंटों की आवाज के बीच बच्चों की चीखें भी सुनाई देने लगीं। तब बुढ़िया ने आगे कहा, "100 साल पहले, इस गांव में नवरात्रि की नवमी की रात राक्षस का आगमन हुआ था। ऐसे ही हवन चल रहा था, तभी अचानक तेज आंधी चलने लगी और एक परछाई मंदिर की चौखट पर आकर खड़ी हो गई।
गांव के लोगों की नजर जब परछाई पर पड़ी तो देखा तो एक 11 फीट ऊंचा बिना सिर वाला आदमी था। इस भयंकर परछाई को देखकर गांव के सभी लोग डर गए और इधर-उधर भागकर छिपने लगे। तभी उस परछाई की तरफ से खूंखार हंसी सुनाई दी और उसने मंदिर में रखी मां दुर्गा की मूर्ति मांगी।
मां दुर्गा की मूर्ति की बात सुनते ही गांव के लोगों में अफरा-तफरी का माहौल बन गया और गुस्से में पुजारी सामने आ गए और कहा, मां दुर्गा की मूर्ति को अगर हाथ लगाया गया तो अनर्थ हो जाएगा और यहां सब कुछ भस्म हो जाएगा। तब मां दुर्गा की मूर्ति और गांव को बचाने के लिए पुजारी ने जोर-जोर से मंत्र उच्चारण शुरू कर दिया।
पुजारी की हिम्मत देखकर राक्षस गुस्से में आ गया। राक्षस ने गुस्से में पुजारी को चोट पहुंचाने और मंत्रों को तोड़ने की कोशिश की। यह देखकर गांव की महज 18 साल की लड़की यानी गौरी सामने आई और उसने हवन कुंड से जलती लकड़ी उठा ली और राक्षस के सामने खड़ी हो गई।
मां दुर्गा की मूर्ति और गांव वालों की जान बचाने के लिए गौरी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। लेकिन, राक्षस पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ।" इतना कहकर बुढ़िया रुक गई।
तभी गांव का पंच बोला कि, "उस राक्षस की आत्मा आज भी भटक रही है और जो पिछले साल नवरात्रि के समय श्यामू का लड़का गायब हुआ था वह भी उसी राक्षस की करतूत थी। इतना ही नहीं, हर साल नवरात्रि की समय किसी की अचानक मृत्यु और सिर्फ हमारे ही गांव में सूखा, बाढ़ या बीमारी का फैल जाना भी राक्षस की आत्मा कर रही है।"
पंच की बात खत्म होती इससे पहले ही बुढ़िया ने बीच में रोका और कहा, "राक्षस को रोकने और उसे पूरी तरह नष्ट करने के लिए ही मैं वापस आई हूं। और आज ही वह रात है जब इस मंदिर की चौखट पर राक्षस आएगा और उसका अंत होगा।"
बुढ़िया की बात सुनते ही गांव के लोग सहम गए। फिर बुढ़िया आगे बढ़ी और हवन कुंड के सामने खड़ी हो गई। तभी पुजारी ने घबराकर पूछा, "लेकिन माता आप क्या करने जा रही हैं?" बुढ़िया ने दमदार आवाज में कहा, "जो 100 साल पहले अधूरा रह गया था, उसे पूरा करने जा रही हूं।" यह कहते समय बुढ़िया की आंखों में सूरज जैसी चमक थी।
बुढ़िया ने अपनी आंखें बंद कर लीं और अचानक ही उसके चेहरे की झुर्रियां गायब होने लगीं। बुढ़िया की कमर सीधी और गई और पलक झपकते ही वह 18 साल की सुंदर लड़की में बदल गई। यह नजारा देखते ही गांव के लोगों सिरहन दौड़ पड़ी।
गांव वाले कुछ समझ पाते इससे पहले हवन कुंड की अग्नि जल गई और मंदिर की घंटियां अपने आप बजने लगीं। तेज आंधी थमने का नाम नहीं ले रही थी और धूल-मिट्टी से गांव वाले अपनी आंखें मलने लगे। गौरी ने तब चिल्लाकर कहा, "ओ दुर्गा मां की मूर्ति के चोर...ओ दुर्गा मां की मूर्ति के चोर।"
गौरी के इतना कहने की देर थी कि तभी इतनी जोर से धमक हुई और धरती हिलने लगी, जैसे कोई बादल फट गया हो और आसमान से कहर बरस गई हो। गांव का पुजारी, बड़े-बूढ़े कुछ समझ पाते की इससे पहले एक 11 फीट की बिना सिर वाली परछाई मंदिर की चौखट पर आ खड़ी हुई।
परछाई को देखकर बच्चों और औरतों की चीख ही निकल गई। तभी बुढ़िया ने सभी गांव वालों को आदेश देते हुए मां दुर्गा की मूर्ति के पास जाने के लिए कहा। बुढ़िया की बात गांव वालों ने ऐसे मानी जैसे किसी मां की बात बच्चे मानते हैं।
उधर बुढ़िया यानी गौरी का राक्षस से आमना-सामना हुआ। राक्षस के सामने जाते ही गौरी की आंखें खून से भी ज्यादा लाल हो गईं और उसके चेहरे का रंग ज्वालामुखी के लावा की तरह हो गया। गौरी को देखकर राक्षस जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, "अरे तू वापस आ गई?"
गौरी ने भी बिजली-सी कड़कड़ाती आवाज में बोला, "तू भी तो वापस आ गया?"
यह नजारा देखकर गांव के लोग डर गए और मां दुर्गा की मूर्ति के पीछे छिपकर छड़े हो गए। तब गौरी ने अपनी लाल रंग की शॉल उतारी और हवन कुंड में हाथ डालकर जलती लकड़ी को हाथ में उठा लिया।
गौरी की हाथ में लकड़ी देखकर राक्षस एक बार फिर से खूंखार हंसी हंसने लगा और कहने लगा, "तू फिर 100 साल पहले की तरह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।"
गौरी यह बात जानती थी कि जब तक मंत्रों का उच्चारण नहीं होगा तब तक वह राक्षस का खात्मा नहीं कर पाएगी। तब ही गौरी ने पुजारी को मां दुर्गा की आरती और मंत्रों का उच्चारण करने के लिए कहा। जैसे ही पुजारी ने मां दुर्गा की आरती शुरू की वैसे ही राक्षस अपने घुटनों पर आ गया और तड़पने लगा। तब गौरी ने हवन कुंड की जलती लकड़ी को राक्षस की नाभि वाले हिस्से में घोंप दिया।
राक्षस अपनी भयानक और डरावनी आवाज में नहीं, "नहीं...नहीं" चिल्लाने लगा। यह नजारा इतना भयावह था कि गांव के बच्चों की आंखों के आगे अंधेरा आ गया और तारे नाचने लगे। वहीं, देखते ही देखते 11 फीट का राक्षस राख का ढेर बन गया। गौरी ने मंदिर के दरवाजे पर प्याऊ के रखे मटके को खाली किया और उसमें राक्षस की राख डाल दी।
राक्षस के नष्ट होते ही गौरी की लाल आंखें सामान्य हो गईं और चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा, "अब मेरा काम पूरा हो गया है और मैं सुकून से अपनी जगह जा पाऊंगी।"
गांव के लोग इससे पहले कुछ समझ पाते कि गौरी ने राक्षस की राख वाला मटका उठाया और एक चमकती रोशनी के साथ गायब हो गई। गौरी एक हवा के झोंके की तरह आई और उसकी तरह ही चली गई। लेकिन, गांव वालों के मन में नवरात्रि की वह रात किसी चमत्कारी रात की बैठ गई।
सदियां बीतने और पीढ़ियां बदलने के बाद भी गांव वालों के मन में नवरात्रि की नवमी की वो रात किसी पिछले दिन की तरह बसी हुई है। आज भी जब नवरात्रि आती है और पुराने मंदिर में मां दुर्गा की मूर्ति के सामने हवन के साथ मंत्रोच्चारण होता है तो ठंडी हवाएं चलती हैं और एक अद्भुत शक्ति का अहसास होता है...यह कहते-कहते गांव के पंच की पत्नी दुर्गा देवी अपनी बेटी गौरी के सिर पर हाथ फेरती है।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
----समाप्त----
इसे जरूर पढ़ें: सुमन का गहरा पक्का रंग उसकी शादी में अड़चन बन रहा था, 80 हजार सैलरी उठाने वाली लड़की के लिए एक ऐसा रिश्ता आया जिसे...
इसे जरूर पढ़ें: 'क्या आप मेरी सगी मां हैं?' सुमन का ये सवाल मां को चुभ गया, अपनी बेटी के साथ वो क्या करने जा रही थीं उसका होश नहीं था, उन्हें बस किसी तरह से उसकी शादी करनी थी...
इसे जरूर पढ़ें: विमेंस डे के दिन ही सुमन अपनी शादी को लेकर एक बड़ा ऐलान करने वाली थी, आखिर ये फैसला उसकी जिंदगी को बर्बाद करने वाला था या नए सफर की शुरुआत होने वाली थी, पढ़ें आखिरी पार्ट में...
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों