चाहत के मामा ने उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से तय कर दी है जो उससे दोगुनी उम्र का है। चाहत भी अनुज को चाहती थी, लेकिन क्या करे वो मजबूर थी। मामजी का वो दोस्त लंबे समय से चाहत पर नजर रखे हुए था। इतना ही नहीं चाहत के मामा जी ने चाहत को इमोशनली ब्लैकमेल करके अभी तक उससे कई काम करवाए थे। चाहत की मेहनत का फल भी मामा जी ही ले रहे थे। चाहत को तो ये भी नहीं पता था कि उसके साथ होने क्या वाला है। अनुज को कुछ करना था, उसने चाहत से सिर्फ एक ही बात पूछी, 'क्या तुम मेरे साथ जिंदगी बिताने को तैयार हो?' चाहत ने हां कहा और अनुज के गले लग गई।
चाहत का फोन लगातार बज रहा था। उसे पता था कि क्या होने वाला है। वह लड़की मामा जी की बेटी थी। चाहत जानती थी कि अब तक मामा जी को खबर लग गई है कि वो किसी लड़के के साथ कैफे में बैठी है। मामा जी वैसे तो चाहत को अपने परिवार से दूर रखते थे, लेकिन किसी ना किसी तरह से चाहत की जासूसी जरूर करते रहते थे।
चाहत के घर जाते ही मामा जी उसपर बरस पड़े। 'तुम्हें नहीं लगता कि शादी तय होने के बाद ऐसी हरकतें नहीं करनी चाहिए। ये क्या तरीका होता है? दिन रात तुम्हारा ध्यान रखा, तुम्हें पाला-पोसा फिर भी ऐसा करोगी, नाक में दम कर दिया है तुमने', चाहत की बात सुने बिना ही मामा जी उसपर बरस पड़े। 'इसलिए ही तुम्हें ज्यादा बाहर नहीं भेजता हूं मैं। कुछ भी करती हो।' चाहत की ओर गुस्से से देखकर मामा जी बोले जा रहे थे।
चाहत ने बचपन से यही सब तो सुना था, अब मामा जी का फरमान आएगा कि बाहर निकलना बंद। पर इस बार चाहत के साथ अनुज था। चाहत के मन में अनुज की बातें गूंज रही थीं, 'मैं तुम्हारे साथ हूं।' इस बार चाहत तैयार थी मामा जी से लड़ने के लिए। चाहत ने कहा, 'मामा जी, आपने मुझसे पूछे बिना मेरी शादी तय कर दी, लेकिन मैं उस इंसान से शादी नहीं करना चाहती। मैं अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूं। आपने मेरी परवरिश की इसके लिए धन्यवाद, लेकिन मैं अब अपने साथ ये नहीं होने दे सकती।' चाहत की हिम्मत देख मामा जी भी हैरान थे।
चाहत को कोशिश करने के लिए गल पर एक थप्पड़ मिला। फिर भी उसके हौंसले नहीं टूटे थे। चाहत दो-तीन दिन तक ऑफिस नहीं आई, तो अनुज को चिंता हुई। उसने अपने बॉस से प्रोजेक्ट के बहाने पूछ लिया। बॉस का सीधा सा जवाब था, अब वो नहीं कोई और रिप्रेजेंटेटिव आएगा। तभी चाहत के मामा जी वहां आ गए। धीरेंद्र जी उर्फ चाहत के मामा जी अपने सूट-बूट में ऐसे लग रहे थे जैसे मोगैम्बो खुद आ गया हो। बॉस के पुराने दोस्त धीरेंद्र जी ने अनुज से प्रोजेक्ट की बातचीत की और चलते बने।
अनुज समझ गया था कि चाहत से मिलने के लिए अब उसे कोई और तरकीब निकालनी पड़ेगी। जाते हुए धीरेंद्र जी को रोककर अनुज ने कहा, 'क्या मैं आपको फाइल्स घर आकर दे जाऊं? मैं इसे जल्दी खत्म करना चाहता हूं।' अनुज की बात सुनकर धीरेंद्र जी खुश हुए और बॉस भी, अनुज किसी तरह धीरेंद्र जी के घर पहुंचा और वहां उसे उनकी पत्नी दिखी और वही लड़की जिसने उसे और चाहत को साथ देखा था। पर किसी वजह से वह अनुज को पहचान नहीं पाई।
अनुज ने एक गिलास पानी मांगा और फिर इधर-उधर देखने लगा। चाहत कहीं नहीं थी। उसके पास बहाने भी खत्म हो गए थे। वह मुड़ा और गार्डन की तरफ देखने लगा। वहां दूर एक कमरा था जिसके सामने खड़ी थी चाहत। इतने बड़े घर में चाहत के लिए एक कमरा भी नहीं था। उसे नौकरों वाले कमरे में रखा गया था। चाहत पर नजर पड़ते ही अनुज ने धीरेंद्र जी से कहा, 'सर आपका गार्डन बहुत अच्छा है। मुझे भी गार्डनिंग का शौक है, क्या मैं एक बार वहां जाकर देख सकता हूं।' धीरेंद्र जी ने भी हंसते -हंसते हां कर दिया। फिर अनुज चाहत के पास गया। चाहत अनुज को देखकर चौंक पड़ी, उसे नहीं पता था कि अनुज यहां कैसे आ गया, लेकिन उसे देखकर अच्छा लगा।
'तुम यहां क्या कर रहे हो?', चाहत ने पूछा। 'मैं किसी तरह से यहां आया हूं, तुम आ क्यों नहीं रही, क्यों तुम मेरे फोन कॉल का जवाब नहीं दे रही हो?' अनुज ने एक बार में कह दिया। 'मामा जी ने मेरा फोन अपने पास रखा हुआ है। मुझे बाहर निकलने की इजाजत नहीं। मैं क्या करूं समझ नहीं आ रहा है।' चाहत ने रोते हुए कहा। 'वो मेरी शादी तुरंत करवा देना चाहते हैं। अनुज मुझे भगाकर ले जाओ।' चाहत बोली। इतने में पीछे से आवाज आई, 'पापा ये वही लड़का है।' चाहत की कजिन ने जोर से चिल्लाया।
धीरेन्द्र जी ने आकर अनुज का कॉलर पकड़ लिया, 'अच्छा तो इस लिए आया था तू घर,' उसे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। मामी और मामा जी ने चिल्ला-चिल्ला कर मोहल्ले वालों के सामने अनुज की बेइज्जती की, 'अच्छा इसी से आंख मटक्का करती थी तू, इसलिए ऑफिस जाती थी।' मामी बोलीं। 'नहीं उसे कुछ मत कहो, उसकी गलती नहीं है।' चाहत ने चिल्लाया। अनुज को गली के बाहर तक धक्का दे दिया गया और पुलिस बुलाने की धमकी भी दी गई। अनुज अपना सा मुंह लेकर बाहर चला गया और आवाजें आती रहीं। मामा-मामी मोहल्ले वालों के सामने चिल्ला रहे थे कि बिन माता-पिता की बच्ची को पालने का यह नतीजा हुआ।
चाहत के बारे में सोचता-सोचता अनुज वापस घर आ गया। अगले दिन ऑफिस जाते ही बॉस ने केबिन में बुला लिया। 'अच्छा तो तुमको आशिकी सूझ रही है,' बॉस ने कहा। 'धीरेन्द्र ने मुझे सब बता दिया है। तेरे पास एक ही ऑप्शन है। या तो आशिकी कर या फिर अपनी नौकरी बचा। तेरे खिलाफ पुलिस में शिकायत करने जा रहे थे वो लोग, हैरेसमेंट की। तुझे बचाया है मैंने। अब अगर तूने आशिकी जारी रखी, तो नौकरी तो जाएगी ही, किसी और कंपनी में जॉब भी नहीं मिलेगी और जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।' बॉस ने गुस्से में कहा।
अनुज बॉस की बात सुनकर डर गया, लेकिन चाहत का ख्याल उसके दिमाग से जा ही नहीं रहा था। वो देर रात तक ऑफिस में बैठा रहा। बाहर फिर बारिश होने लगी थी। बाहर निकलकर उसने फिर उसी जगह एक चाय की प्याली ली और गुमसुम, उदास अनुज उसे बिना पिए ही चला गया। घर पहुंच कर बालकनी में जाकर खड़ा हो गया। वहां से उसने देखा कि एक साया उसके घर की तरफ आ रहा है। वह चाहत थी। चाहत बदहवास बारिश में भीगती हुई, हाथ में एक बैग लिए उसके पास चली आ रही थी।
आखिर क्या हुआ था चाहत को? क्यों उसके हाथ में एक बैग था? क्यों चाहत बदहवासी में अनुज के पास भागती हुई आ रही थी? इन सभी बातों का जवाब मिलेगा कल, एक गर्म चाय की प्याली-पार्ट 4 में।
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