अमावस्या की रात थी, गांव में मेला लगा था और मंदिर में दुर्गा मां की चौंकी का आयोजन किया गया था। जिसके लिए मीनू और काव्या सज-धजकर घर से निकली थीं। पूरे गांव में भजन और कीर्तन की गूंज थी। मंदिर से निकलने के बाद मीनू और काव्या ने आज की रात गांव का चक्कर मारने का फैसला लिया, वैसे भी दोनों को यह मौका परिवार के सामने बहुत मिन्नतें करने के बाद मिला था।
मंदिर जाने के बहाने मीनू और काव्या को गांव भर घूमने का मौका मिल गया था और दोनों चलते-चलते उस पुरानी हवेली के पास पहुंच गई थी, जो सालों से अंधेरे में डूबी हुई थी। इस हवेली के बारे में गांव में जिससे भी पूछो वह अलग ही कहानी बताता था। कोई कहता था कि वहां आत्माएं रहती हैं, तो कोई कहता था वहां जादू-टोना होता है। पुरानी हवेली के अंदर रात में तो क्या, कोई दिन में भी उसके आस-पास भटकने की कोशिश नहीं करता था। लेकिन, मीनू और काव्या रोमांच की शौकीन थीं और उन्होंने आंखों ही आंखों में आज की रात हवेली के राज से पर्दा उठाने का फैसला कर लिया।
मीनू और काव्या ने जैसे-जैसे पुरानी हवेली की तरफ कदम बढ़ाया, दोनों सहेलियों को सूखे पत्तों की आवाज और ठंडी हवा ने कंपा दिया। हवेली के दरवाजे पर एक पुराना ताला लटका था, लेकिन वह पहले से ही खुला था।
मीनू ने आगे बढ़कर हवेली के दरवाजे को खोला और देखा कि चारों तरफ मकड़ियों के जाले लटक रहे थे, सीढ़िया चटकी हुई थीं और चारों तरफ अंधेरे के साथ अजीब सन्नाटा पसरा हुआ था। यह नजारा देखकर एक पल के लिए काव्या के दिल की धड़कने बढ़ गईं और उसने मीनू को वापस चलने के लिए कहा। लेकिन, पुरानी हवेली में कदम रखते ही मीनू कुछ बदल-सी गई और उसने अपनी दोस्त काव्या की एक नहीं सुनी।
काव्या भी क्या करती, अपनी दोस्ती मीनू के पीछे-पीछे चल दी। तभी...हवा में झूलती एक काली गुड़िया उनकी नजरों के सामने आ गई। वह गुड़िया सफेद, खोखली आंखों और अजीब-सी मुस्कान के साथ उन्हें घूर रही थी। तभी एक जोर से हवा का झोंका आया और गुड़िया ने हिलना शुरू कर दिया।
मीनू ने काव्या से तब कहा, "क्या तुमने यह देखा?" पुरानी हवेली में कदम रखने के बाद मीनू के ये पहले शब्द थे।
काव्या जो पहले ही डर गई थी, उसके गले से कांपते हुए आवाज निकली, "हां...लेकिन यह संभव कैसे है?"
गुड़िया हिलती रही और तभी खिड़की से ठंडी हवा का झोंका आया। मीनू और काव्या की नजर खिड़की पर पड़ी और उससे बाहर झांकते ही दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया। दोनों को लगा कि वहां से कोई सफेद साया तेजी से गुजरा है।
मीनू और काव्या संभल पातीं कि इतनी ही देर में उनकी नजर एक पुरानी लकड़ी की मेज पर पड़ी। मेज पर धूल से ढकी एक मोटी किताब पड़ी थी, जिसकी तरफ काव्या ने कदम बढ़ाए लेकिन पहला पन्ना खोलते ही अपने हाथ पीछे खींच लिए। किताब के पन्ने खून से सने थे और पहले पन्ने पर लिखा था, "जो इस हवेली में आएगा, वापस नहीं जा पाएगा।" यह देखते ही मीनू और काव्या के शरीर में सिरहन दौड़ गई।
मीनू और काव्या ने डरकर हवेली से निकलने की कोशिश की, लेकिन तभी डरवाजे और खिड़कियां एक साथ बंद हो गए। दरवाजों के बंद होते ही काली गुड़िया की आवाज गूंजने लगी और दोनों लड़कियों की चीख निकल गई। तभी एक धीमी-सी हंसी की आवाज आई।
"क...कौन है वहां?" काव्या ने कांपती आवाज में पूछा। तभी सीढ़ियों पर सफेद साड़ी में एक लड़की दिखाई दी, उसका चेहरा अंधेरे में छिपा हुआ था। लेकिन, उसकी आंखे जलते अंगारों जैसी चमक रही थीं और वह धीरे-धीरे मीनू और काव्या की तरफ बढ़ने लगी।
मीनू ने लड़की की तरफ टॉर्च घुमाई लेकिन, रोशनी पड़ते ही वह गायब हो गई और उन्हें दीवार पर खून से लिखा दिखाई दिया, "तुमने मेरी शांति भंग की है...अब तुम नहीं बचोगी।"
मीनू और काव्या ने एक बार फिर भागने की कोशिश की और जैसे ही दरवाजे की तरफ बढ़ीं, उनके पैरों के नीचे से जमीन हिलने लगी और वह दोनों तहखाने में गिर गईं।
तहखाने में घना अंधेरा था, लेकिन कोने में एक पुराना झूला हिल रहा था जिस पर वही काली गुड़िया बैठी थी और हल्का-हल्का मुस्कुरा रही थी। इतनी ही देर में मीनू का हाथ एक ऐसी चीज पर पड़ा, जिसे देख वह जोर से चिल्लाई। मीनू के चिल्लाते ही काव्या की नजर भी उस चीज पर पड़ी और वह डरकर लगभग बेहोश हो गई। वह चीज और कुछ नहीं बल्कि कटी-फटी एक लड़की की लाश थी, जिसकी आंखें खुली थी।
तभी काली गुड़िया जोर-जोर से हंसने लगी और बोली, "सालों पहले यहां एक जमींदार रहता था अपनी बेटी पारो के साथ। पारो बहुत सुंदर और मासूम थी लेकिन, उसकी मां की मौत के बाद पिता ने उसे हवेली में कैद कर लिया था..." इतना कहकर गुड़िया चुप हो गई।
मीनू और काव्या डरकर चिल्ला ही रही थीं कि काली गुड़िया फिर बोली, "यह तुम्हारे पास पारो ही है।" मीनू और काव्या ने एक बार फिर लाश की तरफ देखा तो उन्हें उसके हाथ में वही काली गुड़िया दिखी, जो अब झूले पर झूल रही थी।
मीनू और काव्या कुछ समझ पातीं कि पारो की लाश और काली गुड़िया गायब हो गई। और एक दीवार पर कंकाल जैसा चेहरा और टूटी हड्डियों वाली परछाई दिखाई देने लगी।
"तु्म्हें मेरा दर्द महसूस करना होगा..." उस परछाई की तरफ से आवाज आई। इसके बाद काव्या का शरीर अजीब तरह से कांपने लगा।
काव्या की आंखें सफेद हो गईं और उसकी आवाज भारी हो गई। "मुझे छोड़ दो", काव्या ने चीखकर कहा। काव्या को देखकर मीनू डर गई उसे ऐसा लग रहा था कि काव्या को किसी ने अपने वश में कर लिया है।
काव्या के बाल खुल गए और उसने मीनू की तरफ गुस्से से देखा। मीनू को काव्या की आंखों में पारो की झलक दिखाई देने लगी।
"अब तू मेरी जगह लेगी मीनू...." काव्या ने भारी आवाज में कहा। मीनू ने कांपते हुए कहा, "काव्या...यह तुम क्या कर रही हो?"
काव्या के शरीर में पारो की आत्मा आ गई थी और उसने मीनू की तरफ देखा और कहा, "तुम यहां से नहीं जा सकती..." तुम्हारी वजह से ही मेरा यह हाल हुआ है। यह सुनते ही मीनू का सिर तेज दर्द से फटने लगा और उसकी आंखों के सामने एक सीन आ गया, जिसमें पारो उससे बात कर रही थी।
पारो बोली, "तुम मुझे भूल गई मीनू? बचपन में हम साथ खेलते थे और मेरी गुड़िया तो तुमने तोड़ दिया था। यह कोई आम गुड़िया नहीं थी, इसमें मेरी मां की जान थी। तुम्हारे गुड़िया तोड़ते ही मेरी मां चली गई और मेरे पिता ने मेरी यह हालत कर दी।"
यह सुनकर मीनू चौंक गई और बोली, "...नहीं! यह सच नहीं हो सकता है।" लेकिन, पारो की आत्मा ने मीनू को हवा में उठा लिया और जोर से चिल्लाई, "अब तुम्हें मेरा दर्द सहना होगा।"
मीनू की आंखे पलटने लगी, लेकिन तभी उसके कान में मंदिर की घंटी सुनाई देने लगी। मंदिर की घंटियों की आवाज सुनकर मीनू ने खुद को संभाला और अपने गले से मां दुर्गा का लॉकेट खींच लिया और पूरी ताकत से काव्या के माथे पर रख दिया। तभी एक तेज चीख पूरी हवेली में गूंज उठी।
काव्या का शरीर थर-थर कांपने लगा और पारो की आत्मा उससे निकलकर चीखती हुई हवेली की दीवार में समा गई। काव्या बेहोश हो गई।
चीख के शांत होते ही तहखाने में रोशनी हो गई और मीनू को एक दरवाजा दिखाई दिया। मीनू ने जैसे-तैसे काव्या को संभाला और वह उसे लेकर हवेली से बाहर भाग आई।
मीनू और काव्या जब घर लौटीं, तो वो दोनों पूरी तरह से थकी और सहमी हुई थीं। काव्या बेहोशी की हालत में थी और उसकी सांसे तेज चल रही थीं। घर और गांव के लोगों ने उसे मंदिर से लाकर पानी पिलाया, तब उसकी आंखे धीरे-धीरे खुलीं, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब-सुस्ती और खोई चमक थी।
अगली सुबह गांववालों ने हिम्मत जुटाकर हवेली जाने का फैसला किया। वह हवेली के अंदर गए तो वहां सिर्फ सन्नाटा था। लेकिन, उन्हें हवेली की दीवार पर खून से लिखा दिखाई दिया, "मैं वापस आऊंगी।" यह देखकर सभी डर गए और लौट आए।
शाम होते-होते काव्या थोड़ी सामान्य होने लगी, लेकिन मीनू के चेहरे पर अजीब और अनजाना डर था। वह इस डर में जल्दी सो गई। फिर अचानक आधी रात को गहरे सन्नाटे में उसकी नींद खुली तब उसे लगा कि कमरे में कोई है। बाहर से आती रोशनी में मीनू ने देखा कि काव्या खिड़की के पास खड़ी थी।
"काव्या...?" मीनू ने हल्की आवाज में पुकारा। लेकिन, काव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। मीनू बिस्तर से उठकर जैसे ही काव्या के पास गई वह पलट गई। यह देखकर मीनू की धड़कन रुक-सी गई, क्योंकि काव्या की आंखे पूरी तरह से सफेद थीं, उसके होंठ हल्के-हल्के हिल रहे थे, लेकिन कोई आवाज नहीं आ रही थी।
काव्या की गर्दन के पास एक लाल निशान उभर आया यह बिल्कुल वैसा ही था जैसे पारो की गर्दन पर था। यह देखकर मीनू कांप गई।
"प...पारो?" मीनू ने कांपते हुए कहा। काव्या ने सिर झुकाया और अजीब-सी मुस्कान दी। फिर उसकी आवाज में दो अलग-अलग आवाजें गूंजने लगीं, एक काव्या की और एक पारो की, "मैंने कहा था न, मैं वापस आऊंगी..."
तभी तेज हवा चलने लगी, कमरे की खिड़कियां जोर-जोर से खुलने और बंद होने लगीं। मीनू की डर के मारे चीख निकल गई, जिससे घर के सभी लोग जाग गए। जैसे वह सब दौड़कर कमरे में आए तो मीनू बेहोश होकर जमीन पर गिरी मिली और उसकी गर्दन पर लाल निशान उभरा दिखाई दिया।
अगली सुबह जब गांव के बुजुर्ग आए तो उन्होंने, "कहा यह पुरानी हवेली का श्राप है...आत्मा किसी न किसी रूप में जरूर लौटेगी।"
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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