हिंदू धर्म में विवाह से पहले गोत्र जरूर देखे जाते हैं। इसे एक सफल शादी की बुनियाद माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, गोत्र सप्तऋषि के वंशज का रूप है। गोत्र का चलन रक्त संबंधियों के बीच विवाह से बचने के लिए शुरू किया गया है। कहा जाता है कि शादी हमेशा तीन गोत्र छोड़कर ही करनी चाहिए। आज हम इसी के पीछे का कारण नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से जानेंगे।
क्या है गोत्र
माना जाता है कि यह सप्तऋषि के वंशज का रूप है, जिसका मतलब 7 ऋषि होता है। अत्रि, अंगिरस, कश्यप, गौतम, वशिष्ठ, भारद्वाज और भृगु सात ऋषि हैं। कहा जाता है कि गोत्रों का वर्गीकरण वैदिक काल के समय पर किया गया था।
नहीं होती एक गोत्र में शादी
हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में शादी करना सही नहीं माना जाता है। कहते हैं कि एक ही गोत्र का अर्थ होता है कि लड़का और लड़की के पूर्वज भी एक ही थे। ऐसे में दोनों का भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है।
तीन गोत्र छोड़कर शादी करना
ज्योतिष के अनुसार, तीन गोत्र छोड़कर शादी करना जरूरी माना जाता है। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में दिक्कतें नहीं आती हैं।
सगे रिश्तों में शादी से बचाव
अगर आप तीन गोत्र छोड़कर विवाह करते हैं, तो इससे सगे रिश्तों यानी खून संबंधियों से शादी होने से बचाव होता है। साथ ही, संतान संबंधी समस्या भी नहीं होती है।
तीन गोत्र छोड़ने का अर्थ
विवाह से पहले अपना, माता और पिता की माता यानी दादी के गोत्र को छोड़कर किसी भी गोत्र में शादी की जा सकती है। इन गोत्रों को छोड़कर शादी करने से जीवन में समस्याएं नहीं आती हैं।
वैज्ञानिक कारण
कुछ शोधों के अनुसार, आनुवंशिक बेमेल और संकर डीएनए संयोजनों के चलते रक्त संबंधियों के बीच शादी होने से संतान पैदा करने में समस्या आ सकती है। वहीं, तीन गोत्र छोड़कर विवाह करने से संतान स्वस्थ पैदा होती है।
दोष, बीमारी नहीं होती ट्रांसफर
मान्यता है कि तीन गोत्र छोड़कर विवाह करने से उस कुल के अवगुण, बीमारी और दोष आने वाली पीढ़ी में ट्रांसफर नहीं होते हैं। साथ ही, वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता है।
हिंदू धर्म में तीन गोत्र छोड़कर शादी करना जरूरी माना जाता है। स्टोरी अच्छी लगी हो, तो शेयर करें। इस तरह की अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें herzindagi.com पर।