रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना हैं, रुद्र और अक्ष। रुद्र का अर्थ शिव होता है और अक्ष मतलब भगवान शिव की आंख। इसकी उत्पत्ति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए, जानतें हैं कि रुद्रास की उत्पत्ति कैसे हुई।
रुद्राक्ष
रुद्राक्ष का भगवान शिव की पूजा में विशेष महत्व है। सावन के महीने में रुद्राक्ष को धारण करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है।
उपयोग
रुद्राक्ष का सीधा संबंध भगवान शिव से है। इसका उपयोग विशेष रुप से भगवान शिव की पूजा में माला के रुप में किया जाता है। कई लोग इसे गले में धारण करते हैं।
धारण करने के नियम
रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन शिव जी की आराधना करनी चाहिए। रुद्राक्ष की माला में कम से कम 27 मनके होने चाहिए। इसके अलावा स्नान करने के बाद ही रुद्राक्ष धारण करें।
कथाओं के अनुसार
एक समय भगवान शिव हजारों साल तक गहन ध्यान में चले गए। हजारों साल बाद शिव जी ने अपनी एक दिन अपनी आंखें खोली थी।
आंसूओं से विकसित हुआ पेड़
हजारों साल बाद आंखे खुलने पर भगवान शिव की आंखों से आंसू की बूंदें जमीन पर गिर गई थीं। जिसकी वजह से रुद्राक्ष के पेड़ विकसित हुए।
इस तरह हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति
कहा जाता है कि इन पेड़ों पर जो फल लगे उन्हें रुद्राक्ष कहा जाने लगा। इसकी तरह रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई थी।
मान्यताओं के अनुसार
हिंदू धर्म के अनुसार, सावन महीने में तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आशीर्वाद मिलता है। इसे धारण करने से व्यक्ति के जीवन में तेज आता है।
भगवान शिव से जुड़े होने के कारण रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र माना जाता है। स्टोरी अच्छी लगी है, तो शेयर करें। ऐसी अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें herzindagi.com