भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क्स में से एक है। यहां हर रोज़ हज़ारों ट्रेन्स लाखों-करोड़ों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती हैं। एक तरह से देखा जाए तो ट्रेन का सफर हमेशा ही कुछ खास रहा है। गर्मियों की छुट्टियों में नानी-दादी के घर जाकर ट्रेन का सफर करना कितना अच्छा लगता था याद है? स्लीपर क्लास का वो डिब्बा जिसमें अंताक्षरी के साथ-साथ खुशनुमा पल शेयर किए जाते थे वो दौर ही अलग था।
अब अलग-अलग तरह की ट्रेन्स आ गई हैं और लोग एसी को ज्यादा पसंद करने लगे हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि ट्रेन के इन डिब्बों में कितना बदलाव आया है? यहां हम उसके अंदर की सुविधाओं और सीट्स के बारे में बात नहीं कर रहे हैं बल्कि यहां तो बात हो रही है ट्रेन के डिब्बों के रंग की।
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एक तरह से देखा जाए तो भारतीय रेलवे नेटवर्क की सभी ट्रेन्स का रंग या तो लाल, या फिर नीला या फिर हरा होता है। मालगाड़ी को छोड़ दिया जाए तो सभी पैसेंजर ट्रेन्स इसी तरह के कोच के साथ आती हैं। पर ऐसा क्यों? दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क की ट्रेन्स में यही तीन रंग क्यों इस्तेमाल किए जाते हैं?
ब्लू रंग के ट्रेन कोच-
आपने देखा होगा कि अधिकतर ट्रेन कोच नीले रंग के ही होते हैं। ये पैसेंजर और एक्सप्रेस दोनों तरह की ट्रेन्स के हो सकते हैं। इन कोच में सुविधाएं भी लगभग एक जैसी होती हैं। दरअसल, कोच का रंग स्पीड को निर्धारित करता है। जिस भी ट्रेन में ये कोच दिए गए होंगे वो 70 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। ये मेल एक्सप्रेस से लेकर सुपरफास्ट तक सभी में लागू होता है।
इन कोच की स्पीड इतनी इसलिए होती है क्योंकि ये लोहे के बने होते हैं और इनमें एयर ब्रेक्स लगे होते हैं। यही कारण है कि इनकी स्पीड इससे ज्यादा बढ़ाई नहीं जा सकती है। ऐसे में ये कोच ज्यादा भारी होते हैं और एक तय लिमिट से अधिक अगर स्पीड को बढ़ाया गया तो ये खिंच नहीं पाएगा और अगर खिंच भी गया तो रुकते समय दिक्कत होगी।
लाल रंग के ट्रेन कोच-
अब बात करते हैं दूसरे तरह के कोच की जो होते हैं लाल। लाल रंग के कोच उन ट्रेन्स को दिए जाते हैं जो सबसे ज्यादा तेज़ होती हैं। ये डिस्क ब्रेक्स के साथ आती हैं और सन 2000 में ये कोच जर्मनी से बनकर आए थे। हालांकि, अब इन्हें कपूरथला पंजाब में बनाया जाता है। इन कोच की खासियत ये होती है कि ये एल्युमीनियम के बने होते हैं और इसलिए ये ज्यादा हल्के होते हैं। साथ ही ब्रेक सिस्टम भी अलग होता है। अगर हम इनकी स्पीड की बात करें तो हल्के होने के कारण इन्हें खींचना ज्यादा आसान होता है और इसलिए ही ये 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती हैं।
इस तरह के कोच राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेन्स में लगाए जाते हैं जो बहुत ही तेज़ रफ्तार से भाग सकें और अगर उन्हें रुकना हो तो आसानी से रुक सकें।
हरे रंग के ट्रेन कोच-
अब बात करते हैं तीसरे कॉमन रंग की जो है हरा रंग। कई गाड़ियों में हरा और भूरा दोनों ही इस्तेमाल किया जाता है। हरा रंग गरीब रथ ट्रेन्स को दिया जाता है। देश की सभी गरीब रथ ट्रेन्स इसी रंग के कोच चलाती हैं। ये अधिकतर एसी कोच होते हैं और ट्रैवल करने में आरामदायक भी होते हैं।
येलो रंग के ट्रेन कोच-
इन दिनों येलो रंग के ट्रेन कोच भी दिखते हैं पर ये कम ही गाड़ियों में होते हैं क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि तेजस एक्सप्रेस के कोच या तो येलो या फिर ऑरेंज रंग के बनाए गए हैं ताकि इसे अलग से ही पहचान लिया जाए। ऐसे ही डबल डेकर ट्रेन्स में भी ऑरेंज मिक्स रंग का इस्तेमाल किया जाता है और दुरंतो एक्सप्रेस में भी ऑरेंज और ग्रीन दोनों रंगों का इस्तेमाल होता है।
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छोटी ट्रेन्स के कोच-
अगर बात करें छोटी टॉय ट्रेन या नैरोगेज ट्रेन्स की तो उनमें हल्के भूरे रंग के कोच लगाए जाते हैं। ये इनकी पहचान होती है। हालांकि, अधिकतर नैरोगेज ट्रेन्स अब भारत में बंद हो गई हैं, लेकिन टॉय ट्रेन्स का प्रचलन अभी भी है।
इनके अलावा, कुछ स्पेशल सीरीज की ट्रेन्स जैसे महात्मना एक्सप्रेस को पर्पल रंग दिया गया है जिसमें एलईडी लाइट्स, बायो टॉयलेट आदि की सुविधाएं मौजूद हैं।
तो ये थी ट्रेन्स के कोच की जानकारी। अब अगर आपसे कोई सवाल करे कि ट्रेन के बारे में क्या जानकारी आपको पता है तो आप ये जवाब दे सकते हैं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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