कहते हैं एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है। यकीनन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता। कभी-कभी हमारे सामने कुछ ऐसी तस्वीरें आ जाती हैं जिन्हें देखकर दिमाग अपने आप कोई कहानी बुनने लगता है। एक कलाकार अपनी पेंटिंग्स के जरिए ना जानते कितनी यादों और महत्वाकांक्षाओं को कैनवास पर जीवित कर देता है। ऐसा ही कुछ किया है आर्टिस्ट सीमा सेठी ने। दिल्ली स्थित आर्टिस्ट सीमा सेठी ने अपना सोलो एग्जीबिशन डेब्यू किया है।
60 की उम्र में जहां लोग थकने लगते हैं, वहीं सीमा जी जिंदादिली से अपने पैशन को आगे बढ़ा रही हैं। उनका एग्जीबिशन भारतीय इतिहास की झलक रखता है। मुगलों की कला से प्रेरित होकर सीमा सेठी ने अपनी पेंटिंग्स को बनाया है। यह एग्जीबिशन 1 अप्रैल तक दिल्ली के बीकानेर हाउस में प्रदर्शित किया जाएगा।
क्या खास है सीमा सेठी की पेंटिंग्स में?
सीमा ने अपनी पेंटिंग्स में तंजावुर तकनीक का इस्तेमाल किया है। इनमें गोल्ड फॉइल, वाटर कलर, कुछ स्टोन्स, ऑयल पेंट आदि से कैनवास पर कलाकृतियां बनाई गई हैं। तंजावुर (तंजौर) तकनीक के साथ मिक्स्ड मीडिया का इस्तेमाल कर उन्होंने अपनी पेंटिंग्स को एक नया रूप दिया है। सीमा सेठी की पेंटिंग्स में भारत की हेरिटेज की झलक है, तभी तो 'विरासत' एक ऐतिहासिक पहल है। भारत की कई ऐतिहासिक इमारतों को मिलाकर इस एग्जीबिशन को सजाया गया है।
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कुतुब मिनार के स्तंभ, अनूप महल का राज कक्ष, ताज महल का जाली वर्क, सिद्दी सैयद मस्जिद का अक्स सब कुछ सीमा सेठी के कैनवास के जरिए देखा जा सकता है। यही नहीं, उनकी पेंटिंग्स में अजंता और एलोरा केव्स की झलक भी देखी जा सकती है। ईजिप्ट के माइथोलॉजिकल किरदार भी उनकी पेंटिंग्स से झांकते हुए दिखेंगे।
इस एग्जीबिशन की एक और खास बात थी इसका टाइम पीरियड। ऐसा नहीं है कि सीमा सेठी ने किसी एक ही टाइम पीरियड को ध्यान में रखते हुए इस एग्जीबिशन को डिफाइन किया है। आप इतिहास के अलग-अलग टाइम पीरियड्स को देख सकते हैं। रॉयल हेरिटेज में सिर्फ बिल्डिंग्स ही नहीं, बल्कि जानवरों का भी समागम किया गया है। रॉयल बंगाल टाइगर, घोड़े आदि सभी स्वर्ण रंग से सजे हुए हैं। जिन्हें आर्ट और कल्चर का शौक है उनके लिए ये एग्जीबिशन बहुत ही खास है।
गोल्ड रंग का समागम
सीमा सेठी के अनुसार उन्होंने तंजौर तकनीक का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि वो अधिकतर देवी-देवताओं को दिखाने के लिए यूज होती आई है। उन्होंने इसका उपयोग किया ताकि इस तकनीक को आगे बढ़ाया जा सके। इसे हमारी विरासत का हिस्सा माना जा सकता है।
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इस तकनीक को इस्तेमाल करने का उनका एक और कारण था। वो मानती हैं कि इससे उनकी पेंटिंग्स को और ज्यादा डेप्थ मिली है।
सीमा ने इस तकनीक को साल 2000 में एक वर्कशॉप में सीखा था। वो अपनी पेंटिंग्स के जरिए उन आर्टिस्ट्स को एक ट्रिब्यूट पेश करना चाहती थीं जिन्होंने इन इमारतों को बनाया है।
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कॉलेज के जमाने से पेंटिंग कर रही हैं सीमा
सीमा की जर्नी बतौर पेंटर 1987 से शुरू हुई थी। सीमा ना सिर्फ एक आर्टिस्ट हैं, बल्कि वो एक सफल वर्किंग वुमन हैं। वो केमिकल इंडस्ट्री में काम कर रही हैं और गुरुग्राम और भिवंडी में दो प्रोडक्शन यूनिट लीड कर रही हैं। भारतीय विरासत के बारे में जानने के लिए सीमा ने नेशनल म्यूजियम जनपथ में बतौर टूर गाइड भी काम किया है। द बनियन ट्री स्कूल की प्रिंसिपल के तौर पर भी सीमा ने कुछ समय एजुकेशन फील्ड में बिताया है।
उनकी पूरी जिंदगी बतौर एजुकेटर, कंपनी की मालकिन, मां, आर्टिस्ट आदि अलग-अलग रोल्स निभाने में बीती है। आर्ट हमेशा से ही उनका पैशन रहा है और वो अपनी पेंटिंग्स के जरिए लोगों को इंस्पायर करना चाहती हैं।
हर साल एक पेंटिंग बनाई है
सीमा का एग्जीबिशन उनकी 20 साल की मेहनत दिखाता है। उन्होंने हर साल एक पेंटिंग बनाई है और धीरे-धीरे अपनी कला को निखारा है। बचपन में उन्हें ग्रीटिंग कार्ड्स से इंस्पिरेशन मिली थी। उम्र के अलग-अलग पड़ावों में उन्होंने जिस सादगी से अपनी पेंटिंग्स को निखारा है वो तारीफ के काबिल है।
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