Vat Savitr Purnima 2022: हिन्दू धर्म में सभी पूर्णिमा तिथियों का अलग महत्व है और इनमे पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करने का विधान है। पूरे साल में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं जिनमें से ज्येष्ठ महीने की वट पूर्णिमा का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पूर्णिमा तिथि में सुहागिन महिलाएं व्रत उपवास करती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना में बरगद यानी वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करती हैं।
वट पूर्णिमा को मुख्य रूप से सुहागिनों का त्योहार माना जाता है और ऐसा माना जाता है जाता है कि जो स्त्री बरगद की पूजा और व्रत उपवास करती है उसके पति को लंबी उम्र मिलती है और पति का स्वास्थ्य ठीक रहता है। इस साल वट सावित्री पूर्णिमा का त्योहार 14 जून, मंगलवार के दिन पड़ेगा। आइए माय पंडित के फाउंडर, सीईओ कल्पेश शाह एंड टीम ऑफ एस्ट्रोलॉजर से जानें वट पूर्णिमा की कथा और इस दिन पूजन की सही विधि के बारे में।
ऐसे करें वट सावित्री पूर्णिमा व्रत और पूजन
- वट सावित्री पूर्णिमा व्रत करने से पहले सुबह उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इस व्रत करने का पूरा विधान करवा चौथ व्रत की ही तरह है।
- महिलाएं व्रत संकल्प करके शुद्ध होकर नए वस्त्र धारण करें और श्रृंगार करें।
- सुहाग की वस्तुएं भी पूजा की थाली में सजाएं।
- अपने घर के आसपास किसी बरगद के पेड़ की पूजा करें।
- सबसे पहले बरगद के पेड़ से प्रार्थना करें कि वह उनकी पूजा स्वीकार करें।
- बरगद के पेड़ के आसपास सफाई करके उसमें पानी अर्पित करें।
- भगवान गणेश का ध्यान करके पूजा आरंभ करने की स्वीकृति मांगें।
- माता पार्वती और पिता शिव जी का ध्यान करें और उनकी पूजा करें।
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति बनाएं या उनके चित्र को फूल माला से सजाएं।

- बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें और सुहाग की वस्तुएं सावित्री को अर्पण करें।
- बरगद के पेड़ को भी कुमकुम, हल्दी के पानी से सींचें।
- पूजा के दौरान बरगद के पेड़ पर रोली और लाल सूती धागा लपेटे। लाल रंग सुहाग का प्रतीक है।
- बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की कथा सुनें।
- अपने बड़ों का आशीर्वाद लें और पति के पैर छूकर भी आशीर्वाद लें।
- व्रत के दिन जरूरतमंदों को किसी भी चीज का दान करें। इससे पूजा का पूर्ण फल मिलता है।
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वट सावित्री व्रत की कथा
वट सावित्री व्रत सावित्री और उनके पति सत्यवान को याद करने का एक अनोखा त्योहार है। इसकी कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थीं और वे बेहद सुंदर और चरित्रवान थीं। बड़े जतन से सावित्री का विवाह सत्यवान नामक युवक से हुआ। सत्यवान बेहद कर्तव्यनिष्ठ और भगवान के सच्चे भक्त थे। एक दिन नारदजी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु कम है। तब सत्यवान की आयु के लिए सावित्री ने घोर तपस्या की। लेकिन निर्धारित तिथि के अनुसार जब यमराज सत्यवान के प्राण हरने के लिए आए, तो सावित्री ने पतित्व के बल पर यमराज को रोक लिया। तब यमराज ने सावित्री से वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने अलग-अलग तरह के तीन वरदान मांगे, लेकिन अंत में सावित्री ने एक पुत्र का वरदान मांग लिया। बिना सोचे यमराज ने यह वरदान सावित्री को दे दिया। लेकिन पति के बिना पुत्र का जन्म संभव नहीं है इसलिए यमराज को अपने वचन निभाने के लिए सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस लौटाने पड़े। वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सावित्री की यह कथा सुनकर अपने व्रत को पूरा करती हैं और विश्वास धारण करती हैं कि उनके पति की भी असमय मृत्यु से रक्षा होगी और उनका परिवार बरगद की तरह हरा-भरा रहेगा।(वट सावित्री पर पहनें ये साड़ियां )
इस प्रकार वट पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है और सुहागिन महिलाओं के लिए यह व्रत वरदान स्वरुप है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: freepik and shutterstock
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