हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व बताया गया है और हर महीने में एकादशी तिथि दो बार पड़ती है। पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं और जिस साल मलमास होता है उस साल में एकादशी तिथियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना अलग महत्व है और इसमें पूरी श्रद्धा भाव से विष्णु पूजन करने का विधान है। इन्हीं एकादशी तिथियों में से एक है वैशाख के महीने में पड़ने वाली वरुथिनी एकादशी जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी के व्रत को मोक्षदायक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस साल वैशाख के महीने में कब पड़ेगी वरुथिनी एकादशी तिथि और उसका क्या महत्व है।
वरुथिनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
- इस साल वरुथिनी एकादशी तिथि 26 अप्रैल, मंगलवार के दिन पड़ेगी।
- एकादशी तिथि की आरंभ - 26 अप्रैल, मंगलवार सुबह 01 बजकर 36 मिनट
- एकादशी तिथि का समापन- 27 अप्रैल, बुधवार रात्रि 12 बजकर 46 मिनट पर
- चूंकि उदया तिथि में एकादशी 26 अप्रैल को पड़ेगी इसलिए यह व्रत इसी दिन रखना फलदायी होगा। .
- एकादशी व्रत पारण का समय- 27 अप्रैल प्रातः 6 बजकर 41 मिनट से लेकर प्रातः 08 बजकर 22 मिनट तक
वरुथिनी एकादशी का महत्व
इस एकादशी तिथि का व्रत रखने और इस दिन श्रद्धा भाव से विष्णु पूजन करने से व्यक्ति को मोक्ष और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन का पूजन विशेष रूप से सभी पापों से मुक्ति दिलाता है। यदि कोई व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु का पूजन माता लक्ष्मी समेत करता है तो यह उसके लिए विशेष रूप से फलदायी होता है।
वरुथिनी एकादशी कथा
वरुथिनी एकादशी की कथा के अनुसार एक समय नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नाम के राजा का राज्य था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी। वह हमेशा पूजा-पाठ करते रहते थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या कर रहे थे कि अचानक वहां एक जंगली भालू आया और उनका पैर काटने लगा। राजा इस घटना से भयभीत नहीं हुए और कष्ट सहते हुए भी अपनी तपस्या में लीन रहे। बाद में वे भालू उनके पैर को चबाते हुए घसीटकर पास के जंगल में ले गया, तब राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू का अंत कर दिया। राजा का पैर भालू खा चुका था। दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। जिस तरह से वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मधांता को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई उसी प्रकार से यह व्रत भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत है।
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वरुथिनी एकादशी पूजा विधि
- वरुथिनी एकादशी के दिन कुछ लोग निर्जला व्रत भी करते हैं और कुछ लोग फलाहार का पालन करते हैं।
- यदि आप इस व्रत का पालन करते हैं तो सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें।
- पूजा स्थल को साफ़ करने के बाद सभी भगवानों को स्नान करें और नए वस्त्र पहनाएं।
- भगवान विष्णु की तस्वीर साफ़ करें और उसमें चन्दन लगाएं।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
- रात्रि के समय भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करें और घर की शांति की प्रार्थना करें।
- पूरे दिन फलाहार का पालन करने के बाद द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।
- इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
वास्तव में वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजन विशेष रूप से फलदायी है। इसलिए मनोकामनाओं को पूर्ति हेतु इस व्रत का पालन करें। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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