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    Untold Story: मां बनने के बाद भी इस राजकुमारी ने नहीं खोई थी अपनी वर्जिनिटी

    धार्मिक ग्रंथों में मौजूद कुछ कथाएं वाकई बहुत रोचक हैं, यदि आप भी ऐसी कोई कथा के बारे में जानना चाहती हैं, तो एक बार यह आर्टिकल जरूर पढ़ लें। 
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    Updated at - 2023-02-08,18:33 IST
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    हिंदू धर्म में आपको अनेकों कथाएं सुनने को मिल जाएंगी और इनमें से कुछ कथाएं इतनी अद्भुद हैं कि उन्‍हें बार-बार सुनने का मन होता है। ऐसी ही एक रोचक कहानी है नहुष कुल के चंद्रवंशी राजा ययाति की पुत्री माधवी।

    माधवी की कहानी इस लिए अद्भुद है क्‍योंकि मां बनने के बाद भी वह हमेशा कुंवारी रही। ऐसा कैसे हुआ चलिए हम आपको बताते हैं। हालांकि, यह कहानी दर्शाती है कि युगों से नारि के साथ शोषण होता आ रहा है और नारि पुरुषों की इच्‍छापूर्ती की शिकार होती रही है। 

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    कौन थी माधवी?

    माधवी एक राजकुमारी थीं और बेहद खूबसूरत भी थीं, साथ ही माधवी को चिर कुमारी रहने का वरदान प्राप्‍त था। माधवी के पिता ने इस बात का फायदा उठाने और अपने राजकोष को भरने  के लिए अपनी बेटी को धन के लालच में गुरु गालव को भेंट कर दिया। इसके बदले में गुरु गालव ने राजा को श्‍वेत घोड़े भेंट किए। बस इसी के साथ शुरु हुई माधवी की बर्बादी की कहानी। 

    दरअसल राजा ने अपनी बेटी को गुरु गालव को इसलिए भेंट किया था ताकि गालव ऋषि माधवी को अन्‍य राजाओं को भेंट करें और उसके बदले में उन्‍हें  श्‍वेत घोड़े मिल सकें। ऐसा करके वह 800 घोड़े इकट्ठा करना चाहते थे। इन घोड़ों को गालव अपने गुरु विश्‍वामित्र को सौंप कर गुरु दक्षिणा देना चाहता था। 

    महाभारत से माधवी का संबंध

    माधवी के पिता एवं राजा ने यह भी गालव ऋषि को बताया था कि उनकी पुत्री वरदान है कि वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्‍म देगी। यह सुनने के बाद गालव ऋषि ने गावल ने सोचा की ऐसी सर्वगुण संपन्न एवं सुन्दरी के बदले कोई भी राजा अपना राज्य तक दे सकता है। ऐसा करने से 800 सफेद घोड़ों को इकट्ठा करना आसान होगा। 

    ऐसा सोचने के बाद ऋषि माधवी को लेकर सबसे पहले अयोध्‍या राजा हर्यश्व के पास पहुंचे। राजा ने ऋषि को 200 घोड़े दान किए और माधवी से एक पुत्र उत्‍पन्‍न किया। माधवी ने वसुमना नामक पुत्र को जन्‍म दिया जो बाद में चलकर धार्मिक कथाओं में अपनी वीरता के चलते काफी प्रसिद्ध हुआ। 

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    इसके बाद काशिराज दिवोदास के दरबार में पहुंचे वहां से भी 200 अश्‍वों को लेकर माधवी को राजा को सौंप दिया। यहां भी माधवी से राजा को एक प्रतर्दन नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। फिर माधवी को लेकर ऋषि भोजराज उशीनर के पास पहुंचे और वहां से भी 200 घोड़ों के बदले में उन्‍होंने माधवी की बली चढ़ा दी और राजा को भी  त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी के संयोग से एक पुत्र प्राप्त हुआ। 

    तीसरे पुत्र की उत्‍पत्‍ती के बाद भी माधवी कुंवारी बनी रही और उसके रूप सौंदर्य में कोई कमी नहीं आई ऐसे में गुरु दक्षिणा के लालच में गालव ऋषि माधवी को ऋषि विश्‍वामित्र के पास ही लेकर पहुंच गए। अपने गुरू को 600 घोड़े देने के बाद गालव ने ऋषि विश्‍वामित्र से कहा कि आप बचे हुए 200 घोड़ों की जगह आप माधवी से अपनी वासना की इच्‍छा को पूरा करें।  विश्वामित्र ने अपने प्रिय शिष्य की प्रार्थना स्वीकार कर ली।  माधवी के संयोग से अन्य राजाओं की भाँति उन्होंने भी एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। 

    इस प्रकार माधवी चार पुरुषों के साथ संबंध बनाने के बाद भी कुंवारी रही और अंत में चारों यशस्वी पुत्रों को जन्‍म देने के बाद जब माधवी अपने पिता के घर वापस आयी, तो राजा ने उसका स्वयंवर करने का विचार प्रकट किया। किन्तु माधवी ने किसी पति का चयन करने के स्‍थान पर तपोवन का मार्ग ग्रहण किया।

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