Mahesh navami 2022 Significance: हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव की पूजा का बहुत अधिक महत्व है। मुख्य रूप से भगवान शिव को सृष्टि का पालक और संहारक दोनों ही माना जाता है इसलिए उनकी पूजा बड़ी ही विधि विधान से की जाती है। शिव जी के पूजन के लिए कई तिथियां होती हैं और उनमें विशेष रूप से शिव भक्ति की जाती है। ऐसी ही एक तिथि है महेश नवमी की तिथि।
हिन्दुओं में ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव जी की पूजा माता पार्वती समेत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महेश नवमी हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है और इस दिन विधि विधान से पूजा की जाती है। आइए अयोध्या के पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी से जानें इस साल कब मनाई जाएगी महेश नवमी और इसका क्या महत्व है।
महेश नवमी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
- इस साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 9 जून, बृहस्पतिवार के दिन पड़ेगी।
- नवमी तिथि आरम्भ - 08 जून प्रातः 08 बजकर 20 मिनट से
- नवमी तिथि समापन - 9 जून को प्रातः 08 बजकर 21 मिनट तक
- चूंकि उदया तिथि में महेश नवमी 09 जून को पड़ेगी इसलिए इसी दिन व्रत और पूजन फलदायी माना जाएगा।
महेश नवमी का महत्व
मान्यतानुसार महेश नवमी के दिन भगवान शिव व माता पार्वती की विधि पूर्वक पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन विधि विधान से पूजा और जलाभिषेक करना लाभदायक होता है।
महेश नवमी की पूजा विधि
- महेश नवमी के दिन प्रातः जल्दी उठें और साफ़ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर की सफाई करें और सभी भगवानों को स्नान कराएं।
- भगवान शिव और माता पार्वती को गंगाजल (कभी खराब क्यों नहीं होता है गंगाजल)और दूध से स्नान कराएं।
- किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम गणपति की पूजा की जाती है इसलिए गणपति का पूजन भी करें।
- भगवान शिव और माता पार्वती को सफ़ेद पुष्प अर्पित करें और शिव जी को चन्दन लगाएं।
- माता पार्वती को सिंदूर लगाएं और पूजन करें।
- भगवान शिव और माता पार्वती को खीर का भोग अर्पित करें और आरती करें।
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महेश नवमी की कथा
प्राचीन काल में खडगलसेन नाम का एक राजा था। उसकी कोई भी संतान नहीं थी। कई उपायों और पूजन के बाद भी उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हुई। लेकिन जब राजा की घोर तपस्या से उसे पुत्र हुआ तो उसने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। ऋषि-मुनियों ने राजा को बताया कि सुजान को 20 साल तक उत्तर दिशा में जाने की मनाही है। राजकुमार के बड़े होने पर उन्हें युद्ध कला और शिक्षा का ज्ञान मिला।
एक दिन सैनिकों के साथ राजकुमार जब शिकार खेलने गए तो वह गलती से उत्तर दिशा (उत्तर दिशा में न रखें ये चीजें) की ओर चले गए। राजकुमार के उत्तर दिशा में आने पर ऋषियों की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने राजकुमार को श्राप दे दिया। राजकुमार को श्राप मिलने पर वह पत्थर के बन गए और साथ ही साथ उनके साथ के सिपाही भी पत्थर के हो गए। जब इस बात की जानकारी राजकुमार की पत्नी चंद्रावती को हुई तो उन्होंने जंगल में जाकर राजकुमार को श्राप मुक्त करने के लिए ऋषियों से माफ़ी मांगी। तब ऋषियों ने सलाह दी कि महेश नवमी के व्रत के प्रभाव से ही अब राजकुमार को जीवनदान मिल सकता है। तभी से इस दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा की जाती है।
हिंदुओं में महेश नवमी का विशेष महत्व है और इस दिन विधि विधान से भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें। इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ जुड़ी रहें।
Image Credit: Freepik and wallpapercave.com
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