टीकमगढ़ के कुंडेश्वर मंदिर का महत्व जानें, प्रति वर्ष चावल के दाने जितना बढ़ जाता है शिवलिंग

महादेव के लोकप्रिय मंदिरों में से एक कुंडेश्‍वर धाम का अपना ही अलग महत्‍व है और इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं, जिन्‍हें आप इस आर्टिकल के माध्‍यम से जान सकते हैं। 

Anuradha Gupta
kundeshwar temple shivling tips

देवों के देव महादेव शिव शंकर के भक्‍त पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। देश भर में शिव जी के अनेकों मंदिर हैं। जहां कुछ मंदिर भक्‍तों की श्रृद्धा-भक्‍ति से तैयार हुए हैं, तो वहीं कुछ बेहद प्राचीन हैं और उनके निर्माण से जुड़ी रोचक कहानियां आज भी लोगों को अविश्‍वस्‍नीय लगती हैं।

ऐसा ही एक मंदिर मध्‍यप्रदेश के छोटे से जिले टीकमगढ़ के कुंडेश्‍वर में स्थित है। यह मंदिर कुंडेश्‍वर धाम के नाम से प्रचलित है। यहां पर शिवलिंग है, जिनकी पूजा करने लोग देश के कोने-कोने से आते हैं।

आपको बता दें कि हिंदू धार्मिक पुराणों की माने तो 12 महत्‍वपूर्ण शिवलिंग में बेशक कुंडेश्‍वर धाम में मौजूद शिवलिंग का नाम न आता हो, मगर इस शिवलिंग को 13वीं सिद्ध शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर और शिवलिंग से जुड़ी ढेरों पौराणिक कथा एवं किंवदंतियां हैं। चलिए आज हम आपको इस मंदिर के महत्‍व और खसियत के बारे में बताते हैं।

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पंचमुखी शिवलिंग

कुंडेश्‍वर में मौजूद इस मंदिर में जो शिवलिंग हैं, वह पंचमुखी हैं। पंचमुखी शिवलिंग के पांच मुख होते हैं, ऐसा ही एक शिवलिंग अयोध्‍या में भी है। पंचमुख वाले महादेव की रचना पांच तत्‍वों अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्‍वी और जल से हुई है। आपको बता दें कि कुंडेश्‍वर धाम में मौजूद शिवलिंग की पूजा द्वापर युग से हो रही है।

क्‍या शिवलिंग के पीछे की कहानी

ऐसी मान्‍यता है कि यह शिवलिंग बेहद प्राचीन है और द्वापर युग में दैत्‍य राजा बाणसुर की पुत्री ऊषा यहां मौजूद में स्‍नान करने आती थी और फिर भगवान शिव की पूजा करती थी। उसकी भक्‍ती से खुश होकर ही भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में ऊषा को दर्शन दिए और फिर हमेशा के लिए यहां विराजमान हो गए। ऐसा भी कहा जाता है कि आज भी ऊषा मंदिर में शिव जी पर जल चढ़ाने के लिए आती है, मगर उसे कोई देख नहीं पाता है।

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शिव जी लेते हैं बली

आपको बता दें कि महादेव के रूद्र रूप को कालभैरव कहा गया है। इन्‍हें तंत्र का देवता माना जाता है। कालभैरव शुत्रओं का सर्वनाष करते हैं और संकट में भक्‍तों की रक्षा भी करते हैं। मगर रुष्‍ट होने पर कालभैरव बली भी लेते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि कुंडेश्‍वर में मौजूद शिवलिंग भी बली लेती है। यहां कभी-कभी बेहद विचित्र घटनाएं घटती हैं, जिसमें कभी-कभी व्‍यक्ति की असमय मृत्‍यु तक हो जाती है। हालांकि, इसके को साक्ष नहीं हैं और यह केवल एक किवदंती मात्र ही है।

बढ़ता है शिवलिंग

इसे 13वां शिवलिंग इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि यह हर वर्ष चावल के दाने जितना बढ़ता है। सन 1937 में टीकमगढ़ रियासत के महाराज वीर सिंह देव ने शिवलिंग के आस-पास खुदाई करवाई। मगर यह नहीं पता चल पाया कि शिवलिंग की गहराई कितनी है। ऐसे में यह ऊपर और नीचे दोनों जगह से चावल के दाने जितने आकार में प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है।

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कुंड में है मछली

ऐसा भी कहा गया है कि इस मंदिर के कुंड में एक बड़ी सी मछली रहती है, जो किसी को नजर नहीं आती है। वो भक्‍त भाग्‍यशाली (भाग्‍यशाली होने का संकेत) ही होते हैं, जिन्‍हें वह मछली नजर आती है और उनकी सारी मुरादे भी पूरी हो जाती हैं।

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