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    मंदिर में कितनी परिक्रमाएं करना होता है शुभ, जानें ज्योतिषीय फायदे

    मंदिर में जब भी हम दर्शन के लिए जाते हैं उसके कुछ विशेष नियम होते हैं। लेकिन अगर आप दर्शन के साथ परिक्रमा भी करती हैं तो इससे जुड़ी कुछ बातों के बारे में जरूर जान लें। 
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    Updated at - 2023-02-22,18:43 IST
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    हम सभी जब भी मंदिर में प्रवेश करते हैं ईश्वर के पूजन के साथ मंदिर परिसर की परिक्रमा जरूर करते हैं। दर्शन का अधिकतम लाभ पाने के लिए, व्यक्ति को देवताओं की परिक्रमा या प्रदक्षिणा करने की सलाह दी जाती है।

    परिक्रमा करने के कुछ नियम बनाए गए हैं और मान्यता है कि परिक्रमा शुरू करने के लिए व्यक्ति गर्भ गृह के बाईं ओर से मध्यम गति से चलना शुरू कर सकता है। परिक्रमा के दौरान हाथों को नमस्कार-मुद्रा में जोड़कर ही आगे बढ़ना चाहिए और सही नियम से परिक्रमा करनी चाहिए।

    मंदिर के भीतर परिक्रमा के भी कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें मंदिर में परिक्रमा करने के सही नियमों के बारे में और कितनी संख्याएं शुभ हैं। 

    कैसे करें परिक्रमा 

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    मंदिर में प्रवेश के समय आपको सबसे पहले देवताओं के नाम का जाप करते हुए परिक्रमा या प्राक्षिणा शुरू कर देनी चाहिए। एक प्रदक्षिणा के बाद, देवता को प्रणाम करें और उसके बाद ही अगली प्रदक्षिणा शुरू करें। मंदिर परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार के दुर्विचार मन में न लाएं। 

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    कितनी परिक्रमाएं करनी चाहिए 

    मंदिर में परिक्रमा करने का सही नियम यह है कि आप सभी देवताओं के लिए, प्रदक्षिणाओं की संख्या 'सम' संख्या यानी 0, 2, 4, 6 होनी चाहिए और देवियों के लिए परिक्रमा की संख्या विषम 1, 3, 5, 7 होनी चाहिए।

    शून्य के साथ 'सम' संख्या जुड़ी होती है, इसलिए देवताओं की प्रदक्षिणा 'सम' संख्या में ही करनी चाहिए। देवता के चारों ओर की जाने वाली प्रदक्षिणा की संख्या अलग-अलग होती है। प्रदक्षिणाओं की संख्या देवता के सगुण-निर्गुण के रूप के अनुसार या प्रदक्षिणा करने वाले व्यक्ति के इरादे के अनुसार बदलती है।

    अंक शास्त्र के अनुसार भी अलग-अलग देवताओं के नाम से जुड़े परिक्रमाओं के अंक अलग-अलग होते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार प्रदक्षिणाओं की संख्या निश्चित नहीं होती है और वे स्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं।

    किस देवता के लिए कितनी परिक्रमाएं 

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    • ज्योतिष की मानें तो विभिन्न देवी देवताओं के लिए परिक्रमा की संख्या भी अलग होती है। सूर्यदेव के लिए यह सात काल है। इसलिए उनके लिए कम से कम सात परिक्रमाएं करनी जरूर हैं। 
    • मां भद्रकाली के लिए भक्तों को दो बार परिक्रमाएं करनी चाहिए। मां भगवती और मां दुर्गा की 7 परिक्रमाएं करनी चाहिए। 
    • नवग्रह नौ होते हैं। इसलिए ग्रहों के लिए कम से कम 9 परिक्रमाएं होनी चाहिए। बरगद या पीपल जैसे वृक्षों के लिए परिक्रमा (परिक्रमा लगाने का महत्‍व) की संख्या सात होती है।
    • शिव के लिए प्रदक्षिणा पूर्ण नहीं की जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करके वापस उसी स्थान ओर आ जाएं जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी। 

    मंदिर में परिक्रमा के फायदे 

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    • मंदिर में परिक्रमा करने से मन को शांति मिलती है और मन एकाग्र होता है। 
    • शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। 
    • मंदिर में परिक्रमा ईश्वर के प्रति आस्था दिखाने के सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। 

    अपने ईष्ट देवता का ध्यान करते हुए उनके मन्त्रों का जाप करते हुए यदि नियम से परिक्रमा की जाए तो घर में सुख समृद्धि सदैव बनी रहती है। 

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    Images: unsplash.com 

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