क्या आपका बच्चा आपसे डरता है? आपके बच्चे को अगर अपने मन की बात कहने से ही डर लगता है, तो यह चिंता का विषय है। ऐसी स्थिति में कई बार माता-पिता भी अपने बच्चे से पर्सनल बातें नहीं कर पाते हैं। 'थ्री ईडियट्स' फिल्म का एक डायलॉग था, "अब्बा नहीं मानेंगे"। यह डायलॉग समझाता है कि कॉलेज में जाने तक बच्चे अपने माता-पिता से डरते हैं और अपने मन की बात कह ही नहीं पाते हैं। यह डर ना सिर्फ बच्चे की ग्रोथ पर असर डालता है, बल्कि इसके कारण बच्चे के साथ आपकी बॉन्डिंग भी सही नहीं रहती है।
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की सीनियर चाइल्ड और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और हैप्पीनेस स्टूडियो की फाउंडर डॉक्टर भावना बर्मी ने हमें चाइल्ड साइकोलॉजी के बारे में कुछ खास बातें बताईं।
उनका कहना है, "बच्चों को हमेशा डांटकर, उनसे बातें छुपाना या क्लियर संकेत ना देना भी उनके डर का कारण बन सकता है। बच्चों के साथ स्ट्रिक्ट होना कभी-कभी जरूरी होता है, लेकिन हर वक्त ऐसा करने से बच्चे के अंदर डर बैठ जाता है।"
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इन लक्षणों से पता करें डरा हुआ है आपका बच्चा
Unicef.org की एक रिपोर्ट बताती है कि उम्र के हिसाब से डिस्ट्रेस के लक्षण भी बदल जाते हैं। पर बच्चे की मानसिक स्थिति पर इसका असर जरूर पड़ता है। (बच्चों की मेंटल हेल्थ)
- बच्चा बहुत चिड़चिड़ा होने लगेगा।
- बच्चा या तो बहुत एक्टिव हो जाएगा या फिर एकदम सुस्त।
- आपकी आवाज़ ही नहीं आंखों के इशारों से भी डरने लगेगा।
- छुप-छुप कर रोएगा या फिर हंसना कम कर देगा।
- खाने-पीने का पैटर्न बदल जाएगा।
- एडल्ट रोल निभाने लगेगा और बचपना कम हो जाएगा।
- खेलना-कूदना कम हो जाएगा।
- आपकी बातों का असर या तो बहुत ज्यादा होगा या फिर बिल्कुल नहीं।
- अग्रेशन बहुत बढ़ने लगेगा।
- एकाग्रता में काफी कमी महसूस होगी।
- कुछ मामलों में सेल्फ डिस्ट्रक्टिव व्यवहार भी हो सकता है।
- आपके कुछ भी पूछने से बच्चा डरेगा।

क्या बच्चे का ऐसा व्यवहार सही है?
बिल्कुल नहीं, बच्चे का ऐसा व्यवहार सही नहीं है। अगर ऐसा हो रहा है, तो आपका बच्चा टीनएज में बहुत ही ज्यादा परेशान रहेगा। ऐसे समय में आपकी बॉन्डिंग भी सही नहीं रहेगी। बच्चे का व्यवहार भी बदल जाएगा। इस तरह के व्यवहार वाले बच्चे आगे चलकर या तो बहुत ही अग्रेसिव बन जाते हैं या फिर उन्हें लोगों की जी-हुजूरी पसंद आती है। ऐसे समय में पीपल प्लीजिंग पर्सनैलिटी का हिस्सा ही बन जाती है। (बच्चों के साथ बॉन्डिंग कैसे बेहतर करें)
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भारतीय पेरेंट्स अपने बच्चों को काफी कंट्रोल करते हैं। गोवा ट्रिप पर जाना हो, 10वीं के बाद मैथ्स की जगह आर्ट्स लेना हो, अपनी पसंद के कपड़े पहनने हों या फिर अपनी पसंद के पार्टनर से शादी करनी हो। इन सभी मामलों में माता-पिता की राय बहुत मायने रखती है। समझने वाली बात यह है कि इस तरह की स्थिति में कई बार माता-पिता को पता ही नहीं होता है कि वो अपने बच्चों के साथ किस तरह की गलती कर रहे हैं।
अगर आपके बच्चे में इस तरह के लक्षण दिख रहे हैं, तो किसी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट/साइकिएट्रिस्ट से संपर्क करें। कई मामलों में बच्चा अपने मन की बात माता-पिता से नहीं कह पाता है, लेकिन मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट कई तरह की एक्सरसाइज के जरिए बच्चे के मन को टटोल सकता है। बच्चे पर हाथ उठाना और सबके सामने उसे किसी भी बात के लिए डांट देना कोई हल नहीं होता। पेरेंटिंग के स्टाइल में बदलाव लाने से आपके बच्चे की मेंटल और फिजिकल ग्रोथ और अच्छी हो सकती है।
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