नन्ही मेरी बेटी होगी लाड़ली मेरी रानी रात भर जगाएगी वो सुनेगी कहानी..... उफ़ ये क्या जिसे पैदा ही नहीं होने दिया गया वो थी लड़की !!
मां बनने से पहले न जाने कितनी महिलाओं के मन में अपनी होने वाली संतान को लेकर सपने होते हैं। मां के लिए होने वाला बच्चा ही सब कुछ होता है फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की। हो भी क्यों न, मां तो दोनों को ही अपनी कोख में समान रूप से ही पालती है।
युग बदले, सदियां बदलीं, लेकिन आज भी समाज की मानसिकता नहीं बदली कि बेटी का जन्म एक मां के लिए अभिशाप है। हां ये सच है कि आज भी हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन है। न जाने कितनी बेटियां कोख में ही दम तोड़ देती हैं, न जाने कितनी माताएं समाज की कुरीतियों का विरोध नहीं कर पाती हैं और रोती-बिलखती हुई बेटी को खोने का गम सीने में दबा लेती हैं।
न जाने कितनी माताएं अपने बच्चे की कोख में मृत्यु को स्वीकार करके अगली बार मां बनने और बेटे को जन्म देने का सपना देखने लगती हैं। आखिर क्यों और कब तक ??? मेरा सवाल उन सभी लोगों से है कि क्या कन्या केवल नवरात्रि पूजन का हिस्सा है और जरा सोचिए कि अगर इसी तरह से देश में कन्या भ्रूण हत्या जारी रही तो नवरात्रि पूजन में नौ कन्याएं जुटा पाना भी मुश्किल हो जाएगा।
आखिर क्यों ये पाखंड कि कन्या पूजन के समय ही सिर्फ कन्या को मान-सम्मान देना और फिर उसी समाज में बेटी के जन्म से पहले ही उसकी गर्भ में ही हत्या कर देना। मेरे विचार से भ्रूण हत्या करने वाले देश में नवरात्रि का कन्या पूजन हिपोक्रेसी की सीमा है।
आखिर क्या है देश में कन्या भ्रूण हत्या की संख्या
आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ सालों में जागरुकता की बड़ी -बड़ी बातें की गईं लेकिन अनुमान है कि 2017 से 2030 के बीच भारत में लगभग 68 लाख बेटियां कोख में ही मार दी जाएंगी। जर्नल प्लोस में छपे एक नए शोध में ये बात सामने आई।
भारत में कन्या भ्रूण हत्या का इतिहास बहुत पुराना है और आज भी लड़कों को ही प्राथमिकता दी जाती है। यही नहीं भगवान का रूप माना जाने वाला डॉक्टर ही कई बार गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग का पता लगाकर उसे मौत दे देता है। ऐसे समाज की उन्नति की भला क्या सोचें जहां कन्या का पूजन सिर्फ नवरात्रि के दौरान अपने पाप धोने के लिए किया जाता है। अगर हम साल 1970 से 2020 तक की बात करें तो भारत में लगभग 4. 6 करोड़ कन्याओं को जन्म से पहले ही गर्भ में मार दिया गया।
कन्या भ्रूण हत्या का क़ानून
भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 312 में बताया गया है कि यदि कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जो कि उसके लिए खतरनाक भी हो सकता है तो उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी।
इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात धारा 313 और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु धारा 314 इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चा कोख में ही मर जाए तो उसे दस साल की कैद हो सकती है। धारा 312 से 318 गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना जैसे जघन्य अपराध माने जाते हैं।
आखिर क्यों अभी भी जारी है कन्या भ्रूण हत्या
अगर कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़ों को खंगाला जाए तो ऐसे भी कई मामले हैं जिसमें खुद मां ने ही बच्चे को जन्म से पहले मार देने का निर्णय लिया है। घर के बड़ों की बातों और समाज की बुरी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली सोच ही मजबूर करती है भ्रूण की हत्या के लिए। समाज के कुछ ऐसे लोग जो वास्तव में अभी इस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं कि लड़के समाज को आगे बढ़ा रहे हैं।
अरे जरा सोचिये कि अगर लड़की ही नहीं होगी तो आगे चलकर लड़कों का जन्म कैसे होगा। जरा सोचिए अगर भ्रूण हत्या का ये क्रम जारी रहा तो अनुपात ये भी हो सकता है कि 10 लड़कों के बीच सिर्फ 2 लड़कियां। उफ़ क्या है ऐसे देश का भविष्य।
नवरात्रि के नौ दिन कन्या पूजन एक पाखण्ड है
अगर मैं अपने विचार बताऊं तो मुझे तो ये कन्या पूजन भी दिखावा लगता है। आखिर ऐसे पूजन का क्या फायदा जहां आप कन्या का सम्मान ही न कर सकें। बेटी सिर्फ कुछ दिनों के लिए पूजी जाए और बाकी दिनों में उसे अपमान की दृष्टि से देखा जाए तो ये दिखावा क्यों? अगर समाज की मानसिकता ही नहीं बदली तो भला ये दिखावा क्यों कि 'हमारे लिए बेटी और बेटे में कोई अंतर नहीं है। आखिर क्यों और कब तक?
कन्या भ्रूण हत्या आखिर कब तक और कब ये समाज इस मानसिकता से बाहर आएगा कि बेटों से ही देश का भविष्य है। सवाल बहुत से हैं लेकिन उत्तर अभी भी खोज रही हूं।
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