हम सभी बचपन से यही सुनकर बड़े हुए हैं कि ‘माता-पिता भगवान का रूप होते हैं’। वो हमेशा अपने बच्चों का भला चाहते हैं, यह बात काफी हद तक सच भी है। लेकिन कई बार अपनी बात मनवाने के चक्कर में पेरेंट्स टॉक्सिक भी हो जाते हैं, जिस वजह बच्चों और पेरेंट्स के बीच कम्युनिकेशन गैप होने लगते हैं। इन कारणों की वजह से बच्चे अपने पेरेंट्स से ही दूर हो जाते हैं।
यूं तो बॉलीवुड फिल्मों में कई ऐसे पेरेंट्स दिखाए गए हैं, जो अपने बच्चे की ताकत बनकर उभरते हैं। वहीं कई फिल्मों में कुछ ऐसे पैरेंट्स के किरदार भी दिखाए गए हैं, जो बेहद टॉक्सिक हैं। कहानी के आखिर में भले ही इन पेरेंट्स का हृदय परिवर्तन हो जाए, लेकिन ऐसे टॉक्सिक पेरेंट्स अपने बच्चे के लिए खुद भी बेहद खतरनाक होते हैं।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको बॉलीवुड फिल्मों के उन टॉक्सिक पेरेंट्स के बारे में बताएंगे, जिनसे आपको कभी भी इंस्पिरेशन नहीं लेनी चाहिए। तो देर किस बात की, आइए जानते हैं इन फिल्मी टॉक्सिक पेरेंट्स के बारे में-
नंदकिशोर अवस्थी, तारे जमीन पर-
मानसिक बीमारियों को लेकर भारत में आज भी ज्यादा जागरूकता देखने को नहीं मिलती है। ‘तारे जमीन पर’ फिल्म में भी यही दिखाया गया है। फिल्म में ईशान नाम के लड़के की कहानी दिखाई गई है, जिसे अक्षरों की पहचान करने में दिक्कत होती है। ईशान की इस समस्या को समझने की बजाए , उसके पिता उसे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ईशान के दोनों पेरेंट्स ही उसके हुनर को समझ नहीं पाते हैं और उसे बोर्डिंग स्कूल भेज देते हैं। इतना ही नहीं ईशान के पिता उसकी समस्या को बहाना मानते हैं, जिस कारण अक्सर उसपर हाथ उठा देते हैं।
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सुशीला, मैं प्रेम की दीवानी हूं-
फिल्म ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ ओवर एक्टिंग के साथ-साथ टॉक्शीलता भी भरपूर मात्रा में देखने को मिलती है। फिल्म में करीना की मां सुशीला का किरदार हिमानी शिवपुरी ने निभाया है। सुशीला एक ऐसी मां है, जो अपनी बेटी के लिए एक अमीर घर का लड़का खोजती है। घर में पहले प्रेम की एंट्री होती है, जिसे सुशीला बेहद पसंद करती है। जिस कारण वो संजना को बार-बार प्रेम के करीब लाने की कोशिश करती है। लेकिन जब उसे असल प्रेम का पता चलता है तो वो अपनी बेटी को उसकी मर्जी के खिलाफ शादी करने पर मजबूर करती है।
कायरा के पेरेंट्स, डियर जिंदगी-
बच्चों और पेरेंट्स के बीच की दूरियां उनके रिलेशनशिप को और भी ज्यादा खराब कर देती हैं। फिल्म ‘डियर जिंदगी’ में भी हमें कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। कायरा का विश्वास रिश्तों से उठ चुका है। वो हमेशा रिश्तों को छोड़ देती है, इससे पहले कि वो लोग उसे छोड़कर जाएं। इस वजह से कायरा डिप्रेशन में भी रहती है। एक सीन में कायरा अपने रिश्तेदारों से बात करते हुए कहती है कि ‘कैसे नकारात्मक भावना के लिए लोग बच्चों को दोष देने लगते है। माता-पिता होना कठिन है, लेकिन एक बच्चा होना भी उतना ही ज्यादा मुश्किल होता है।
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रायचंद, कभी खुशी कभी गम-
माता-पिता अपनी जिद्द के आगे कई बार बच्चों का दिल भी तोड़ देते हैं। फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ कुछ ऐसा ही दिखाया गया है।आप सभी को पता होगा कि यश वर्धन रायचंद का यह रोल अमिताभ बच्चन ने निभाया है। फिल्म में एक अहंकारी और फैमिली को डॉमिनेट करने वाला पिता अपने बच्चे को घर से बाहर निकाल देता है। क्योंकि उसे एक लड़की से प्यार हो जाता है, जो कि उनके स्टेटस की नहीं होती है। इतना ही नहीं वो खुद तो मॉर्डन लाइफ जीता है, लेकिन दूसरों को मूल्यों और नैतिकता का पाठ पढ़ाता रहता है। फिल्म के आखिर में यशवर्धन का हृदय तो परिवर्तित हो जाता है, लेकिन इस कारण उनका बेटा राहुल उनसे कई सालों के लिए दूर हो जाता है।
मेहरा फैमिली, दिल धड़कने दो-
यह फिल्म एक हाई सोसाइटी के पीछे छिपे असल चेहरे को दिखाती है। फिल्म में मेहरा फैमिली को कहानी को दिखाया गया है, जिनकी लाइफ पूरी तरह से डिस्टर्ब हो चुकी है। वो हमेशा अपनी टैलेंटेड बेटी को इग्नोर तो करते रहते हैं, वहीं बेटे को कंपनी का मालिक बनाना चाहते हैं। उनका बेटा बिजनेस में बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं होता है, इसके बावजूद भी मेहरा कपल उस पर बिजनेस संभालने का प्रेशर डालते हैं।
तो ये थे बॉलीवुड फिल्मों के बेहद टॉक्सिक पैरेंट्स, जिनसे आपको बिल्कुल भी सीख नहीं लेनी चाहिए। आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें, साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
Image Credit- film productions and instagram
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