हमारे समाज ने खुद को अपनी तरफ से ही 'मॉर्डन' घोषित कर दिया है और जब भी फेमिनिज्म और महिलाओं के अधिकारों की बात होती है तो ये कहा जाता है कि महिलाओं को तो सभी तरह के अधिकार दिए जा रहे हैं। इसके अलावा, एक तरह का स्टीरियोटाइप भी है कि सेलेब्स के साथ तो किसी तरह का सेक्सिज्म होता ही नहीं है। ये भी बेहद गलत है, हाल ही में कई सेलेब्स ने अपने साथ हुए सेक्सिज्म की बात की है। नव्या नंदा ने इस बारे में एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था और ये बताया था कि उनके घर पर गेस्ट के आने पर उनके भाई को नहीं बल्कि उनको ही बोला जाता है।
हाल ही में एक अंग्रेजी वेबसाइट द्वारा ऑर्गेनाइज किए गए टॉक शो में शैफाली शाह और विद्या बालन ने अपने साथ हुए सेक्सिज्म की बात बताई। विद्या बालन का कहना है कि जब वो और उनके पति दोनों ही अपने-अपने काम में व्यस्त होते हैं तो घर में मौजूद हाउस हेल्प उन्हें डिस्टर्ब करने में बुराई नहीं समझते, लेकिन वहीं वो लोग उनके पति के साथ ऐसा नहीं करते हैं। शैफाली शाह ने भी कहा कि अपनी सीरीज के प्रमोशन जैसी बहुत ही जरूरी इवेंट में भी उनके बच्चे उन्हें डिस्टर्ब कर सकते हैं, लेकिन वहीं उनके पति के साथ ऐसा नहीं किया जाता।
आपने अपने घरों में ही ना जाने कितनी ऐसी चीजें देखी होंगी जहां पर हमेशा महिलाओं के साथ सेक्सिज्म किया जाता है और डबल स्टैंडर्ड्स हमारे दिमाग में इतना ज्यादा घर कर चुके हैं कि हम इन्हें नॉर्मल ही समझ बैठे हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कि किस तरह से हमारी सोसाइटी में सेक्सिज्म भरा हुआ है।
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1. फाइनेंस तो पुरुषों का काम है
घर खरीदने से लेकर कार खरीदने तक और शेयर मार्केट में निवेश करने से लेकर घर का पैसों से जुड़ा कोई नया फैसला लेने तक हमेशा फाइनेंस की बातों को लेकर पुरुषों का वर्चस्व दिखता है। महिलाओं से पर्दे के रंग से लेकर घर को सजाने की चीज़ें आदि पूछी जाती हैं।
2. बच्चों को पढ़ाने का मतलब पुरुषों के लिए सिर्फ फीस भरना है
स्कूल की फीस मैं भर दूंगा, यूनिफॉर्म गंदी है तो तुमने ध्यान नहीं दिया, ऐसे ना जाने कितने ही उदाहरण आपको मिल जाएंगे। बच्चा ठीक से नहीं पढ़ रहा है तो ये भी मां की गलती होती है, लेकिन पिता का फर्ज सिर्फ फीस भरने तक ही रहता है।
3. महिलाएं सही ड्राइव नहीं करती हैं
ऐसा तो शायद आपने रोड पर चलते हुए, घरों के अंदर, कॉलेज, स्कूल तक में सुना होगा। महिलाएं सही ड्राइव नहीं करती हैं इसके बारे में तो ना जाने कितने मीम्स भी सोशल मीडिया पर बनाए जाते हैं। क्या इससे आपको सेक्सिज्म की झलक नहीं मिलती।
4. लड़कियों के लिए शरीर को शेव करना बहुत जरूरी है
अगर किसी पुरुष के अंडरआर्म्स के बाल सामने दिखते हैं तो कोई दिक्कत महसूस नहीं होती है, लेकिन ऐसा ही किसी लड़की के साथ हो तब तो भाई उसे वैक्स करवाने, शेव करवाने की सलाह देने वाली लड़कियां खुद भी होती हैं और पुरुषों का तो क्या कहना।
5. मेहमान आएंगे तो लड़की ही उठकर आएगी
मेहमानों का सत्कार लड़के कर ही नहीं सकते हैं। मेहमान आएंगे तो लड़कों को दौड़कर बाज़ार से कुछ लाने को कहा जाएगा और लड़कियों को किचन में मदद करने को कहा जाता है। नव्या नंदा का ये स्टेटमेंट यकीनन सही है क्योंकि हमारे घरों में यही होता है और इसे सेक्सिज्म समझा ही नहीं जाता है।
6. सफेद बालों से जुड़ा सेक्सिज्म
आजकल सॉल्ट एंड पेपर लुक लड़कों के लिए तो बहुत चल रहा है और इसे क्लासिक माना जाता है, लेकिन लड़कियों के लिए सफेद बाल होने का मतलब वो बूढ़ी हो गई हैं। उन्हें बालों में मेहंदी लगाने, उन्हें कलर करने को कहा जाता है।
7. बच्चों का काम तो महिलाओं का ही होता है
अगर कोई पिता अपने बच्चों को पार्क में घुमाने लेकर जाए तो ये उसकी उदारता, लेकिन अगर कोई महिला लेकर जाए तो ये उसका फर्ज। अगर बच्चों को चोट लग जाए या फिर उनके कपड़े गंदे हों तो उन्हें संभालने का काम हमेशा मां का ही समझ लिया जाता है। बच्चे तो दोनों के हैं फिर किसी एक के ऊपर इस तरह का बोझ क्यों?
8. महिलाएं हैं बाथरूम में तो ज्यादा समय लगाएंगी
ऐसा तो ना जाने कितनी बार हुआ होगा कि महिलाओं को स्टीरियोटाइप कर दिया गया हो। आपने खुद ही ऐसा बहुत कुछ देखा होगा। महिलाओं के बारे में हमेशा माना जाता है कि उन्हें बाथरूम में ज्यादा समय लगता है, उन्हें तैयार होने में ज्यादा समय लगता है, उन्हें तो अपने बालों को संवारने में ही समय लग जाता है आदि।
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9. लड़की है इतना मुश्किल काम कैसे करेगी
लड़कियों को क्या काम करना चाहिए उसका फैसला समाज पहले से ही कर चुका है। लड़कियां सॉफ्टवेयर इंजीनियर आसानी से बन सकती हैं, लेकिन मेकेनिकल इंजीनियर आखिर कैसे बनेंगी। लड़कियां रात में कॉल सेंटर में काम करेंगी तो ये गलत होगा, लड़कियां आर्किटेक्ट या पायलट कैसे बनेंगी क्योंकि उनके लिए तो टीचर और प्रोफेसर जैसे काम सही हैं। ये स्टीरियोटाइप्स नहीं तो और क्या हैं?
10. 'दैट टाइम ऑफ द मंथ'
अंत में वो जुमला जिसे ना जाने कितनी ही बार महिलाओं के लिए कहा जाता है। अगर पुरुष ऑफिस में किसी से लड़ाई करे या फिर गुस्से में रहे तो स्ट्रेस और उसका नेचर और महिला करे तो कैटफाइट और दैट टाइम ऑफ द मंथ। ये तो हमेशा से ही देखा गया है कि इस तरह का सेक्सिस्ट व्यवहार आए दिन होता है।
चाहे ना चाहे सेलेब्स के साथ भी होता है सेक्सिस्ट बिहेवियर अपने घरों में, क्या आप भी अपने घरों में इस तरह की अनचाही डिवीजन तो क्रिएट नहीं कर रहे हैं। आपके नियम लड़कों के लिए कुछ और लड़कियों के लिए कुछ और होते जा रहे हैं। लड़के अगर घर का काम करें तो वो श्रवण कुमार बना दिए जाते हैं और पानी का ग्लास या अपनी झूठी प्लेट उठाकर रख दे तो वो बहुत अच्छा बन जाता है, लेकिन अगर लड़कियां ये करें तो ये तो उनका काम मान लिया जाता है। ये डबल स्टैंडर्ड्स नहीं तो और क्या है।
आप खुद सोचें और कमेंट कर हमें बताएं कि आपके साथ इस तरह के डबल स्टैंडर्ड्स कब-कब हुए हैं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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