संस्कृति और संस्कार की नई परिभाषा गढ़ता बेंगलुरु आधुनिकता के मामले में भी हर सीमा को लांघता नजर आता है। इस कॉस्मोपॉलिटन शहर में खान-पान भी यहां के कल्चरल हैरिटेज को दर्शाता है। दिलचस्प बात ये है कि ये शहर अपनी ऐतिहासिक धरोहर के साथ अपनी नाइट लाइफ को भी पूरे उत्साह के साथ सेलिब्रेट करता है। दिल्ले में रेडियो सिटी के आर जे आदि बेंगलुरु में मिले रेडियो सिटी की आरजे नेत्रा से और साथ में ये दोनों आपके लिए लेकर आए हैं बेंगलुरु के 10 ऐसे चुनिंदा अड्डे, जहां का स्वाद आपको कभी भुलाए नहीं भूलेगा-
विद्यार्थी भवन
विद्यार्थी भवन की शुरुआत एक छोटी सी कैंटीन से हुई। वेंकटरमन पूरल ने इसे 1943-44 में शुरू किया था। वेंकटरमन को इस काम में मदद की थी उनके भाई परमेश्वर पूरल ने। यहां आपको काफी वैराएटी मिल जाएंगी। यहां का मसाला डोसा विशेष रूप से फेमस है। यहां का चाओ-चाओ राइस का स्वाद भी बेहतरीन है। यहां का डोसा पिज्जा बेस की तरह क्रंची होता है और इसकी चटनी होती है बेहद चटपटी। इस जगह की एक खास बात ये है कि यहां बहुत सारे लोगों के स्केच लगे हुए हैं। इन सभी महान शख्सीयतों ने कन्नड़ भाषा के विकास में अपना योगदान दिया। अगर आपकी इतिहास में रुचि है तो ये जगह आपको काफी अच्छी लगेगी।
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चेट्टीज कॉर्नर
इसकी शुरुआत 1997 में दो भाइयों विनोद कुमार और अनिल कुमार ने मिलकर की थी। चीज से भरा हुआ बन लिपटू आपको काफी ज्यादा स्वाद लगेगा। इस बन में ढेर सारा चीज चटनी के साथ पापड़ी होती है। इसके साथ मसाला कोक का कॉम्बिनेशन अदभुत है। साथ ही डंडी में लिपटा आलू का बना ट्विवस्ट-ए-टो का स्वाद काफी चटपटा है।
हल्ली मने रेस्तरां
अगर केले के पत्ते पर ऑथेंटिक उडुपी का स्वाद चखने को मिले तो कहने ही क्या। यशवंतपुर मेट्रो स्टेशन के बिल्कुल नीचे हल्ली मने रेस्तरां स्थित है। हल्ली मने का अर्थ होता है 'देसी हाउस'। इसे थोड़ा सा गांव वाला लुक दिया गया है। देसी दिलवालों को यहां का एंबियंस काफी अच्छा लगेगा। चना दाल, परवल, डेट्स स्पाइसा और चावल की बनी रोटी का स्वाद ऐसा है कि आपको जन्नत का अहसास करा दे। इसमें मिलने वाला पुलाव थोड़ा स्पाइसी होती है। ये चीजें यहां साल में तीन बार ही सर्व की जाती हैं। मकर संक्रांति, युगादि और गणेश चतुर्थी।
कामत ब्यूगल रॉक
इसकी शुरुआत 2003 में हुई थी और ये प्योर वेजिटेरियन रेस्टोरेंट है। यह सुबह 7 बजे से लेकर रात के 10.30 बजे तक खुला रहता है। यहां जो खाना सर्व किया जाता है, वह काफी न्यूट्रिशस होता है और आसानी से पच जाता है। इसमें रायता, स्प्राउट्स, सलाद, ब्रिजल करी का स्वाद बेहतरीन है।
मवाली टिफिन रूम्स
एमटीआर यानी मवाली टिफिन रूम्स की शुरुआत 1924 में हुई थी। यहां चांदी के ग्लास में आपको कॉफी सर्व की जाती है। यहां के मील की वैराएटी देखकर आपकी आत्मा तृप्त हो जाएगी। दरअसल इसमें अचार, चटनी, पोंगल, रसम, सांभर, पालिकाए भज्जी, राइस, कर्ड राइस, फ्रूट सेलेड विद आइसक्रीम, खीर जैसी चीजें प्लेट के आसपास देखकर आप खाने के लिए पूरी तरह से एक्साइटेड हो जाएगी। वहीं प्लेट में मसाला डोसा, कायोपट्टो, पूड़ी जैसे ढेर सारे आइटम होते हैं। यहां कॉफी दो ग्लासेस में सर्व की जाती है। इस कॉफी को पीने के बाद आपका हैवी खाना पच जाएगा।
नागार्जुन आंध्रा स्टाइल
नागार्जुन ग्रुप का पहला आउटलेट रेसिडेंसी रोड पर ऑथेटिंक आमरा डेलिकेसी सर्व करने के साथ शुरू हुआ था। यहां का एंबियंस काफी क्लासी है। यहां का मेन्यू केले की शेप में है। यहां की मटन बिरियानी और सिग्नेचर चिकन नागार्जुन रोस्ट काफी स्पेशल है। यहां की बिरियानी काफी स्पाइसी है, लेकिन यह धीरे-धीरे आपको पता चलता है। चिकन नागार्जुन रोस्ट में करी पत्ते और अलग-अलग तरह के मसालों का स्वाद आता है और ये धीरे-धीरे आपकी जुबान पर आता है, जिससे खाने का मजा और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
कोशीज
सेंट मार्च रोड पर यह एक पॉपुलर रेस्टोरेंट है। यह फूड आउटलेट थिएटर पर्सनेलिटीज, पत्रकारों और आर्टिस्ट्स के मीटिंग पॉइंट के तौर पर भी जाना जाता है। कोशीज को मोस्ट स्टाइलिश प्लेस के अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। यहां की तंदूरी फिश का जायका लेना ना भूलें। दाल काफी में काफी अच्छी लगती है, तंदूरी रोटी का स्वाद भी सोंधा सा है, वहीं तंदूरी फिश मुंह में जाते ही घुल जाती है। इसका स्वाद पूरी तरह से बैलेंस्ड है।
कर्नाटक भेल हाउस
श्री प्रभु लिंग देव ने 1975 इसकी शुरुआत की थी और इसका आइडिया उन्हें उनके एक नॉर्थ इंडियन दोस्त ने दिया था। अगर आपको चटपटी चीजें पसंद हैं तो यहां आपको कम से कम एक बार जरूर आना चाहिए।
आनंद स्वीट्स एंड सेवरीज
अगर दक्षिण भारत घूमते हुए आपको उत्तर भारत की मिठाइयां खाने का मन होने लगे तो चले आइए आनंद स्वीट्स एंड सेवरीज। यहां आपको उत्तर भारत की मिठाइयों का ऑथेंटिक टेस्ट मिलेगा। सॉफ्ट स्पंजी रसगुल्ले, रसमलाई और कचौड़ी आपके मन को खुश कर देंगे। यहां के मैसूर पाक का स्वाद भी काफी अच्छा है। मैसूर के राजा एक दिन बैठे हुए थे और उनके सामने एक स्वीट डिश सर्व की गई। राजा को यह मिठाई काफी टेस्टी लगी और उन्होंने इसका नाम पूछ लिया। आसपास खड़े लोग सोच में पड़ गए और किसी ने अचानक 'मैसूर पाक' बोल दिया और तब से इस मिठाई का नाम मैसूर पाक पड़ गया।
श्री वसावी कोंडीमेंन्ट्स
गीता शिवकुमार ने 1995 में इस फूड आउटलेट की शुरुआत की थी। पहले गीता जी घर में नमकीन और मिठाइयां बनाया करती थीं और अपने क्लाइंट्स तक सामान पहुंचाने के लिए बसों के धक्के भी खाती थीं। बाद में धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता चला गया और आज वह इस मुकाम पर हैं। गीता शिवकुमार ने आवरे बेले फेस्टिवल की भी शुरुआत की थी। यहां की स्पेशेलिटी यह है कि यह सबकुछ एक ही चीज का बना होता है। आवरे बेले जलेबी, आवरे बेले गुलाब जामुन, आवरे बेले वड़ा के साथ ढेर सारी अन्य डिशेज।