हमारे देश में किस्से-कहानियां सुनाने का प्रचलन सदियों से रहा है। बच्चे रात में सोते समय अपनी दादी या मां से ढेर सारे दिलचस्प किस्से सुनते हैं। दिल्ली की फौजिया का बचपन भी अपनी मां से कहानियां सुनकर बीता। फौजिया के पिता मोटरबाइक मैकेनिक थे और उनकी दिलचस्पी कहानियों में थी। पिता घर पर जो भी किताबें लातें, नन्ही फौजिया उसमें से सारे किस्से पढ़ डालती थी। फौजिया की मां जब उन्हें उर्दू क्लासिक्स से कहानियां पढ़कर सुनाती थी तो फौजिया और भी ज्यादा एक्साइटेड हो जाती थी। बचपन में किस्से-कहानियां सुनते हुए फौजिया कब इस फन में माहिर हो गईं, उन्हें पता भी नहीं चला। आज फौजिया देश की सबसे बेहतरीन उर्दू स्टोरीटेलर्स में शुमार की जाती हैं।
कहानियां सुनाने में माहिर हैं फौजिया दास्तानगो
पहले के समय में पुरुष स्टोरीटेलर्स की मांग हुआ करती थी, लेकिन फौजिया का कहानी सुनाने का अंदाज ऐसा है कि बार-बार उनसे कहानी सुनने की इच्छा होती है। फौजिया की कहानियों में रोमांच, जादू और लड़ाइयां सबकुछ शामिल हैं। आपको यह जानकर खुशी होगी कि फौजी उन महिलाओं के समूह का हिस्सा हैं, जिन्होंने किस्से कहने की 13वीं सदी की कला को आज भी जीवंत रखा है। फौजिया ने कड़ी मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनाई है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फौजिया अपने एक शो की तैयारी के लिए 6 महीने पहले से तैयारी करती थीं।
पैशन के लिए डेडिकेट की अपनी जिंदगी
फौजिया को खुद को स्थापित करने के लिए कई चैलेंजेस का सामना करना पड़ा। दास्तानगोई के लिए उन्हें आलोचना सुनने को मिली, लेकिन वह इससे प्रभावित नहीं हुईं। शुरुआत में उनकी कहानियां सुनने के लिए लोग नहीं आते थे, इस पर भी फौजिया ने अपना दिल छोटा नहीं किया। दास्तानकोई के लिए अपने डेडिकेशन से उन्होंने धीरे-धीरे अपने फैन्स का दिल जीत लिया। उन्होंने शादी नहीं की है और वह अपना पूरा समय इसी कला को मांजने में देती हैं। फौजिया ने अपने दिल की सुनी और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ दास्तानगोई की। जिस तरह से उन्होंने इस क्षेत्र में नाम कमाया, उससे आज के दौर की महिलाएं भी इंस्पिरेशन ले सकती हैं और कामयाबी हासिल कर सकती हैं।