ब्रेस्ट को लेकर हमने एक छोटा सा सर्वे किया और महिलाओं से कुछ सवाल किए -
शरीर का वो कौन सा अंग है जिसके दिखने पर उन्हें सबसे ज्यादा शर्म महसूस होती है और वो उसे ढक कर रखना चाहती हैं?
जवाब था- ब्रेस्ट
शरीर का वो कौन सा अंग है, जो उन्हें सबसे ज्यादा औरत होने का अहसास कराता है?
जवाब था- ब्रेस्ट
आपको सबसे ज्यादा असुरक्षित और असहज कब लगता है, जब किसी की निगाहें आपके शरीर के कौन से अंग पर होती है?
जवाब था- ब्रेस्ट
किसी महिला का फिगर अच्छा है या बुरा, सबसे ज्यादा लोग शरीर का कौन सा अंग देखकर यह जज करते हैं?
जवाब था- ब्रेस्ट
महिलाओं का शरीर, खासतौर पर उनके ब्रेस्ट, सदियों से समाज के लिए न केवल आकर्षण का केंद्र रहे हैं, बल्कि विवाद का सामान भी बने रहे हैं। चाहे धार्मिक मान्यताओं में ब्रेस्ट को पवित्र और देवी शक्ति का प्रतीक मानकर उन्हें सम्मान देने की बात हो या फिर आधुनिक पॉप कल्चर में उन्हें एक्सपोज करके अपना फैशनेबल अंदाज और स्टाइल स्टेटस दिखाना हो , महिलाओं को अपने ब्रेस्ट को लेकर हमेशा ही समाज की दोहरी मानसिकता और दखल से संघर्ष करना पड़ा है।
अब पैरिस में हुए महिलाओं के टॉपलेस प्रोटेस्ट को ही ले लीजिए। अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (25 नवंबर) के मौके पर शुरू हुए इस प्रोटेस्ट ने एक नया मोड़ ले लिया है। इस प्रोटेस्ट ने इतनी तेजी से बड़ा आकार ले लिया है कि पूरे विश्व में चर्चा का विषय बन गया है। महिलाएं इस प्रोटेस्ट के जरिए अपने साथ हो रही हिंसा को रोकने और अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रही हैं। यह उनके अधिकारों की लड़ाई है, जिसमें उन्हें खुलकर जीने और बिना डर के अपनी बात रखने का हक मिलना चाहिए।
सोशल मीडिया पर इस प्रोटेस्ट के बारे में मिली फुटेज में लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कई लोग इस प्रोटेस्ट के तरीके को गलत मानते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि यह समाज के लिए शर्म की बात है कि महिलाओं को अपनी सुरक्षा की लड़ाई इस तरह से लानी पड़ रही है। पैरिस में ही नहीं, भारत में भी महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए ऐसे प्रोटेस्ट करने पड़े हैं।
यह सच है कि लगभग दो दशक पहले मणिपुर में 12 महिलाओं को अपनी सुरक्षा की खातिर नग्न होकर सड़कों पर उतरना पड़ा था। इन महिलाओं का विरोध उन लोगों से था जिनके कंधों पर उनकी सुरक्षा का जिम्मा था। यह सब एक महिला के साथ बलात्कार की घटना के बाद हुआ था, जब अर्धसैनिक बलों के कुछ सदस्यों ने यह अपराध किया था। इन महिलाओं ने अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए सरेआम आवाज उठाई थी और यही तरीका अपनाया था।
यहां सवाल उठता है कि आखिर महिलाओं को अपनी बात प्रभावी ढंग से और लोगों तक पहुंचाने के लिए इस तरह के कड़े कदम क्यों उठाने पड़े? क्यों उन्हें अपनी शारीरिक अस्मिता को इस तरह सार्वजनिक रूप से दिखाना पड़ा, जबकि वे बिना इस कदम के भी अपनी बात कह सकती थीं? शायद इसका कारण यह था कि जब तक कुछ दृश्यमान नहीं होता, तब तक लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं होता है।
ऊपर दिए गए सर्वे को पढ़कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक तरफ तो महिलाओं को ब्रेस्ट फेमिनिटी का अहसास कराते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपने ब्रेस्ट को लोगों की बुरी नजर से छुपाने की भी जरूरत पड़ती है। मसलन, सबसे बड़ी विडंबना यह है कि औरत के शरीर के जिस अंग को सबसे पवित्र माना गया है, जिससे अपनी संतान को वो दूध पिलाती है और उसका पालन-पोषण करती है। जो अंग एक महिला को आत्मविश्वास देता है, उसकी खूबसूरती में चार-चांद लगता है। उसी अंग को लेकर एक महिला को शर्म का भार उठाना पड़ता है।
इतिहास से लेकर वर्तमान तक, महिलाओं के ब्रेस्ट से जुड़े इतने नैरेटिव देखने को मिलते हैं, जो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि समाज द्वारा तय किए गए मानक कहीं महिलाओं के अधिकारों का हनन तो नहीं कर रहे? क्या महिलाओं की पहचान इन गैर जरूरी बातों में उलझ कर तो नहीं रह गई है? एक महिला की अपने ब्रेस्ट के प्रति जो सोच, भावनाएं और स्वतंत्रता है, उन पर हम शायद ही कभी बात करते हैं। तो आइए, आज इस पर चर्चा करें कि महिलाओं के स्तन महत्वपूर्ण होने के बाद भी विवादित क्यों हैं?
भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सिविलाइजेशन ) से हुई है। इस सभ्यता को प्रमाणित करने वाली कई चीजों में से एक है न्यूड डांसिंग वुमन की मुर्ति। जिसे देखकर पता चलता है कि प्राचीन काल से ही महिलाओं का शरीर लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। यही नहीं हम कई भारतीय मंदिरों में भी महिलाओं के न्यूड स्कल्पचर और चित्र देख सकते हैं, जिनमें खजुराहो के मंदिर, मोढेरा सूर्य मंदिर, मारकंडेश्वर मंदिर, रणकपुर जैन मंदिर और पदावली मंदिर प्रमुख हैं।
मसलन, यह देखकर कहना गलत नहीं होगा कि पहले के समय के लोगों की सोच आधुनिक समय के लोगों की मानसिकता से काफी खुली हुई थी। मगर इस तरह के चित्र और स्कल्पचर बनाए क्यों जाते थे, इस विषय पर हमारी बात आर्ट क्यूरेटर, आर्ट कॉल्यूमिस्ट एंड आर्टिस्ट मनीषा गावड़े से हुई । वह कहती हैं, " जब सभ्यता पनप रही थी, तो लोगों के आगे सबसे बड़ी चुनौती होती थी कि, जितने लोग होंगे, उतनी जमीन होगी और उसी हिसाब से वो अपना अधिकार जता पाएंगे। साथ ही, लोगों की यह भी मानसिकता थी कि ज्यादा जनसंख्या होने पर उन्हें सुरक्षा का अहसास ज्यादा होगा। उस समय पर अधिक से अधिक बच्चे हों, इसकी जागरूकता फैलाने और उसका जरिया क्या है, यह बताने के लिए ऐसी मूर्तियों और चित्रों का सहारा लिया जाता था, जिसमें स्त्री और पुरुषों को नग्न और संभोग की अवस्था में दर्शाया गया हो। "
इतना ही नहीं, जमीन और अधिकारों के विस्तार के लिए तब एक राज्य दूसरे राज्य पर हमले भी बहुत किया करते थे और इसमें बहुत सारे योद्धा मारे जाते थे। जो योद्धा बच जाया करते थे, उन पर अपने कुनबे की जनसंख्या को बढ़ाने की जिम्मेदारी होती थी। मनीषा कहती हैं, " युद्ध कर-कर के थक चुका शरीर और मानसिक तनाव योद्धाओं की जब संभोग की इच्छा को खत्म कर देता था, तब उस इच्छा को बढ़ाने के लिए मंदिरों में बने यह स्कल्पचर ही सहारा होते थे। लोग इसे ईश्वर का आदेश समझते थे और ज्यादा से ज्यादा बच्चे करने के लिए संभोग करते थे।"
मनीषा आगे बताती हैं, "तब ब्रेस्ट को स्त्रीत्व, मातृत्व, और शक्ति का प्रतीक माना जाता था। उस जमाने में कपड़ों का अस्तित्व ही नहीं था। अगर शरीर को ढकने की जरूरत भी पड़ती थी तो केवल ठंड से बचने के लिए लोग तन पर जानवरों की खाल या फर का टुकड़ा डाल लिया करते थे।'
वक्त बदला और वक्त के साथ लोगों की सोच बदली। मगर सोच का विस्तार होने की जगह वह संकुचित हो गई। वर्तमान में भी आपको यह स्कल्पचर देखने को मिल जाएंगे। कुछ लोग इसे कला की सुंदरता के रूप में देखते हैं, तो कुछ की निगाहों में अश्लीलता भरी होती है और वे इसे हंसी-ठिठोली का सामान समझते हैं। हालांकि, धर्म में आज भी महिलाओं के स्तन को बहुत पवित्र माना गया है और इससे जुड़ी कई प्रचलित मान्यताएं हैं।
स्त्रीत्व, मातृत्व, और शक्ति का प्रतीक माने जाने वाले ब्रेस्ट, कई बार धार्मिक रीतियों और मूर्तियों में भी चित्रित हुए हैं। स्वंय देवी काली की मूर्ति या चित्र को देखा जाए, तो आपको उनके ऊपर के शरीर पर वस्त्र नजर नहीं आएंगे। क्योंकि शास्त्रों में स्तनों को जीवनदायिनी स्रोत बताया गया है। मगर , जहां एक तरफ ब्रेस्ट को इतना पवित्र माना जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपवित्र और अशुद्ध मानने वाले लोग और उनका नजरिया भी प्रचलित है। रूढ़िवादी सोच से प्रेरित समाज काफी समय से यह तय करता आया है कि महिलाओं के ब्रेस्ट का वाजिब प्रदर्शन कैसा होना चाहिए।
ब्रेस्ट को लेकर धार्मिक उदाहरण यहीं खत्म नहीं होते हैं। पंजाब के जालंधर में मां भगवती की शक्तिपीठ है। यहां देवी के स्तन की पूजा होती है, इसलिए इसे स्तनपीठ भी कहते हैं। वैसे केवल भारत ही नहीं जापान में भी एक ऐसा मंदिर है, जहां पर ब्रेस्ट की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने से सुरक्षित प्रेग्नेंसी और ब्रेस्ट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से छुटकारा मिलता है। यह हैरानी की बात है कि विभिन्न देशों में ब्रेस्ट को अलग-अलग मान्यताओं के तहत पूजा जाता है, फिर भी समाज की मैली कुचैली मानसिकता महिलाओं के लिए परेशानी का कारण बन जाती है।
साउथ इंडियन स्टडीज के एक जनरल "Worshipping Breasts in the Maternal Landscape of India" में आंध्र प्रदेश में विवाह से जुड़ी एक रीति बताई गई है। रीति के अनुसार थाली के आकार का एक पेंडेंट होता है, जिसमें लाल, काला और सफेद मोती पड़ा होता है। थाली के केंद्र में दो गोल्डन पेंडेंट होते हैं जो ब्रेस्ट का प्रतीक होते हैं। इस थाली को हल्दी से लिपटे एक धागे में बांध दिया जाता है। इस धागे को शादी की एक रस्म के दौरान दूल्हा दुल्हन के गले में पहनाता है। यह पवित्र धागा शादी को सलामत रखने और दुल्हन को मातृत्व का आशिर्वाद देने के लिए पहनाया जाता है।
इन सब के बावजूद, अगर किसी महिला को अपने बच्चे को दूध पिलाते हुए किसी सार्वजनिक स्थल पर देख लिया जाए, तो यह समझने की जगह कि वो अपने बच्चे की बेसिक जरूरत को पूरा कर रही है की जगह, समाज उसे बेशर्म और बेहया घोषित कर देता है। इन सब से अव्वल, पुरुषों की नजरें दूध पिलाती औरत को टटोलने में लग जाती हैं, कि कहीं से स्तन की थोड़ी सी झलक दिख जाए। कई बार तो महिलाएं भी उस औरत को घूर-घूर कर असहज महसूस कराने में पीछे नहीं हटती हैं।
मार्च 2018 में, देश की प्रसिद्ध पत्रिकाओं मे से एक , गृहलक्ष्मी के साउथ लैंगवेज एडिशन के कवर पेज पर मॉडल, कवि और अभिनेत्री गिलु जोसेफ की अपने बच्चे को स्तनपान करते हुए तस्वीर प्रदर्शित हुई थी। इसका शीर्षक था, जो साफ कहता है कि स्तनपान कराना कोई शर्मिंदगी की बात नहीं है
ऐसे में स्तनपान करने वाली मांओं को घूर कर असहज महसूस करना किसी अपराध से कम नही आंकना चाहिए। मगर लोगों के विचाराधारा इस पर अलग है। इस इमेज को लेकर सोशल मीडिया पर एक नई बहस छिड़ गई थी और लोगों ने इस तरह की इमेज को लेकर नाराजगी जताई थी और इसे अस्वीकार कर दिया था।
ब्रेस्ट को लेकर महिलाओं का संघर्ष नया नहीं है। इसकी जड़ें भी इतिहास जुड़ी हुई है। ऐसे कई ऐतिहासिक वाकये हैं, जब महिलाओं ने अपने स्तनों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। एक समय ऐसा भी था जब निम्न जाति की महिलाओं को स्तनों को ढकने की इजाजत नहीं होती थी। यह उस समय की बात हो रही है, जब महिलाओं के स्तनों को मातृत्व का प्रतीक समझने की जगह, केवल संभोग और विलासिता का सामान समझा जाता था। इस पृष्ठभूमि में नंगेली जैसी महिला की कहानी खास है, जिन्होंने ‘ब्रेस्ट टैक्स’ के विरोध में अपने स्तनों को ही काट डाला और एक अमर मिसाल पेश की थी। फेमिनिस्ट हिस्टोरियन महिमा मुखर्जी कहती हैं, "यह घटना जाति-आधारित हिंसा के उन कई ऐतिहासिक प्रसंगों में से एक है। स्तन हमेशा से हिंसा, यौनिकता और पितृसत्तात्मक नियंत्रण का केंद्र रहे हैं। औरत को हमेशा से ही यह महसूस कराया गया है कि वो पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकती हैं और ऐसा करने के लिए उसका हमेशा शोषण किया गया है। "
आज, भले ही ऐसे कानून और टैक्स नहीं हैं, लेकिन समाज की सोच अब भी महिलाओं के लिए संघर्ष का कारण बनी हुई है। सबसे विवादित मुद्दा है क्लीवेज का है, अगर क्लीवेज दिख जाए तो महिला को बेशर्म समझा जाता है, और न दिखे तो उसे 'गंवार' कहकर फैशन सेंस न होने का ताना मिलता है। देश में ऐसी कई जगहें हैं, जहां महिलाओं के लिए विशेष ड्रेस कोड है। अगर गलती से भी उनके शरीर का कोई हिस्सा दिख जाए, जिस पर पाबंदी है, तो वह अगले दिन अखबारों की सुर्खियों में छा जाता है।
कई बार तो महिलाओं को हिंसक गतिविधियां और शोषण का भी सामना करना पड़ता है। जैसे किसी का गंदे इरादे से उनके ब्रेस्ट को टच करना। आमतौर पर जो महिलाएं पब्लिक कन्वेंशन से रोज ही ट्रेवल करती हैं, उन्हें न चाहते हुए भी अपनी ड्रेसिंग पर थोड़ा ध्यान देना होता है। खासतौर पर ब्रेस्ट को अच्छे से कवर करके रखना पड़ता है। इतना ही नहीं, ब्रेस्ट के आकार को लेकर होने वाली अश्लील टिप्पणियां और लोगों की अनचाही सलाह भी उनके तनाव का कारण बनती है।
फिल्मों, विज्ञापनों और टीवी शोज में अक्सर महिलाओं के ब्रेस्ट को कामुकता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस पर एक्ट्रेस छवि मित्तल सहमति जताते हुए कहती हैं, "एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का मकसद है अधिकतम टीआरपी बटोरना। जहां से सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित होता है, वही वे दिखाते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है। जो आर्टिस्ट ऐसा करना चाहते हैं, कई बार उन्हें ट्रोल किया जाता है। जो कि गलत है, क्योंकि हर महिला को अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बिना किसी सामाजिक दबाव और लांछन के।"
छवि मित्तल, जो खुद ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर हैं, यह भी बताती हैं कि एक महिला अपने ब्रेस्ट के साथ किता भावनात्मक रूप से जुड़ी होती है। वह कहती हैं, "किसी के लिए ब्रेस्ट कामुकता का तो किसी के लिए मातृत्व का प्रतीक हो सकते हैं, लेकिन सबसे बढ़कर, ब्रेस्ट महिला के शरीर का हिस्सा हैं, और हर इंसान को अपने शरीर से प्रेम होता है।"
वह इस बात को भी स्वीकारती हैं कि जैसे चेहरे का अच्छा दिखना जरूरी है, वैसे ही ब्रेस्ट का सुंदर दिखना भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, अगर क्लीवेज दिखाने या थोड़े कर्व्स को उभारने से बेहतर लुक मिलता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं। छवि यह भी मानती हैं कि महिलाओं के ब्रेस्ट का आकार और शेप उनके लिए काफी मायने रखता है। वह कहती हैं, "जब मेरी सर्जरी होनी थी, तो कई भावनाएं मेरे मन में उमड़ रही थीं। इनमें से एक चिंता थी कि अब मेरे ब्रेस्ट पहले जैसे नहीं दिखेंगे। जब मैं डीप नेकलाइन वाली ड्रेस पहनूंगी तो एक निशान दिखेगा। हर महिला चाहती है कि उसके शरीर पर कोई निशान न हो, और खासतौर पर वह अंग जो उसे महिला होने का एहसास कराता है, उसकी सुंदरता तो अत्यधिक मायने रखती है।"
शायद यही कारण है कि ब्रेस्ट को बेहतर आकार में दिखाने के लिए बाजार में कई तरह की पुशअप और वायर्ड ब्रा उपलब्ध हैं। इन्हें पहनने से ब्रेस्ट का आकार और शेप आकर्षक दिखाई देता है।
ब्रेस्ट को लेकर समाज में एक बड़ा टैबू बना दिया गया है। यहां तक कि महिलाएं आपस में भी ब्रेस्ट से जुड़ी कोई बात करती हैं तो अक्सर इसे कान में फुसफुसाकर कहने की जरूरत महसूस होती है। इस मानसिकता को बढ़ावा देने में मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का भी योगदान है। कई बार फिल्मों और टीवी शोज में ऐसे दृश्य सेंसर कर दिए जाते हैं जिनमें ब्रेस्ट की हल्की झलक दिखती हो, जबकि पुरुषों के शर्टलेस दृश्यों को बिना झिझक दिखाया जाता है। इन दोहरे मापदंडों से समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराधिक घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
लोक-लाज और शर्म के कारण कई बार महिलाएं अपनी इच्छाओं और जरूरतों को भी दबा देती हैं। हालांकि, बदलते समय के साथ महिलाओं ने साहस दिखाया है और समाज की संकीर्ण सोच को चुनौती देने का प्रयास किया है। अच्छी बात यह है कि कुछ पुरुष भी इस बदलाव में महिलाओं का साथ दे रहे हैं। महेश चावान, जो पेशे से टैटू आर्टिस्ट हैं, ऐसे ही एक शख्स हैं। वे उन महिलाओं के लिए एक मसीहा बन चुके हैं, जिनके स्वास्थ्य कारणों से निप्पल हटा दिए गए हैं। महेश से बातचीत के दौरान कुछ ऐसी स्टोरीज सुनने को मिली, जो जाहिर करती हैं कि एक एक महिला के लिए उसके स्तन कितने महत्वपूर्ण होते हैं। महेश ऐसी ही एक कहानी का जिक्र करते हैं, "एक लेडी मेरे साथ अपने हसबैंड के साथ आई थी। उसके निप्पल सर्जरी में रिमूव कर दिए गए थे। हम किसी भी क्लाइंट का टैटू बनाने से पहले उसकी काउंसलिंग भी करते हैं। हमने उसकी भी काउंसलिंग की थी और उसे ऑफर किया था कि वो निप्पल का टैटू फीमेल स्टाफ से बनवा ले। मगर उसने मना कर दिया कि वो बहुत ही परफेक्शन चाहती है और मेरे से ही उसे टैटू बनवाना था। एक आर्टिस्ट के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है, जब उसे नेचर को चैलेंज करना होता है। मेरे लिए भी वो एक टफ जॉब था। मगर टैटू बनने के बाद बहुत रियल लग रहा था और क्लाइंट मेरे काम से सेटिसफाई था।"
महेश और भी कई किस्से सुनाते हैं। वह कहते हैं, "केवल औरते ही नहीं बल्कि ट्रांस वुमन भी मेरे पास आती हैं। मुझे ब्रेस्ट और निप्पल के टैटू बनाते हुए अब खास अनुभव हो चुका है। मुझे खुशी है कि मेरी कला उन लोगों के जीवन में खुशी ला सकती है, जो कुदरत उन्हें नहीं दे पाई।"
इसके अलावा, अपने ब्रेस्ट के आकार को अपनी पसंद के अनुसार दिखाने के लिए कई महिलाएं ब्रेस्ट इम्प्लांट भी करवाती हैं। हालांकि, धर्म के ठेकेदारों ने इसे कई बार गलत ठहराया है, मगर महिलाएं अब अपने शरीर पर अपने अधिकार की जंग लड़ रही हैं। एक्ट्रेस छवि मित्तल ऐसी महिलाओं के हक में बात करती हैं, "फैशन इंडस्ट्री में ब्रेस्ट को लेकर एक खास तरह का दबाव हमेशा रहा है। चाहे वह फैशन पत्रिकाओं के कवर हों या रनवे शोज, महिलाओं को आदर्श बॉडी शेप में ढालने की कोशिश होती रही है। जो महिलाएं पतली होती हैं उन्हें "फ्लैट चेस्ट" कहा जाता है, जबकि जिनके ब्रेस्ट अधिक उभरे हुए होते हैं, उन पर "कर्वी" होने का लेबल लगा दिया जाता है। ऐसे में, हर महिला को यह दबाव महसूस होता है कि वह समाज की अपेक्षाओं पर खरी उतरे।"
महिलाओं के अधिकारों और अपने शरीर पर खुद के अधिकार को लेकर बीते वर्षो में कई अभियान छेड़े गए। इनमें से #FreeTheNippl से लेकर ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता तक सभी ने महिलाओं को बल दिया है। इसका असर कुछ ऐसा है कि महिलाएं अब खुल कर सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर ब्रेस्ट पर बात कर रही हैं।
कभी पवित्रता का प्रतीक, तो कभी शर्म का भार ,
कभी सुंदरता की मिसाल, तो कभी अश्लीलता का वार ।
कभी मनोरंजन का कारण, तो कभी बेशर्मी का नाम,
दूसरों की नजरों में, बनता है ये हंसी का सामान।
ये है उसके स्वाभिमान का अंश, न बनाओ इसे हंसी-ठिठोली का किस्सा
दिखाए या छुपाए वो अपनी मर्जी से, है ये उसके ही शरीर का हिस्सा।
क्यों सदियों से विवादों में घिरा है, क्यों ये बहस का मुद्दा बना है,
हर औरत को है ये हक, अपने स्तनों से करे वो स्नेह बेझिझक।
- अनुराधा गुप्ता
अंत में यह कहा जा सकता है कि समाज की दोहरी मानसिकता, कभी महिलाओं के शारीरिक अंगों का विश्लेषण कर के, तो कभी उन पर टिप्पणियां कसकर, उन्हें हमेशा पीछे धकेलने और कमजोर दिखाने की कोशिश करती रहेगी। लेकिन अपनी बात को बेझिझक सामने रखना भी उतना ही जरूरी है।
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