नवजात के जन्म के बाद मां की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि उसे नवजात की हर छोटी-छोटी जरूरत का ध्यान रखना पड़ता है। इनमें से सबसे जरूरी है नवजात को स्तनपान करवाना। ब्रेस्टफीडिंग को मां और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक माना गया है। जहां ब्रेस्टफीडिंग करवाने से महिलाओं को पोस्टपार्टम वजन कम करने से लेकर पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही इससे महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि का खतरा भी कम होता है।
वहीं, ब्रेस्टफीडिंग शिशु के लिए एक रक्षा कवच की तरह काम करती है और इससे उनकी इम्यूनिटी बढ़ती है। इससे बच्चे को डायबिटीज, एलर्जी और बचपन में होने वाला ल्यूकेमिया जैसे इंफेक्शन के खतरे को कम करने में मदद मिलती है। ब्रेस्टफीडिंग के इतने सारे फायदों को जानने के बाद भी अक्सर महिलाएं ब्रेस्टफीड करवाने से बचती हैं, क्योंकि इस दौरान उन्हें काफी दर्द होता है। तो चलिए आज इस लेख में अपोलो क्रैडल रोयॉल और दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट आब्स्टिट्रिशन एंड गाइनकालजिस्ट डॉ रंजना शर्मा आपको उन कारणों के बारे में बता रही हैं, जिसकी वजह से एक महिला को ब्रेस्टफीड के दौरान दर्द होता है-
मानसिक रूप से तैयार ना होना
यह तो हम सभी जानते हैं कि प्रसव के बाद महिला को ब्रेस्टफीड करवाना चाहिए। लेकिन फिर भी कुछ महिलाएं मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं होती हैं। उनके मन में ब्रेस्टफीडिंग को लेकर तरह-तरह के मिथ्स होते हैं या फिर वह अपने फिगर को लेकर जरूरत से ज्यादा कॉन्शियस होती है। ऐसे में वह या तो ब्रेस्टफीड करवाती ही नहीं हैं या फिर इस प्रोसेस को सही तरह से नहीं कर पाती हैं। जिसके कारण उनके ब्रेस्ट काफी हैवी हो जाते हैं और जिससे उन्हें दर्द होता है।
सही तरह से ब्रेस्टफीड ना करवा पाना
यह समस्या अक्सर न्यू मॉम या पहली बार मां बनी महिलाओं में देखी जाती है। दरअसल, उन्हें यह पता नहीं होता है कि उन्हें बच्चे को ठीक ढंग से ब्रेस्टफीड किस तरह करवाना है। ऐसे में जब बच्चा सही तरह से फीड नहीं कर पाता है, तो ब्रेस्ट में मौजूद ग्लैंड्स में दूध इकट्ठा होता है। जिससे ब्रेस्ट हार्ड हो जाते हैं और उनमें दर्द होना शुरू हो जाता है। इसलिए, जब भी बच्चे को आप ब्रेस्टफीड करवाएं तो उसे सही तरह से होल्ड करें और राइट एंगल 90 डिग्री पर उसका माउथ होना चाहिए, जिससे बच्चा सही तरह से ब्रेस्टफीड कर सके।
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शुरूआती दिनों में ब्रेस्टफीड ना करवाना
नवजात के जन्म के बाद अक्सर महिलाओं के ब्रेस्ट में पर्याप्त दूध बनने में एक से दो दिन का समय लगता है। जिससे महिला को लगता है कि उनके ब्रेस्ट में दूध आ नहीं रहा है या बच्चा दूध नहीं पी रहा है, जिसके कारण वह दूध नहीं पिलाती हैं। ऐसे में ब्रेस्ट में इतना दूध इकट्ठा हो जाता है कि ब्रेस्ट व निप्पल ही हार्ड हो जाते हैं। अंततः बच्चे के लिए ठीक ढंग से ब्रेस्टफीड करना मुश्किल हो जाता है। जिसके कारण महिला को ब्रेस्ट में जमा दूध के कारण काफी दर्द होता है। इसलिए, बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही उसे दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए। भले ही अभी दूध कम आ रहा हो, लेकिन फिर भी आपको हर दो-तीन घंटे में ब्रेस्टफीड अवश्य करवाना चाहिए।
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ब्रा ना पहनना
यह भी एक कॉमन मिसटेक है, जो अमूमन महिलाएं कर बैठती हैं। अधिकतर महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद शुरूआती कुछ दिन ब्रा पहनना अवॉयड करती हैं। यह भी ब्रेस्टफीड के दौरान दर्द की एक वजह बनता है। दरअसल, डिलीवरी के बाद महिलाओं के ब्रेस्ट में दूध बनना शुरू होता है, जिससे ब्रेस्ट भारी होने लगते हैं। ऐसे में ब्रेस्ट भारी होने से जब वह लटकेगा तो उसके लिगामेंट्स पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और महिला को ब्रेस्ट पेन की शिकायत होगी। इसलिए, इस दौरान महिला को विशेष रूप से वेल फिटेड सपोर्टिड ब्रा पहननी चाहिए। इससे दर्द काफी हद तक कम हो जाता है। (नई मां के लिए ब्रेस्टफीडिंग गाइड)
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कट या इंफेक्शन के कारण दर्द होना
यह देखा जाता है कि जब बच्चा सही तरह से ब्रेस्टफीड नहीं कर पाता है तो अक्सर वह ब्रेस्ट को जोर से चूसने का प्रयास करता है, जिसके कारण कई बार ब्रेस्ट में कट लग जाता है और इससे महिला को ब्रेस्टफीडिंग के दौरान काफी दर्द होता है। इतना ही नहीं, ब्रेस्ट में कट लगने के कारण इंफेक्शन होने की संभावना भी काफी हद तक बढ़ जाती है। मेसटाइटिस एक ऐसा ही इंफेक्शन है, जिससे महिला को स्तनों में सूजन होती है। साथ ही साथ, इससे ब्रेस्ट में दर्द और रेडनेस की समस्या भी होती है। (ब्रेस्ट मिल्क को पंप करने का आसान तरीका जानें)
तो अब अगर आपको ब्रेस्टफीड के दौरान दर्द होता है तो आपको एक बार इन कारणों पर गौर करना चाहिए। अगर दर्द लगातार बना रहता है तो एक बार एक्सपर्ट से अवश्य मिलें।अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकीअपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit- freepik
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