सर्दियों से निपटने का सबका अपना अलग अंदाज होता है। कोई खा-पीकर शरीर को गर्माहट पहुंचाता है तो कुछ लोग बॉनफायर के पास बैठकर चिक्की और गजक खाकर ऐसा करते हैं। इस मौसम में गुड़, तिल और मूंगफली खूब खाई जाती हैं और इसलिए गजक खाने का इंतजार हम सभी बेसब्री से करते हैं।
मेरा यहां तो यह एक परंपरा है। ठंड शुरू होते ही गजक, मूंगफली आ जाती है और फिर कभी सर्दियों की धूप में बैठकर या शाम को रजाई में दुबक कर सब इसका मजा लेते हैं। कभी खाना खाने के बाद गजक का पर सब टूट पड़ते हैं तो कभी सुबह से ही यह कार्यक्रम चलता रहता है।
जिस गजक को आप और हम इतना पसंद करते हैं क्या आपको पता है कि वह कैसे इतने फेमस हुआ या फिर आखिर उसे बनाने का विचार कैसे आया होगा। आपको भी नहीं पता न! चलो फिर आज इस आर्टिकल में हम जानते हैं कि आपका और हमारा सर्दियों का यह फेवरेट डेजर्ट आखिर किस तरह से बनाया गया था।
क्या चंबल की घाटियों से है ताल्लुक
गुड़, चना और तिल से बने जिस खस्ता गजक को आप पसंद करते हैं वो मुरैना के एक निवासी द्वारा बनाया गया। आपने डकैतो की चंबल घाटी के बारे में तो सुना होगा। अरे उस पर फिल्म तक बन चुकी है, लेकिन क्या कभी सोचा था कि गजक भी उसी घाटी से आया है।
जी हां, टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, 1930 के दशक में, मुरैना में सीताराम शिवहरे ने गुड़, मूंगफली और तिल के मिश्रण को एक ट्विस्ट देने का फैसला किया। इलायची और दालचीनी जैसे मसालों के साथ, खस्ता गजक जैसा मीठी और स्वादिष्ट मिठाई तैयार की। बस फिर क्या धीरे-धीरे डकैतों की चंबल घाटी का यह केंद्र बन गया। खस्ता गजक बनाने का रहस्य तब से शिवहरे परिवार की पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है और आज पूरे देश में इसे खाया जाता है।
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इतिहास को लेकर ये भी है कहानी
कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि गजक इंदौर में बनाना शुरू हुआ था। इसे चिक्की से प्रेरित होकर मध्य प्रदेश के इंदौर में बनाया गया था। हालांकि यह कितना सच है, इसके बारे में कोई नहीं बता सकता। आपको बता दें कि गजक, पाउडर गुड़ या चीनी से बनाया जाता है। गजक बनाने की प्रक्रिया भी चिक्की की तुलना में थोड़ी कठिन है। गजक के आटे को तब तक क्रश और कूटा जाता है जब तक कि तिल का तेल आटे में न निकल जाए।
वहीं, इसे बनाने का दावा करने वाले दिल्ली में भी शामिल हैं। फर्श खाना, चांदनी चौक (चांदनी चौक का इतिहास)में गली बताशा शहर के अस्तित्व में आने के बाद से गजक के इतिहास का प्रमाण के दावा करती है। ऐसा माना जाता है कि साल 1960 में भोंडूमलजी द्वारा स्थापित दुकान इस संकरी गली में ताजी मूंगफली और गजक बनाती और बेचती थी। यह काम आज भी होता है और पुरानी दिल्ली में यह दुकान बहुत लोकप्रिय भी है।
संक्रांति की लोकप्रिय मिठाई
यह संक्रांति और पोंगल में खाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय मिठाई है। दक्षिण भारत में, इसे बनाने के तरीके बहुत अलग-अलग होते हैं, जहां तिल और गुड़ को एक साथ पकाया जाता है और इन्हें 'तिल लड्डू' के रूप में सर्व किया जाता है। दूसरी ओर, चपटी और परतदार मिठाई बनाने के लिए समान सामग्री का उपयोग किया जाता है। बदलते वक्त में इसमें भी कई सारे वेरिएशन देखने को मिले और आज यह ड्राई फ्रूट स्टफ्ड, मावा और चॉकलेट जैसे इंग्रीडिएंट्स से भी बनती है।
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कैसे बनती है गजक?
इस खास डेजर्ट को बनाने के लिए पहले तिल को धीमी आंच पर अच्छी तरह से भूना जाता है। इसके बाद चीनी और घी को भी मध्यम आंच पर गाढ़ा किया जाता है। यह एक खुशबूदार चाशनी बनने तक पकती है, जिसमें भुने हुए तिल (तिल की चटनी) को मिलाया जाता है और खूब देर तक चलाया जाता है। इसे ठंडा करके घी से ग्रीस हुई ट्रे में फैलाकर सेट करने के लिए रखा जाता है और इस तरह से तैयार होती है, सर्दियों की यह मिठाई।
जब गजक इतनी खास है तो जाहिर है इतिहास भी खास होगा। अगर आपको भी गजक के इतिहास को लेकर कोई नई कहानी पता है तो हमें लिखकर जरूर बताएं।
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